मंदिर-मस्जिद सबके लिए खुले क्यों न हों?

सूरिनाम, गयाना, मोरिशस और अपने अंडमान-निकोबार में मैंने ऐसे कई परिवार देखे हैं, जिनमें पति तो पूजा करता है और उसकी पत्नी नमाज़ पढ़ती है या ‘प्रेयर’ करती है। ये लोग सच्चे आस्तिक हैं लेकिन जो भेदभाव करते हैं, वे जितने आस्तिक हैं, उससे ज्यादा राजनीतिक हैं। वे दूसरों के तो क्या, अपने ही मजहब में अपना संप्रदाय अलग खड़ा कर लेते हैं और उसके जरिये अंधभक्तों को अपने जाल में फंसाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।

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