नक्सलबाड़ी का भुला दिया गया परिवार, BJP के ‘मिशन बंगाल’ पर जिसका नमक है उधार!


शनिवार की सुबह जब पूरा दार्जिलिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा में जाने की तैयारी कर रहा था, राजू महाली को होश नहीं था। एक बार उठकर वे रंजीत मोड़ तक गए भी थे, लेकिन घर लौटकर फिर से सो गए थे। उन्‍हें खोजते हुए हम जब कटियाजोत पहुंचे, तो बाजार में एक पानवाले ने बताया- ‘’अभी यहीं तो था’’! इतना पता लगने के बाद भी राजू का घर मिलने में आधा घंटा लग गया।

राजू और उनकी पत्‍नी गीता को नक्‍सलबाड़ी में सब जानते हैं, लेकिन बताने के अंदाज से लगता है कि उसे कोई पसंद नहीं करता। नक्‍सलबाड़ी रेलवे स्‍टेशन से लेकर बोंगाईजोत होते हुए कटियाजोत तक कम से कम दर्जन भर लोगों से पूछने पर कटाक्ष में एक ही जवाब मिलता- ‘’वही? जिसके यहां अमित शाह केले के पत्‍ते पर भात खाया था?” फिर कोई आगे इशारा कर देता, कोई पीछे। इस तरह भटकते हुए बड़ी मुश्किल से कटियाजोत के दक्खिनी टोले में राजू और गीता का घर मिला।

आज से चार साल पहले 25 अप्रैल, 2017 को राजू और गीता के घर पर खाना खाकर अमित शाह ने ‘’मिशन बंगाल’’ का आग़ाज़ किया था। घर इतना कच्‍चा और कमज़ोर था कि अचानक तीन दर्जन भाजपा नेताओं के पहुंचने से पूरा घर हिलने लगा था। ये बताते हुए गीता कहती हैं, ‘’हम लोग तो कुछ जानते भी नहीं थे। एक भाजपा वाला परिचित था, वही शाम को आ के बताया कि कल बड़ा नेता तुम्‍हारे घर आएगा। फिर अचानक से आकर बाद में बोला कि वो खाना भी खाएंगा।‘’ खाना गीता ने खुद अपने हाथों से बनाया था।  

एक आदिवासी का नमक खाकर शुरू हुआ भाजपा का ‘’मिशन बंगाल’’ आज जब हज़ारों भगवा झंडों की शक्‍ल में नक्‍सलबाड़ी में फलने के कगार पर है, तो प्रधानमंत्री मोदी की रैली में जाने के लिए राजू और गीता से किसी ने नहीं पूछा। कारण बस इतना है कि गीता को तृणमूल कांग्रेस ने स्‍थानीय पुलिस में नौकरी दे दी और उसका घर पक्‍का बनवा दिया। आज भी उनके घर में टीएमसी का झंडा लगा दिखता है। ये बात अलग है कि दोनों को ही किसी पार्टी की राजनीति से कोई मतलब नहीं है। दोनों ही राजनीतिक लोगों के आने से भय खाते हैं।


नक्‍सलबाड़ी कब का किंवदंती बन चुका था। अब यहां कमल खिलने वाला है। स्‍टेशन से कुछ दूरी पर बोगाईजोत गांव के प्राइमरी स्‍कूल के बगल में लाल स्‍तम्‍भों पर लगी लेनिन, स्‍टालिन, माओ, लिन प्‍याओ, चारू मजूमदार, सरोज दत्‍ता और महादेव मुखर्जी की प्रतिमा; उनके ठीक बगल में शहीदों की याद में एक लाल स्‍मारक और थोड़ी सी दूरी पर भाकपा-माले का काम देखने वाले कार्यकर्ता पवन सिंह का घर- यहां जो है बस यही है।

