तन मन जन: COVID-19 में अंडमान से कश्‍मीर तक मरने को अभिशप्‍त हैं आदिवासी-घुमंतू

वास्तविकता तो यह है कि देश के अन्य राज्यों में जहां कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी देखी जा रही है वहीं पूर्वोत्तर के प्रदेशों में संक्रमण तेजी से बढ़ने लगा है। सरकारी उपेक्षा के बाद अब वहां स्थानीय समुदायों ने इस महामारी से मुकाबला करने के लिए स्वयं पहल शुरू कर दी है।

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16 से 21 अगस्त तक लगेगी ऑनलाइन जनता संसद, मतदान की भी होगी सुविधा

जागृत नागरिकों ने निर्णय लिया है कि वे साथ मिल कर एक जनता संसद आयोजित करें, ताकि कोविड से जुड़ी महत्वपूर्ण नीतियों के उपायों पर चर्चा की जा सके।

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तन मन जन: कोरोना से बची जान तो दिल और गुर्दे कमज़ोर, फेफड़े खराब!

वुहान में अप्रैल 2020 तक ठीक हो चुके कोरोना वायरस संक्रमित लोगों पर हुए इस सर्वे ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। सर्वे के पहले चरण के परिणामों में कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक हुए मरीजों में 90 फीसद के फेफड़ों का वेंटिलेशन और गैस एक्सचेंज फंक्शन काम नहीं कर रहा है।

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एक महामारी का आविष्कार: इतालवी दार्शनिक जॉर्जो आगम्बेन का चर्चित ब्‍लॉग

इतालवी दार्शनिक जॉर्जो आगम्बेन कोविड के दौर में चर्चा में रहे हैं। अकादमिया में संभवत: वे पहले व्यक्ति थे, जिसने नावेल कोरोना वायरस के अनुपातहीन भय के खिलाफ आवाज़ उठाई। कोविड से संबंधित उनकी टिप्पणियों का हिंदी अनुवाद प्रमोद रंजन की शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक “भय की महामारी” के परिशिष्ट में संकलित है।

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मौजूद नीतियों के चलते आदिवासियों की सभ्यता-संस्कृति का विलोपन एक अनिवार्य परिणति है!

अप्रैल से लेकर जून तक का समय माइनर फारेस्ट प्रोड्यूस (लघु वन उत्पाद) को एकत्रित करने का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। वर्ष भर एकत्रित होने वाले कुल एमएफपी का लगभग 60 प्रतिशत इसी अवधि में इकट्ठा किया जाता है किंतु दुर्भाग्य से कोविड-19 की रोकथाम के लिए लॉकडाउन भी इसी अवधि में लगाया गया।

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तन मन जन: कोरोना काल की अभागी संतानें

यदि परिपक्व और संवेदनशील तरीके से मामले को संभाला नहीं गया तो स्थिति विस्फोटक है और देश दुनिया का भविष्य कहे जाने वाले हमारे बच्चे ताउम्र एक अभिशप्त जिन्दगी जीने को मजबूर होंगे।

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COVID-19 का नया हॉटस्पॉट बन रहा है UP, भयावह स्थिति में पहुँच चुकी है बेरोज़गारी

प्रदेश में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सरकार का जोर आंकड़ेबाजी प्रस्तुत करने और प्रोपैगैंडा पर है। चाहे स्वास्थ्य सेवाओं का मसला हो, बेकारी अथवा कानून व्यवस्था का सवाल हो, अगर इन सवालों पर प्रभावी ढंग निपटा नहीं गया तो चीजें नियंत्रण के बाहर जा सकती हैं।

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आपदा को अवसर में बदल चुके निजी अस्पतालों के चलते यूपी में बढ़ रहा है कोरोना का कहर!

सहारनपुर के देवबन्द इलाके के लोग मेरठ जाकर एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती हो रहे हैं। सूत्रों की मानें तो यह खेल काफी दिनों से चल रहा है। मरीज़ की रिपोर्ट अगर पॉज़िटिव आ जाती है तो वहाँ निगेटिव कर देते हैं और मरीज़ का इलाज शुरू कर देते हैं जिससे अब तक लगभग कई लोग अपनी जिंदगी गंवा चुके हैं।

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बात बोलेगी: चढ़ी हुई नदी के उतरने का इंतज़ार लेकिन उसके बाद क्या?

असम, बिहार से ऐसी तस्वीरें ज़्यादा आ रही हैं। इन दो राज्यों में हालांकि यह वार्षिक कैलेंडर का हिस्सा हैं इसलिए फिर भी कुछ न कुछ मानसिक तैयारी लोगों की होती होगी, लेकिन पिछले कई साल से ऐसी ही तस्वीरें देखते हुए लगता है कि बाढ़ का पानी उतरने के बाद ये लोग शून्य से ज़िंदगी शुरू करते होंगे तभी तो इनका हर बार उतना ही नुकसान होता है जितना उससे पिछले बरस हुआ था!

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पहले कोरोना, अब बाढ़! क्या बिहार के मजदूर-किसानों की ज़िंदगी का कोई मोल नहीं है?

यह प्रदेश में तथाकथित विकास की असफलता को दर्शाता है, जहाँ गांव की जनता को अपनी बीमारी के अच्छे इलाज के इलाज के लिए कम से कम 3 घण्टे का सफर तय करना होता है। शुरुआती दौर में तो सैम्पल को पटना या कोलकाता भेजा जाता था, जिसकी फाइनल रिपोर्ट आते-आते एक सप्ताह से 10 दिन तक लग जाते थे।

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