स्मृतिशेष: एक नागरिक-कवि का जाना केवल कविता का नुकसान नहीं होता

वह पहला मौका था जब लालबाज़ार में मैंने उस शख्‍स को साक्षात् देखा: एक ऐसा धोती कुर्ताधारी, जिसके भीतर करुणा और दृढ़-निश्‍चय बराबर मात्रा में थे, जो उसे आपत्ति में खड़ा होने को अन्तः प्रेरित करते थे।

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