मूल्य आधारित पत्रकारिता की पांच दशक से बह रही ‘बयार’ में ठिठका एक अपार दुख

पता नहीं बयार कार्यालय की भौतिक रूप से टिमटिमाती रोशनी से उपजता पवित्र, आत्मीय और आत्मिक उजियारा अब हमारा पथ प्रदर्शन करेगा या नहीं। शोक संतप्त सुभाष भैया अपने जीर्ण शरीर और विदीर्ण हृदय के साथ “बयार” की यात्रा को अनवरत रख पाएंगे या नहीं।

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