बैंकों में लाए जा रहे बदलाव आम जन के नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट के हित में: डॉ. देवीदास

तुलजापुरकर ने कहा कि अब बैंकें ग्रामीण इलाकों में ऋण वितरण नहीं करती। ऋण ले चुके किसान भी इस उम्मीद में कर्जा नहीं लौटाते कि सरकारें उसे माफ कर देगी। इसके चलते जरूरतमंद किसान साहूकारों के जाल में फंस कर ऊंचे ब्याज पर ऋण लेने पर विवश हो जाते हैं और उसे चुका पाने में असफल रहने पर आत्महत्या कर लेते हैं। इस मामले में महाराष्ट्र का विदर्भ एवं मराठवाड़ा क्षेत्र सुर्खियों में रहा है।

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‘आत्मनिर्भर भारत’ में केंद्र से कर्ज लेकर घी पी रही है हिमाचल प्रदेश की सरकार!

खुद प्रदेश सरकार अपने संसाधनों से इतना भी हासिल नहीं कर पाती कि वह अपने कर्माचारियों का वेतन दे सके। यहां तक कि आदिवासी व अनुसूचित जाति सब-प्लान, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि मदों से भी बजट का पैसा बचाया जा रहा है। विकास कार्यों पर जितना पैसा खर्च किया जाता है लगभग उतना ही पैसा सरकार का ब्याज चुकाने में चला जाता है।

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