कोलकाता बलात्कार और हत्याकांड पर भारत के मुख्य न्यायाधीश को संगठनों का खुला पत्र

अब नारीवादी आंदोलनों और लोगों के विरोध को हाईजैक (अपहरण) करने की बेतहाशा कोशिश की जा रही है। हम सत्तारूढ़ राष्ट्रीय पार्टी की चुनावी राजनीति में अंतर्निहित पितृसत्तात्मक चालों, जाति और सांप्रदायिक अत्याचारों को उजागर करने के लिए दृढ़ हैं।

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उत्तराखंड : महिला हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, अश्लील संस्कृति का पुतला दहन

देहरादून, रामनगर, सितारगंज,व हल्द्वानी में भी इसी तरह की घटना को अंजाम दिया गया। वक्ताओं ने स्पष्ट कहा कि जो सरकार खुद अपने बलात्कारी सांसदों और विधायकों को बचाती हो उनसे हम न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते।

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केरल: सच को झूठ से अलग न कर पाने की मजबूरी से निकला ‘न्याय’!

सुप्रीम कोर्ट द्वारा किसी और मामले में पूर्व में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए जज ने अपने ऑर्डर में कहा कि जब सच को झूठ से अलग करना सम्भव न हो, जब अनाज और भूसा पूरी तरह आपस में मिल गए हों; विकल्प यही बचता है कि सभी साक्ष्यों को ख़ारिज कर दिया जाए।

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बलात्कार पीड़िता पर ही दोषारोपण करने के मामले में जज को हटानी पड़ी आपत्तिजनक टिप्पणी

कुछ दिन पहले 22 जून को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने बलात्कार के एक मामले में संदिग्ध को जमानत दी थी। दरअसल, राकेश बी. बनाम कर्नाटक राज्य के इस मुकदमे में न्यायाधीश महोदय ने बलात्कार के अभियुक्त को गिरफ्तारी पूर्व जमानत देते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता उस कथित अपराध के बाद सो गयी थी ‘‘जो एक स्त्री के लिए अशोभनीय है; यह वह तरीका नहीं है जैसी कि हमारी महिलाएं व्यवहार करती हैं जब उन्हें प्रताडित किया जाता है।’’

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