पंचतत्‍व: सुशांत पर छाती पीटने वाला समाज अपने पानी में घुले संखिया पर सोया है


समय कठिन है. बात सिर्फ कोरोना, अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी की नहीं है. कठिन इसलिए कि हम सब एक सामूहिक विभ्रम की स्थिति में जी रहे हैं. रिपोर्टर टीवी स्क्रीन पर फुदकते, मटकते, बल खाते, लहराते, चिल्लाते और पाकिस्तानी फिरकी गेंदबाज अब्दुल कादिर की तरह गेंद फेंकने से पहले बगुले की तरह उड़ान भरने की तैयारी वाला रन-अप ले रहे हैं, पर टीवी से ख़बर गायब है (प्लीज़, चैनल बदलने वाला तर्क न दें, मीडिया को जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए).

स्क्रीन पर किसान के सूखे खेतों से अधिक पैरों की बिवाइयों को ख़तरा माना जा रहा है. जब बालों में डैंड्रफ की समस्या सूखी नहरों से अधिक महत्वपूर्ण है, तब पानी में संखिये (आर्सेनिक) की मौजूदगी से हो रही मौतों और बीमारियों की क्या ही बिसात!

29 अगस्त को नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र बताता है कि गंगा-सिंधु मैदान का 60 फीसद भूजल पीने या सिंचाई के योग्य नहीं है. शोधपत्र कहता है, “इसकी दो मुख्य वजहें लवणता और आर्सेनिक हैं. आर्सेनिक की वजह से पानी पीने योग्य नहीं रहता जबकि लवणता से उसका इस्तेमाल सिंचाई के लिए नहीं किया जा सकता. इसके साथ ही इस इलाके के भूजल में अन्य प्रदूषक भी मौजूद हैं और अधिकतर इलाके में पानी के नाइट्रेट और मलजनित जीवाणुओं से संक्रमित होने का खतरा है.”

कल ही संसद में बताया गया (18 सितंबर को) कि पिछले पांच साल में आर्सेनिक वाले पानी से प्रभावित बस्तियों की संख्या में 145 फीसद की वृद्धि हुई है. काश, कि सोशल मीडिया पर इसको लेकर कोई हैशटैग या अभियान चलता.

सचाई यह है कि 200 मीटर की गहराई तक, नेचर में छपे शोधपत्र के मुताबिक, पानी बहुत अधिक लवणता वाला है जबकि 37 फीसद भूजल में आर्सेनिक की उच्च मात्रा मौजूद है.

पांच साल पहले, 2015 में देश में आर्सेनिक से प्रभावित बस्तियों की संख्या 1,800 थी और 17 सितंबर, 2020 तक बढ़कर ये 4,421 हो गयी है. यह आंकड़ा जलशक्ति राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया ने लोकसभा में दिया है.

पानी में आर्सेनिक होने से त्वचा, फेंफड़े, ब्लाडर और किडनी के कैंसर और इन अंगों से जुड़ी मुख्तलिफ़ बीमारियां हो सकती हैं. जलशक्ति मंत्रालय का जनवरी, 2020 का आंकड़ा कहता है कि देशभर में 21 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं जहां आर्सेनिक से प्रभावित जिलों की संख्या 152 है.

आर्सेनिक प्रभावित होने का अर्थ है पानी में 0.01 मिलीग्राम मात्रा प्रति लीटर की मौजूदगी. पानी में इतनी संख्या विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के लिहाज से जहरीला और इंसानी सेहत के लिए खतरनाक माना जाता है.

जलशक्ति मंत्रालय के आँकडे के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक प्रभावित जिलों की तादाद में सबसे अधिक है. इसके साथ ही, भारतीय शोधकर्ताओं के एक नये अध्ययन में पता चला है कि उत्तर प्रदेश की करीब 2.34 करोड़ ग्रामीण आबादी भूमिगत जल में मौजूद आर्सेनिक के उच्च स्तर से प्रभावित है. विभिन्न जिलों से प्राप्त भूमिगत जल के 1680 नमूनों का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।

ARSENIC

इस अध्ययन में उत्तर प्रदेश के 40 जिलों के भूजल में आर्सेनिक का उच्च स्तर पाया गया है, हालांकि जलशक्ति मंत्रालय के मुताबिक सूबे में आर्सेनिक प्रभावित जिलों की संख्या 28 है. बहरहाल, राज्य के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित जिलों में आर्सेनिक का स्तर सबसे अधिक है. इनमें से अधिकतर जिले गंगा, राप्ती और घाघरा नदियों के मैदानी भागों में स्थित हैं. बलिया, गोरखपुर, गाजीपुर, बाराबंकी, गोंडा, फैजाबाद और लखीमपुर खीरी आर्सेनिक से सबसे अधिक प्रभावित जिले हैं.

उत्तर प्रदेश की करीब 78 फीसद आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है जो सिंचाई, पीने, भोजन पकाने और अलहदा घरेलू कामों के लिए भूमिगत जल का इस्तेमाल करती है.

उत्तर प्रदेश के 40 (या सरकारी आंकड़ा 28) के साथ ही बिहार के 22, असम के 19, हरियाणा के 15, गुजरात के 12, पंजाब के 10, तमिलनाडु के 9, पश्चिम बंगाल के 9, मध्य प्रदेश के 8 जिले आर्सेनिक प्रभावित हैं.

वैसे जानकार बताते हैं कि कि आर्सेनिक से सबसे अधिक प्रभावित इलाके गंगा-ब्रह्मपुत्र के जलोढ़ मैदानों में हैं. खासकर, यूपी, असम, बिहार और बंगाल में यह स्थिति भयावह होती जा रही है. असम में आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों की संख्या सबसे अधिक 1,853 हो गयी है जबकि इसके बाद पश्चिम बंगाल में 1,383 बस्तियां ऐसी हैं.


Cover Pic: People in parts of West Bengal have been consuming arsenic-contaminated water for years which has caused skin cancer among many other diseases. — Baba Tamim/Dawn


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