कोरोना वायरस क्या एक बहुत बड़ी साज़िश है? सुनिए और पढ़िए प्रोफेसर मिशेल चोसुदोव्सकी को


प्रोफेसर मिशेल चोसुदोव्सकी हमारे समय के महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक चिंतकों में हैं। इन्होंने तमाम किताबें लिखी हैं और उनके लिए इन्हें पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। ग्लोबल रिसर्च नाम की एक चर्चित वेबसाइट के वे संपादक हैं। प्रो. चोसुदोव्सकी ने पिछले दिनों ग्लोबल रिसर्च पर अपना एक वीडियो जारी किया है जिसमें वे कोरोना वायरस के पीछे षडयंत्र का खुलासा कर रहे हैं। इस वीडियो में दी गयी जानकारी को हिंदी में सरल तरीके से समझाने की कोशिश गिरीश मालवीय ने की है। कोरोना महामारी के राजनीतिक अर्थशास्त्र को समझने के लिए यह प्रो. चोसुदोव्सकी की वीडियो देखना और उसका लिप्यन्तरण हिंदी में पढ़ना बहुत कारगर होगा।

-संपादक
Corona Virus, Economic & Social Collapse: Prof. Michel Chossudovsky

कांस्पिरेसी थ्योरी चित्ताकर्षक जरूर लगती है लेकिन जितना यह कहना आसान है इसे साबित करना उतना ही मुश्किल है। वैसे भी अब कोरोना विश्व इतिहास की दशा और दिशा तय करेगा। जैसा कि इसका विश्वव्यापी फैलाव दिख रहा है यह वायरस निकट भविष्य में हमारे सामाजिक व्यवहार को पूरी तरह बदल कर रख देगा। करोड़ों लोगों का रोजगार जिन उद्योग धंधों से जुड़ा है वह लंबे समय के लिए संकटग्रस्त नजर आ रहे हैं। इसलिए यह प्रश्न बहुत बड़ा है!

जब से कोरोना की शुरूआत हुई है बार बार यह प्रश्न खड़ा किया जाता है कि क्या यह वायरस लैब में बनाया गया है? क्या यह जैविक युद्ध के तहत विकसित किया गया हथियार है, जिसने अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वार के समीकरण को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है!

जब वायरस का फैलाव चीन के हुबेई प्रांत के वुहान में हुआ तो चाइनीज अथॉरिटी और साथ साथ ही विश्व समुदाय को लगा कि यह चीन की बढ़ती ताकत को रोकने का प्रयास है। यह वायरस अमेरिकी साजिश है। यह वायरस अमेरिका द्वारा प्लांट किया गया। इस दावे की पुष्टि के लिए यह कहा गया कि यह वायरस 18-27 अक्टूबर 2019 में वुहान में आयोजित CISM स्पोर्ट मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स के दौरान अमेरिकी सैनिकों द्वारा लाए गए थे।

फरवरी बीतने के चीन में कोरोना पीड़ितों की संख्या कम होने लगी और उसके बनिस्बत यूरोप और अमेरिका में मरीजों की संख्या बढ़ने लगी तो माइंडसेट एक बार फिर बदला और इसे चाइनीज़ वायरस कहा जाने लगा। अब यह कहा गया कि जिस जगह यानी वुहान में यह फैला वहां चीन की वायरोलॉजी की सबसे बड़ी और एकमात्र लैब है जो वैश्विक सुरक्षा प्रतिमानों में सबसे उच्च श्रेणी की मानी जाती है। यह लैब उस सी फ़ूड मार्केट से कुछ किलोमीटर ही दूर है जहां यह वायरस सबसे पहले फैला था।

तो दोनों ही दावे किए गए। अब जब यह बीमारी यूरोप अमेरिका और एशिया के भारत पाकिस्तान जैसे देशों में फैल चुकी है तो चायनीज़ वायरस कहे जाने को और बल मिला है। साथ ही सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि वुहान से यह बीमारी हजारों किलोमीटर दूर यूरोप अमेरिका में फैल गयी लेकिन वुहान से कुछ सौ किलोमीटर दूर बीजिंग में इस बीमारी का प्रभाव अपेक्षाकृत नगण्य ही रहा।

इन सारी कहानियों में जो सच के बहुत करीब जाती हुई लगती हैं, असली सवाल यह खड़ा होता है कि इस विश्वव्यापी महामारी का असली फायदा किसे मिलेगा?  भारतीय दर्शन का एक सिध्दांत है कि धुआं उठ रहा है तो कहीं न कहीं आग भी लगी ही होगी।

किसी भी बीमारी का इलाज होता है तो इसका भी इलाज होगा और जो इसका पहला इलाज ढूंढेगा बाजी उसी के हाथ लगनी है। बीमारी के दो इलाज हैः पहला है इसकी दवाई बनाना और दूसरा है इसकी वैक्सीन बनाना।