सड़क पर दोनों तरफ पार्टियों के झंडे लहरा रहे हैं। इनमें कुछ लाल झंडे भी हैं, लेकिन लाल पार्टी के प्रत्‍याशी का कुछ अता-पता नहीं है। केवल दो उम्‍मीदवार दिखते हैं- एक कांग्रेस के मालाकार, जो निवर्तमान विधायक हैं और दूसरे भाजपा के बर्मन। गांव वालों की मानें तो मालाकार अबकी चुनाव हार जाएंगे। इस संभावित हार के पीछे दो शब्‍द काम कर रहे हैं- हिंदू और हिंदुस्‍तान, ऐसा हमें बिस्‍वजीत राय से बात कर के पता चलता है, जो अपने बच्‍चे को गोद में खिलाते हुए स्‍कूल के बगल से गुजर रहे थे जब हमने उन्‍हें टोक के रोक दिया।       

बिस्‍वजीत बांग्‍लादेशी हिंदू हैं। उनके मुताबिक दार्जिलिंग और कूच बिहार या मोटे तौर पर उत्‍तर बंगाल में 70 फीसद आबादी ऐसे हिंदुओं की है जो बांग्‍लादेश से अलग-अलग समय पर आए हैं। बिस्‍वजीत बड़े उत्‍साह से बताते हैं कि आज मेडिकल के पास मोदीजी की रैली है। वे खुद ही बताते हैं कि माहौल तो भाजपा का ही है। वजह? खुद इसकी वजह वे नहीं बताते, लेकिन एनआरसी पर बात उठती है तो वजह सामने आ जाती है।

वे कहते हैं: ‘’हम लोग बांग्‍लादेश से यहां क्‍यों आया? काम नहीं था, इज्‍जत नहीं था। हमको कोई काम नहीं देता था। एनआरसी से क्‍या होगा? हमारा तो फायदा ही होगा। सत्‍तर परसेंट लोगों का फायदा होगा।‘’ कैसे फायदा होगा? इसका उनके पास एक ही जवाब है, ‘’क्‍योंकि ये हिंदुस्‍तान है।‘’

इसका मतलब उन मुसलमानों को नुकसान होगा जो बांग्‍लादेश से आए थे? इस सवाल पर बिस्‍वजीत थोड़ा तनाव में आ जाते हैं, कहते हैं, ‘’मुसलमान यहां आया ही क्‍यों? आप बताइए।‘’ वो भी काम-धंधे के चक्‍कर में आया है, जैसे आप आए हैं। इस जवाब पर वे बिफर जाते हैं, ‘’हम तो इसलिए आया कि ये हिंदुस्‍तान है, हम हिंदू हैं। वो क्‍यों आया? उसको तो वहां बहुत काम है, फिर आप बताइए वो हिंदुस्‍तान क्‍या करने आया?”

इस सवाल में आज प्रधानमंत्री के भाषण की छवियां दिखती हैं, जब उन्‍होंने कहा कि कहीं कोई नहीं जाएगा, सब यहीं रहेंगे। इस ‘’सब’’ से बिस्‍वजीत का आशय स्‍पष्‍ट रूप से ‘’हिंदुओं’’ से है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में विशेष रूप से अनुसूचित जातियों की भी बात की। इस ‘’हिंदू’’ की यहां कई परते हैं। मिरिक में रहने वाले बंगाल के एक कलाकार बताते हैं कि नेपाल से आया ब्राह्मण यहां विशेष सुविधाएं लेने के लिए गुरुंग बन जाता है। गुरुंग अनुसूचित जाति में आते हैं। वैसे भी, इस्‍लामपुर से लेकर दार्जिलिंग तक की डेमोग्राफी में मुसलमान लगभग अदृश्‍य ही हैं।


पश्चिम बंगाल के चुनाव का महीने भर से सर्वे कर रहे पत्रकार राजन पांडे हफ्ते भर पहले कलकत्‍ते में मिले थे। बता रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी ने 27 फीसदी अनुसूचित जातियों को साध लिया है और उत्‍तरी बंगाल भाजपा का गढ़ बनकर उभर रहा है। आज ही क्‍लबहाउस ऐप पर कुछ पत्रकारों के साथ ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की चर्चा में भी यह बात प्रमुखता से सामने आयी है। दिलचस्‍प है कि इस प्रक्रिया की शुरुआत भाजपा ने चार साल पहले ही कर दी थी यानी पिछले विधानसभा चुनाव के एक साल के भीतर ही भाजपा को समझ आ गया था कि उसे करना क्‍या है। इस कहानी में भाजपा का सूत्रधार बने राजू महाली और गीता।

