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बात बोलेगी: जेहि ‘विधि’ राखे राम ताहि ‘विधि’…
जब विधि का बल परास्त होता दिख रहा है तो वह करार भी टूटता नज़र आ रहा है जो सभी तरह के बलधारकों और निर्बलों को एक सफ़ में खड़ा करता था। विधि के बल के रीतने से हमारे बीच का नागरिक रीत रहा है; नागरिक समाज के बीच का करार रीत रहा है; और ये सब रीतने से हमारे बीच का मनुष्य रीत रहा है।
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