लखनऊ। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने उच्च नमक, चीनी और संतृप्त वसा वाले डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे भारतीयों के जीवन के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन करने वाला करार दिया है। आयोग ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) से उसके फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल्स के चयन पर प्रतिक्रिया मांगी है।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले की रहने वाली मानवाधिकार जननिगरानी समिति व सावित्री बाई फुले महिला पंचायत की सुश्री श्रुति नागवंशी और शिरीन शबाना खान ने 14 सितंबर, 2021 को आयोग को लिखा था कि प्राधिकरण द्वारा स्पष्ट चेतावनी देनी चाहिए और स्टार आधारित रेटिंग प्रणाली से लोगों को गुमराह नहीं करना चाहिए।
इसे एक दुर्लभ अवसर बताते हुए मानवाधिकार जननिगरानी डॉ लेनिन रघुवंशी ने कहा कि एनएचआरसी ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी सुनवाई कर के फुल कमीशन में निर्णय लिया| उन्होंने आगे कहा, “सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में, एफएसएसएआई के लिए स्टार रेटिंग के विचार को त्यागना उचित होगा। अलर्ट या चेतावनी लेबल समय की मांग है। पिछले दो वर्षों से अधिक समय से, पीपल नेटवर्क के लोग कह रहे हैं कि हमें बच्चे के स्वस्थ भोजन और स्वास्थ्य जीवन के अधिकार की रक्षा करने की आवश्यकता है। यह इस आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है और हमें उम्मीद है कि एफएसएसएआई इस पर ध्यान देगा।”
एफएसएसएआई की प्रस्तावित भारत पोषण रेटिंग (आईएनआर) पर टिप्पणी करते हुए डॉ. युवराज सिंह ने कहा, “यह धारणा कि अस्वास्थ्यकर भोजन केवल फल या मेवे मिलने से स्वस्थ बन सकता है, गलत है और इसमें वैज्ञानिक आधार का अभाव है। सितारों का निर्धारण एक जटिल स्कोरिंग प्रणाली पर आधारित है जो फलों या मेवों को शामिल करने जैसे सकारात्मक कारकों को महत्व देता है। यह ‘स्टार रेटिंग’ इन उत्पादों के कई हानिकारक प्रभावों को छुपा सकती है और जनता को एक भ्रामक संदेश दे सकती है।
एफएसएसएआई से इंडिया न्यूट्रिशन रेटिंग को एफओपी लेबल डिज़ाइन के रूप में चुनने पर रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहने वाले पूर्ण आयोग पर अपना विश्वास जताते हुए मानवाधिकार जननिगरानी समिति की कार्यक्रम निदेशक सुश्री शिरीन शबाना खान ने कहा, “भारत से, जिसमें एम्स, आईआईपीएस, और डॉ. चंद्रकांत पांडव जैसे कुछ प्रमुख पोषण विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन सहित पर्याप्त साक्षात्कार हैं कि चेतावनी लेबल सबसे अच्छा काम करते हैं। दुनिया भर के देश भी अपने लोगों की सुरक्षा के लिए चेतावनी लेबल का अनुसरण कर रहे हैं। हमें सही और वैज्ञानिक चीजों पर क्यों ध्यान नहीं देना चाहिए?”
सुश्री नागवंशी याद दिलाती हैं कि यात्रा आसान नहीं रही है। एनएचआरसी स्वास्थ्य मंत्रालय और एफएसएसएआई को अनुस्मारक और नोटिस जारी करता रहा है, जिसका कोई जवाब नहीं मिला। अब जो नोटिस जारी किया गया है उसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होगा क्योंकि यह जनमानस की जरूरत है।
मानवाधिकार जननिगरानी समिति (पीवीसीएचआर) अपनी स्थापना के बाद से ही बाल स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित मुद्दों के काम कर रही है। कुपोषण के मामलों में हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता को पहचानते हुए, पीवीसीएचआर सक्रिय रूप से कुपोषण के दोहरे बोझ से निपटने में लगा हुआ है। अपने पिछले अनुभवों और रणनीतिक दृष्टिकोणों का लाभ उठाते हुए, पीवीसीएचआर ने महत्वपूर्ण उपायों की वकालत करने की पहल की है। विशेष रूप से, संगठन कुपोषण से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए चेतावनी लेबल के साथ फ्रंट ऑफ पैकेट लेबलिंग (एफओपीएल) की वकालत करने में सबसे आगे रहा है।
इस प्रभावशाली अभियान ने डॉक्टरों, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, नागर समाज, शिक्षाविदों, थिंक-टैंकों, मानवाधिकार कार्यकर्ता, धर्म गुरुओ और राजनीतिक दलों सहित हितधारकों के एक विविध समूह को सफलतापूर्वक एक साथ ला दिया है। सहयोगात्मक प्रयासों का उद्देश्य कुपोषण के जटिल मुद्दे को व्यापक रूप से संबोधित करना और भारत के बच्चों के लिए एक स्वस्थ भविष्य बनाने की दिशा में काम करना है