समस्या को बल्लियों और चादरों से ढंक कर समाधान निकालने की तरकीब

बिहार में ढंकने का ही चलन है। यही काम तब हुआ था, जब प्रकाश-पर्व मना था, गुरु गोविंद सिंह की 300वीं जयंती पर। तब भी सारे पटना के नालों, कूड़ों को बेहद नफीस कालीनों और झाड़-फानूसों के नीचे धकेल दिया गया था। आज भी वही हो रहा है।

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जोशीमठ क्षेत्र में चल रही सभी जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण और विस्फोट पर तत्काल रोक: HC

नंदा देवी बायोस्फेयर में ही पूर्व में 7 फरवरी 2021 को ग्लेशियर के टूटने की घटना हुई थी जिसके बाद पीसी तिवारी द्वारा यह जनहित याचिका माननीय उच्च न्यायालय में योजित की गई, जिसने उनके द्वारा अर्ली वार्निंग सिस्टम, असंतुलित विकास को रोकने संबंधी दिशानिर्देश उच्च न्यायालय से चाहे गए।

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जोशीमठ त्रासदी के लिए कौन जिम्मेदार?

हिमालय युवा है और प्राकृतिक रूप से नाजुक है। इससे चट्टान में दरारें और फ़्रैक्चर बनते हैं जो भविष्य में चौड़े हो सकते हैं और रॉकफॉल/ढलान विफलता (स्लोप फ़ेलियर) क्षेत्र बना सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंसानी हस्तक्षेप ने इसे और भी बदतर बना दिया है, चाहे वह पनबिजली संयंत्रों का विकास हो, सुरंगों का विकास हो या सड़कों की योजना हो।

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धर्मनिर्पेक्षता: किसी समाज के सभ्य और विकसित होने की पूर्व-शर्त

भारत में भी जो विकास नजर आ रहा है वह उसके संविधान के धर्मनिर्पेक्ष होने का नतीजा है। अगर हमने धर्मनिर्पेक्षता को छोड़ दिया या उसकी रक्षा नहीं की तो भारत को पाकिस्तान बनने में देर नहीं लगेगी।

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आधुनिक राष्ट्र-राज्य में प्राचीन भारत और पुराने शहरों के भीतर स्मार्ट शहरों का निर्माण!

जिस स्वरूप के राष्ट्र-निर्माण की पीड़ा या प्रक्रिया से हम गुज़र रहे हैं उसमें तानाशाही सर्वहारा की नहीं बल्कि धर्म की स्थापित होने वाली है। इस्लामी राष्ट्रों में उपस्थित एक धर्म विशेष के साम्राज्य या धार्मिक तानाशाही के समानांतर बहुसंख्यकों द्वारा पालन किए जाने वाले धर्म की तानाशाही।

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हसदेव अरण्य बचाने के लिए आज राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन, संघर्ष समिति ने देशवासियों से की अपील

हसदेव अरण्य के समर्थन में 4 मई 2022 को देशव्यापी प्रदर्शनों का आयोजन किया जा रहा है। हम लोग आपके साथ हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की अपील साझा करते हुए आग्रह करते है कि आपके साथ जितने भी लोग हो सकें- आप पोस्टर या बैनर ले कर अपनी बात रख सकते है- फ़ोटो या वीडियो लेकर आप अपनी जगह से ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए इस सांकेतिक विरोध में अपना समर्थन दे सकते है।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: नया बनारस बन रहा है, काशी का दम उखड़ रहा है!

कोई कहता है कि बनारस विकास कर रहा है, तो मैं दावे से कहता हूं कि वह बनारस को नहीं जानता है। बनारस के ऐतिहासिक प्रतीकों को आज संरक्षण की जरूरत है, लेकिन धार्मिक नगरी का सर्टिफिकेट देकर इसके ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को हमेशा कमतर किया जाता रहा है। बीते तीन-चार साल में बाकायदे इन प्रतीकों का विध्‍वंस हुआ है विकास के नाम पर।

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शेरनी: जंगल से निकाल कर जानवरों को म्यूज़ियम में कैद कर दिए जाने की कहानी

फ़िल्म की कहानी और इसके बीच स्थानीय राजनीति, अफ़सरशाही, प्रशासनिक नाकामी, पर्यावरण का दोहन और अवैध शिकार जैसे खलनायक शेरनी को बचाने का प्रयास करती फ़िल्म की ‘शेरनी’ विद्या बालन को बार-बार रोकते हैं और अंत में इसमें सफल भी हो जाते हैं।

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पंचतत्व: ये बनारस में गंगा पर जमी काई है या नदियों के प्रति हमारी सामाजिक चेतना का अक्स?

आपको याद होगा जब पिछले साल इन दिनों देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था तब महामारी की पहली लहर के दौरान गंगा का पानी साफ हो गया था। कम प्रदूषण को वजह बताते हुए लोगों ने तब बालिश्त भर लंबे पोस्ट लिखे थे। हरी गंगा पर लोग कम लिख रहे हैं।

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“इन 18 महीनों में हमने वो भी खो दिया जो हमारा था”: कश्मीर में विकास के दावों का ज़मीनी सच

जिन समुदायों के साथ यह बातचीत हुई, वे पुराने निज़ाम को फिर से याद करने लगे हैं जबकि कश्मीर के स्थापित परिवारों और खानदानों को लेकर उनके मन में कोई सहानुभूति नहीं है बल्कि वे तो यह मानते हैं कि ‘उनके साथ ठीक ही हुआ’।

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