गांवों की सामाजिक संरचना समझने वाले को दक्खिनी टोला शब्‍द समझाने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए, जहां राजू-गीता का मकान है। संयोग कहें या भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों का चातुर्य, कि राजू महाली आदिवासी है तो गीता सहनी यानी दलित। दोनों के घर भोज किया अमित शाह ने और फिर भूल गए। ‘’मिशन बंगाल’’ की 25 अप्रैल, 2017 को शुरुआत के हफ्ते भर भीतर ही अखबारों ने रिपोर्ट किया कि राजू-गीता ने टीएमसी ज्‍वाइन कर लिया है। अखबारों ने यह भी लिखा था कि ये दोनों पहले भाजपा के कार्यकर्ता थे। चार साल बाद इनसे मिलने पर समझ आता है कि न ये भाजपा के थे, न कभी टीएमसी के रहे।

हां, इस घटना का असर बेशक कलकत्‍ता तक हुआ जहां बीते चार साल में मारवाड़ी समुदाय केंद्रित भाजपा ने शहर के पांच लाख से ज्‍यादा दुसाध, चमार और डोम मतदाताओं को अपने साथ करने में कामयाबी हासिल की है।

नक्सलबाड़ी की मुख्य सड़क दोनों ओर पार्टियों के झंडों से पटी हुई है

गीता बताती हैं कि पैसे तो उन्‍हें भाजपा की ओर से भी मिले थे, लेकिन मकान और नौकरी के लिए वे टीएमसी की कृतज्ञ हैं। दो बच्‍चे हैं, एक नौवीं में और छोटा वाला दूसरी में पढ़ता है। राजू पहले भी रंगाई का काम करता था और अब भी करता है। गीता नक्‍सलबाड़ी थाने में बतौर संतरी रिपोर्ट करती हैं। दोनों को हालांकि राजनीतिक लोगों से डर लगता है। गीता कहती हैं कि अगर मीडिया ने उस वक्‍त रिपोर्ट नहीं किया होता तो शायद उन्‍हें सरकार से इतनी मदद नहीं मिल पाती।

पूरी बातचीत के दौरान राजू अपनी पत्‍नी से डांट खाता रहा। उसने सुबह-सुबह ही नशा कर लिया था और उसे विश्‍वास नहीं हो रहा था कि कोई पत्रकार उससे मिलने आ सकता है। वह बार-बार आशंका जता रहा था कि हम किसी राजनीतिक पार्टी से हैं। उसके डर की वाजिब वजह थी, जिसे गांववालों की निगाह और जवाब में आसानी से पढ़ा जा सकता था। साफ़ लगता है कि अमित शाह के भोज और टीएमसी के सहयोग के बाद समाज में उसकी स्थिति कमजोर हुई है, भले आर्थिक रूप से मजबूती आयी हो।

प्रधानमंत्री मोदी की रैली में जाता गाड़ियों का काफिला

नक्‍सलबाड़ी से ऊपर मिरिक की चढ़ाई के दौरान गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के हरे झंडे वाली और भाजपा के झंडे वाली गाडि़यों की कतार नीचे आती दिखी। एक के बाद एक एसयूवी और बसें भरकर नरेंद्र मोदी की सभा में जा रही थीं। उमस और गर्मी के बीच सभा संपन्‍न हुई। इस बीच कूच बिहार में सीआरपीएफ के हाथों पांच लोगों की जान चली गयी। दोपहर बाद दार्जिलिंग में घंटा भर भयंकर ओले गिरे और बारिश हुई। अब मौसम शांत है।

उम्‍मीद की जा सकती है कि यहां की विधानसभा माटीगारा में 17 अप्रैल को मतदान होने तक सब कुछ शांत रहेगा। 2 मई के नतीजों के बाद राजू और गीता की जिंदगी कैसी गुजरेगी, इसका केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है। नक्‍सलबाड़ी के शहीदों के स्‍मारक कब तक अपनी जगह कायम रहेंगे, यहां के कुछ लोगों के लिए सैकड़ों सवालों में शायद ये भी एक सवाल हो। या नहीं भी। कौन जाने!


नक्सलबाड़ी से नित्यानंद गायेन और अंकुर जायसवाल के साथ


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जनपथ का चौकीदार

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