हाल ही में राजपाल एंड सन्स से प्रकाशित पुस्तक ‘एक देश बारह दुनिया’ को लिखने वाले पत्रकार शिरीष खरे के साथ पत्रकार अनुराग द्वारी ने पुस्तक से जुड़े अनुभवों पर लंबी बातचीत की। कलिंग साहित्य महोत्सव द्वारा आयोजित ऑनलाइन भाव संवाद श्रृंखला की कड़ी में हुई इस बातचीत के दौरान लेखक ने बताया कि यह पुस्तक उनके रिपोर्ट और आलेखों का महज संकलन नहीं है, बल्कि समाचारों से इतर इस देश की ऐसी बारह जगहों की गहन पड़ताल का ब्यौरा है जिनमें भारतीय गांवों से जुड़े मुद्दों को लंबे रिपोर्ताज की तर्ज पर अलग-अलग कहानियों की तरह बड़े इत्मीनान और सहजता के साथ नये सिरे से लिखा गया है। इन सच्ची कहानियों में असली घटनाएं और पात्र हैं, जिन्हें ज्यादातर जगहों पर उनके असल नामों के साथ ज्यों के त्यों विवरणों के साथ रखा गया है।
अनुराग द्वारी ने पुस्तक के कई अंशों का पाठ करते हुए शिरीष से पुस्तक के फार्मेट पर सवाल किया। लेखक ने बताया कि पुस्तक में कहीं यात्रा-वृत्तांत, कहीं संस्मरण तो कहीं डायरी जैसी साहित्यिक विधाओं का प्रयोग किया गया है, लेकिन ये सारी विधाएं आखिरकार होती कहानियां ही हैं तो इन्हें ऐसी कहानियों के रूप में समझा जाय जो पिछले एक-डेढ़ दशक में भारतीय गांवों- जिनमें हिंदी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, छत्तीसगढ़ी, बुंदेलखंडी, राजस्थान के थार और जनजातीय बोलियों से जुड़े लोगों- की व्यथा है।
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में विदर्भ अंचल की मेलघाट पहाड़ियां हमें कुपोषण की समस्या की जड़ों की तरफ ले जाती है, जहां खासकर पिछले पांच दशकों में जंगलों से आदिवासियों को नागपुर और मुंबई जैसे शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर किया गया है। व्यवस्थागत तरीके से जंगल से आदिवासियों के जुड़ाव तथा अधिकारों को समाप्त करके एक आत्मनिर्भर समाज को शहरी लोगों का किस तरह मोहताज बना दिया गया है यह कहानी इस पुस्तक में संकलित है।
ग्रामीण पत्रकारिता से जुड़ी चुनौतियों को साझा करते हुए शिरीष ने लिखा है, “इसमें रिपोर्टिंग के दौरान जुड़ी उन घटनाओं को विस्तार दिया गया है जो रिपोर्टिंग में शामिल नहीं हो सकती थीं, लेकिन जिनके बारे में कहना बहुत जरूरी लगता रहा था। इसलिए मैंने कुछ वर्षों के दौरान अपनी पत्रकारिता से संबंधित बारह जगहों को चुना और रिपोर्टिंग के दौरान के तजुर्बों को इस तरह बुना जिसमें कोई व्यक्ति अपनी कहानी कहते हुए कई रोचक आयामों की तरफ ध्यान खींचता है, ज्यादातर जगहों पर ऐसे व्यक्ति हमें भावुक कर देते हैं।”
इन दोनों पत्रकारों के बीच हुए इस आपसी संवाद में पुस्तक के बहाने यह बात भी स्पष्ट तरीके से सामने आयी कि देश के विभिन्न स्थानों पर कई बातें एक समान और सामान्य दिखने के बावजूद जब उनकी कहानियां लिखी जाती हैं तो क्यों स्थान विशेष के संदर्भ के अनुसार उसकी दुनिया बदल जाती है। फिर कहीं मुद्दे, कहीं लोगों के जन-जीवन तो कहीं उनकी चुनौतियों और संघर्षों को लेकर एक देश के भीतर ही कई तरह की दुनिया नजर आती है।
महाराष्ट्र में कोरकू जनजाति और तिरमली व सैय्यद मदारी जैसी घुमन्तु या अर्ध-घुमन्तु समुदाय बहुल क्षेत्रों, मुंबई, सूरत जैसे बड़े शहरों में बहुविस्थापन की मार झेलनी वाली बस्तियों, नर्मदा जैसी बड़ी और सुंदर नदी पर आये नये तरह के संकटों के अलावा छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के बस्तर, राजस्थान के थार और मराठवाड़ा के संकटग्रस्त गांवों के बारे में विस्तार से विवरण रखे गये हैं।
‘एक देश बारह दुनिया’ में देश के बारह जगहों के उपेक्षित लोगों की आवाजों को तरहीज दी गई है। इसमें लेखक ने सांख्यिकी आंकड़ों के विशाल ढेर में छिपे आम भारतीयों के असली चेहरों पर रोशनी डाली गयी है। पुस्तक में देश के सात राज्यों के कुल बारह रिपोर्ताज शामिल किये गये हैं, जहां वर्ष 2008 से 2017 तक की अवधि में भारत की आत्मा कहे जाने वाले गांवों से जुड़े अनुभवों को साझा किया गया है।
पुस्तक: एक देश बारह दुनिया
लेखक: शिरीष खरे
प्रकाशक: राजपाल एंड सन्स, नई-दिल्ली
पृष्ठ: 208
मूल्य: 196 (पेपर-बैक)