भारतीय लोकतंत्र में लगातार बढ़ रही आर्थिक असमानता पर चर्चा कब होगी?

अनेक अर्थशास्त्रियों को यह आशा थी कि नवउदारवाद और वैश्वीकरण जैसी आधुनिक अवधारणाएं भारतीय सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था से जातीय और लैंगिक गैरबराबरी को दूर करने में सहायक होंगी किंतु ऐसा हुआ नहीं।

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