चम्बल वीरान है, अब शिक्षा और सेहत में लूट का सामान है!

डकैतों की इन औलादों ने तरह-तरह के पेशे अपना लिए हैं। कुछ ने चिकित्सा के पेशे को चुना है तो कुछ वकील बन बैठे हैं। कुछ ने पैथोलोजिकल लैब खोल ली है तो कुछ ने शिक्षा के धंधे को अपना लिया है। राजनीति में भी इन्हें देखा जा सकता है। गरज़ यह कि जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जहाँ यह नहीं पाए जाते हों या जहाँ इनका दबदबा न हो।

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तन मन जन: निजीकरण की विफलता के बाद क्या हम क्यूबा के स्वास्थ्य मॉडल से सबक लेंगे?

क्यूबा के इस बहुचर्चित स्वास्थ्य मॉडल के बहाने मैं देश के नागरिकों से अपील करना चाहता हूं कि वे संविधान में वर्णित अपने मौलिक नागरिक अधिकारों के तहत सरकार को मुफ्त गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य करें।

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तन मन जन: कोरोना ने प्राइवेट बनाम सरकारी व्यवस्था का अंतर तो समझा दिया है, पर आगे?

स्वास्थ्य और उपचार का सवाल जीवन से जुड़ा है और यह हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। स्वास्थ्य सेवाओं को निजीकरण के जाल से बाहर निकाले बगैर आप स्वस्थ मानवीय जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। अभी भी वक्त है। जागिए और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की गारन्टी के लिए आवाज बुलंद कीजिए।

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