राग दरबारी: भारतीय मीडिया, संपादक और उसकी नैतिकता

आज के अधिकांश संपादक रीढ़विहीन, परजीवी व अपने लाभ भत्तों के लिए जी रहे हैं. पत्रकारिता में संकट के इस दौर में प्रतीक बंदोपाध्याय जैसे कितने पत्रकारों के बारे में हमने सुना है? जबकि आज तो देश के कई बड़े संपादक राज्यसभा में विराजमान हैं?

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रेडियो रवांडा जैसी भूमिका निभा रहा है भारतीय मीडिया, नतीजे ख़तरनाक हो सकते हैं

गृह मंत्रालय आखिर किस बात का इंतज़ार करता रहा जबकि उसको मालूम था कि हमारे यहां विदेशी नागरिक फंसे हुए हैं।

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