महिला दिवस: नवउदारवादी व्यवस्था में स्त्री की आर्थिक मुक्ति का उलझा सवाल

एक भ्रम यह भी फैलाया जाता है कि नवउदारवादी अर्थव्यवस्था महिलाओं की आर्थिक मुक्ति का कारण बनेगी जबकि सच्चाई यह है कि इसके कारण संगठित क्षेत्र सिकुड़ा है और असंगठित क्षेत्र की शोषणमूलक प्रवृत्तियां खुलकर अपनाई जा रही हैं। ठेका पद्धति और संविदा नियुक्ति की परिपाटी बढ़ी है और महिलाएं इनका आसान शिकार बनी हैं क्योंकि निरीह, असंगठित महिलाओं से कम वेतन पर मनमाना काम लिया जा सकता है और जब चाहे इन्हें नौकरी से हटाया जा सकता है।

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तन मन जन: साल दर साल विकास लक्ष्यों का शतरंजी खेल और खोखले वादे

विश्व स्वास्थ्य संगठन का वादा था- सन् 2000 तक सबको स्वास्थ्य, लेकिन स्थिति नहीं बदली। फिर सहस्राब्दि (मिलेनियम) विकास लक्ष्य 2015 तय हुआ। वह भी हवा-हवाई हो गया। अब टिकाऊ (सस्टेनेबल) विकास लक्ष्य 2030 तय हुआ है। समझा जा सकता है कि “जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा”।

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