मजरूह लिख रहे हैं अहले वफ़ा के नाम, हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह…
ये बहार भी क्या बहार है जो सब कुछ बहा कर ले चली है! चाहे वो साहित्य हो, अस्मिता हो, साझापन हो या संस्कृति।
Read MoreJunputh
ये बहार भी क्या बहार है जो सब कुछ बहा कर ले चली है! चाहे वो साहित्य हो, अस्मिता हो, साझापन हो या संस्कृति।
Read Moreमजरूह सुल्तानपुरी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहे हैं डॉ. मोहम्मद आरिफ़
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