दिल्ली आशा कामगार यूनियन (ऐक्टू) के बैनर तले आज राजधानी के मंडी हाउस गोल चक्कर से सैकड़ों आशाओं ने ‘आशा अधिकार मार्च’ निकाला। गौरतलब है कि आज देशभर में स्कीम कर्मचारियों ने हड़ताल और प्रदर्शन किया, जिनमें आशा कर्मियों के साथ आंगनवाड़ी, रसोइया इत्यादि भी शामिल हैं। प्रदर्शन में दिल्ली के जहांगीरपुरी, आदर्श नगर, वज़ीरपुर, साद नगर, पालम, महिपालपुर, छत्तरपुर, संगम विहार, गौतम नगर, त्रिलोकपुरी, मुस्तफाबाद, भजनपुरा समेत अलग-अलग हिस्सों से आशा कर्मियों ने हिस्सा लिया।
प्रदर्शन के उपरांत आशाओं का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव से मिला और आशा कर्मियों के तरफ से ज्ञापन भी सौंपा। आशाओं ने सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, 21000 रुपए प्रतिमाह वेतन लागू करने, 10,000 रुपए प्रतिमाह कोरोना भत्ता देने, सवेतन मातृत्व अवकाश जैसी कई मांगे उठाई। कोरोना के दौरान मारी गई आशाओं को एक करोड़ रुपए मुआवजा देने और यूनियन बनाने के अधिकार पर हमले को रोकने आदि मुद्दों को लेकर भी विरोध दर्ज किया गया।
दिल्ली आशा कामगार यूनियन की महासचिव श्वेता राज ने आशाओं को संबोधित करते हुए कहा –
देश के तमाम राज्यों में सेवा के नाम पर स्कीम कर्मचारियों का शोषण जारी है। सरकार ने कोरोना महामारी के सबसे भयानक दौर में भी आशा कर्मियों को दस्ताने, मास्क और सैनिटाइजर नही दिया ! जो आशाएं महामारी की चपेट में आ गईं, उनके परिवार को मुआवजा नही दिया गया। ‘पॉइंट सिस्टम’ के जरिए मनमाने तरीके से आशाओं का इंसेंटिव काट लिया जाता है। दिल्ली आशा कामगार यूनियन इन नाइंसाफियों के खिलाफ पूरी ताकत और ईमानदारी से संघर्ष करने को प्रतिबद्ध है।
प्रदर्शन में मौजूद एक आशा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि मोदी सरकार द्वारा बरसाये गए फूल हमारे किसी काम के नही – इतनी भयंकर महंगाई में भी हमे 33 रुपए रोज़ाना पर काम करना पड़ता है।
ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव, राजीव डिमरी ने आज के प्रदर्शन को संबोधित करते हुए, देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों के लिए सभी स्कीम वर्कर्स को बधाई दी। उन्होंने बताया कि स्कीम वर्कर्स को नज़रअंदाज़ करना सरकार को भारी पड़ेगा।
अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली आशा कामगार यूनियन (ऐक्टू) से जुड़ी आशाओं ने प्रधानमंत्री को उनके जन्मदिन पर पोस्टकार्ड लिखकर विरोध दर्ज किया था। दिल्ली के सभी इलाकों से सैकड़ों आशाओं ने अपनी मांगों को पोस्टकार्ड द्वारा प्रधानमंत्री तक पहुंचाया था। इससे पहले आशाओं ने काली पट्टी बांधकर भी अपनी मांगों को उठाने का प्रयास किया था।
(महासचिव, दिल्ली आशा कामगार यूनियन (ऐक्टू) द्वारा जारी)