श्रद्धांजलि: उपेक्षा के अंधेरे में बुझ गया समाजवादी पत्रकारिता का पुराना ‘जुगनू’


समाजवादी परंपरा के वरिष्ठ पत्रकार जुगनू शारदेय का निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में अंतिम सांस ली।

पिछले लंबे समय से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था। अप्रैल में समाजवादी चंचल जी ने शिवानंद तिवारी से दरखास्त की थी कि जुगनू जी के लिए एक छोटा सा सरकारी आवास और काम चलाऊ पेंशन की व्यवस्था वे कराएं। उनका बैंक खाता भी सार्वजनिक किया गया था। फिर जुलाई में हिंदुस्तान के पुराने पत्रकार और प्रेस क्लब के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को अनुरोध किया था कि जुगनू जी को दिल्ली के बिहार निवास या सदन में शिफ्ट किया जाए। अगस्त में पत्रकारों और समाजकर्मियों ने उनकी मदद के लिए बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखा था।  किसी गुहार पर सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली।

जुगनू शारदेय का पहला लेख ओम प्रकाश दीपक के संपादन में ‘जन’ में 1968 में छपा था। ‘जन’ के कारण कुछ जान-पहचान बढ़ी और ‘दिनमान’ में 1969 में पहला लेख छपा। 1971 में ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में भी छपने लगे। ‘धर्मयुग’ में पहला लेख 1972 में छपा। 1978 के आसपास जंगलों का शौक शुरू हुआ। फिल्मकारिता, टेलीविजनकारिता के साथ तरह-तरह के पापड़ बेलते रहे। जंगल के शौक पर किताब ‘मोहन प्यारे का सफेद दस्तावेज’ लिख बैठे, जिसे पर्यावरण और वन मंत्रालय ने हिंदी में मौलिक लेखन के लिए मेदिनी पुरस्कार के योग्य माना। उन्होंने तरह-तरह के अनुवाद किए।

उनके निधन पर बहुत से लोगों ने उन्हें फ़ेसबुक पर श्रद्धांजलि दी है। कुछ नीचे दर्ज हैं।




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