हम अपनी ‘ग्राउंड रियलिटी’ के साथ जी रहे हैं या एक ‘पाथेर पांचाली’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं?

यह कॉम्पैशन आज कहाँ चला गया है। क्या यह हमारे समाज में है? क्या यह हमारी फ़िल्मों में है? अगर सिनेमा समाज का आईना है तो हम गहरे खतरे में हैं और मेरा मानना है कि सिनेमा समाज का आईना है।

Read More

बासु चटर्जी: एक रचनाकार का अस्तित्ववादी द्वंद्व

फिल्मकार बासु चटर्जी का आज निधन हो गया। कुछ दिन पहले ही नये भारतीय सिनेमा पर विचार करते हुए मूर्धन्य सिने आलोचक विद्यार्थी चटर्जी ने बासु चटर्जी के सिनेमा पर …

Read More