पंचतत्व: बाढ़ से डरिए मत, इसी बहाने नदी में कुछ तो साफ पानी बहे…

यमुना जहां अभी बह रही है, यह उसी का रास्ता है। उफान मारते पानी को देखकर हम डर इसलिए रहे हैं क्योंकि हमने अवैध रूप से उसके पेटे में अपना घर बसा लिया है।

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पंचतत्व: बांधो न नाव इस ठाँव बंधु…

सिर्फ नोएडा की बात करें तो यहां पर ऑक्सीजन शून्य है। एक छदाम ऑक्सीजन नहीं बचता वहां। यूपीपीसीबी के आंकड़े कहते हैं कि ‘यमुना बगैर घुली ऑक्सीजन के नोएडा में घुसती और उच्च स्तर के प्रदूषण के साथ शहर से बाहर निकल जाती है।‘

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पंचतत्व: ये बनारस में गंगा पर जमी काई है या नदियों के प्रति हमारी सामाजिक चेतना का अक्स?

आपको याद होगा जब पिछले साल इन दिनों देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था तब महामारी की पहली लहर के दौरान गंगा का पानी साफ हो गया था। कम प्रदूषण को वजह बताते हुए लोगों ने तब बालिश्त भर लंबे पोस्ट लिखे थे। हरी गंगा पर लोग कम लिख रहे हैं।

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लॉकडाउन में कोयला-चालित संयंत्रों ने जहां-तहां फेंका कचरा, साल भर में घटे 17 हादसे

‘कोल ऐश इन इंडिया- वॉल्यूम 2: ऐन एनवायरमेंटल सोशल एंड लीगल कम्पेंडियम ऑफ़ कोल ऐश मिस मैनेजमेंट इन इंडिया 2020-21’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट की मानें तो बिजली कंपनियों ने कोविड-19 के कारण लागू हुए लॉकडाउन को अपने पावर प्लांट में जमा हुई कोल फ्लाई ऐश को जहां-तहां फेंकने के मौके के तौर पर इस्तेमाल किया और यह एक बड़ी वजह बना प्रदूषण बढ़ने का।

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गाड़ी का धुआं दुनिया में हर पांचवीं मौत का ज़िम्मेदार: हार्वर्ड विश्वविद्यालय

शोध से मिले आंकड़े पूर्व में किये गये शोध में अनुमानित संख्‍या से कहीं ज्‍यादा है। इसका मतलब यह है कि कोयला और डीजल जैसे जीवाश्‍म ईंधन को जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण दुनिया में होने वाली हर पांच मौतों में से एक के लिये जिम्‍मेदार है।

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पंचतत्व: आखिरकार सबसे बड़ी अदालत में यमुना की सुनवाई

केन्द्रीय जल आयोग का प्रस्ताव कहता है कि यमुना धारा के मध्य बिन्दु और एकतरफ के पुश्ते के बीच की दूरी कम-से-कम पांच किमी रहनी चाहिए, लेकिन हकीकत यह है कि मेट्रो, खेलगांव, अक्षरधाम जैसे सारे निर्माण सुरक्षा से समझौता कर बनाए गए हैं.

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पंचतत्व: गोवा के दूधसागर का पानी कहीं गंदला लाल न हो जाए

गोवा की नदियों के पारितंत्र पर खनन गतिविधियों ने बुरा असर डाला है. मांडवी और जुआरी जैसी प्रमुख नदियों में लौह अयस्क की गाद जमा होने लगी है इसके इन नदियों की तली में जलीय जीवन पर खतरा पैदा हो गया है

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पंचतत्‍व: सुशांत पर छाती पीटने वाला समाज अपने पानी में घुले संखिया पर सोया है

पिछले पांच साल में आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों की संख्या में करीब डेढ़ सौ फीसद की बढ़ोतरी हुई, पर इस पर न तो टीवी पर डिबेट है न सोशल मीडिया पर हैशटैग

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