प्रशांत भूषण के हाथ से फिसला वह क्षण और ‘स्‍थायी भयावहता’ में तब्‍दील होते ‘तात्‍कालिक भय’!

बीतने वाले प्रत्येक क्षण के साथ नागरिकों को और ज़्यादा अकेला और निरीह महसूस कराया जा रहा है। जिन बची-खुची संस्थाओं की स्वायत्तता पर उनकी सांसें टिकी हुई हैं, उनकी भी ऊपर से मज़बूत दिखाई देने वाली ईंटें पीछे से दरकने लगी हैं।

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जस्टिस मिश्र ने कहा- “चोट खाये को मरहम लगाना ज़रूरी है” और फैसला सुरक्षित रख लिया!

भूषण की ओर से पेरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट राजीव धवन और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को सुनने के बाद जस्टिस अरुण मिश्र ने सज़ा के फैसले को सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस मिश्र 3 सितम्‍बर को रिटायर हो रहे हैं।

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बात बोलेगी: जबरा मारे औ रोऊन न देय

सताने के लिए किसी बड़े बहाने की ज़रूरत नहीं भी हो सकती है। यह जबर के ऊपर है कि उसे कब ऐसा लग जाये कि उसकी मानना नहीं हुई है (या अव-मानना हुई है)।

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