एक बात और समझिए। ऊपर जो खेल चल रहा है उसमे एक संगठन की भूमिका को आप बहुत महत्वपूर्ण भी समझ सकते हैं और संदेहास्पद भी। वो संगठन है WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाजेशन।

यह पहली बार नहीं था जब डब्ल्यूएचओ ने इस तरह से कार्य करने का फैसला किया। 2009 में H1N1 यानी स्वाइन फ्लू की बीमारी में उसके संदेहास्पद व्यवहार को महसूस किया गया था।

कोविड 19 में WHO जनवरी 2020 के मध्य तक यह मानने को तैयार नहीं था कि यह बीमारी मनुष्य से मनुष्य के बीच संचारित होती है लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है। वह न सिर्फ इस संक्रमण को स्वीकार करता है अपितु 30 जनवरी को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा करता है। उसके बाद यूरोप में बढ़ती हुई मृतकों की संख्या को देखकर 11 मार्च, 2020 को WHO इसे आधिकारिक तौर पर वैश्विक महामारी घोषित कर देता है।

लेकिन उससे भी पहले WHO कुछ ऐसा करता है जो उसके इस व्यवहार पर संदेह उत्पन्न कर रहा है।

जनवरी 2020 के पहले हफ्ते में ही विश्व आर्थिक मंच, दावोस से एक आश्चर्य में डालने वाली घोषणा होती है कि WEF-Gates CEPI के समर्थन से 2019-nCoV के लिये mRNA वैक्सीन का निर्माण करेगी।

WEF यानी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और गेट्स यानी बिल गेट्स ओर CEPI Coalition for Epidemic Preparedness Innovations है।

डब्ल्यूएचओ के निदेशक टेड्रोस और बिल गेट्स दोनों दावोस में होने वाली वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की बैठक में 21-24 जनवरी को शामिल होते हैं। इसी बैठक में बिल गेट्स ने गेट्स फाउंडेशन की अगले 10 वर्षों में टीकों की $10 बिलियन की प्रतिबद्धता की घोषणा की।

इस बैठक के 8 दिन बाद WHO 30 जनवरी को WHO के वर्ल्डवाइड पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की आधिकारिक घोषणा करता है।

आप कहेंगे कि बिल गेट्स, जो माइक्रोसॉफ्ट के मालिक है, वो यहां टीके बनाने जैसी योजना में क्या कर रहे हैं! आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पिछले महीने मार्च 2020 में ही माइक्रोसॉफ्ट ने घोषणा की है कि बिल गेट्स ने कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स से इस्तीफा दे दिया है। कंपनी का कहना है कि वह अपना ज्यादा समय लोगों की भलाई के काम में देना चाहते हैं। माइक्रोसॉफ्ट की तरफ से बताया गया कि गेट्स वैश्विक स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए ज्यादा काम करना चाहते हैं।

यही नहीं बिल गेट्स का एक वीडियो भी अब लोगो का ध्यान आकर्षित कर रहा है जो 2015 का है। टेड के इस वीडियो में बिल गेट्स ये कहते नजर आ रहे हैं कि इंसानियत पर सबसे बड़ा खतरा न्यूक्लियर वॉर नहीं, बल्कि इंफेक्शस डिजीज़ हैं।

काश, बिल गेट्स का रोल इतना ही होता!  छानबीन करने पर जो हमें पता चलता है वो तो और भी ज्यादा भयानक है।

अक्टूबर 2019 में, न्यूयॉर्क का जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर फॉर हेल्थ सिक्योरिटी एक इवेंट 201 नाम के एक सिमुलेशन एक्सरसाइज की मेजबानी करता है जिसमें पार्टनर बनाया जाता है वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन को।

इस इवेंट में एक काल्पनिक कोरोना वायरस महामारी का मॉडल तैयार किया जाता है और अनुमान लगाए जाते हैं कि एक ग्लोबल महामारी में वित्तीय बाजार क्या प्रतिक्रिया देगा। हेल्थ सेक्टर किस तरह से रिस्पांस करेगा। कितने लोगों की जान जा सकती है। तारीख पर ध्यान दीजिए अक्टूबर 2019 में।

गजब की बात यह भी है कि यह सिमुलेशन एक्सरसाइज उसी दिन आयोजित की जाती है जब वुहान में CISM वर्ल्ड मिलिटेटी स्पोर्ट्स गेम्स का उद्घाटन हुआ है। वैसे जानकारी के लिए बता दूं कि आज की तारीख में अमेरिका का जॉन्स हॉपकिन्स संस्थान ही इस महामारी की सबसे सटीक जानकारी दे रहा है।


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