अन्नदाता, जागो और देखो, हल की जगह चलाये जा रहे हैं बुल्डोजर!

प्रेम ही आदमी को कवि बनाता है। कवि की ज़रूरत इसलिए होती है कि जब हवाओं में घृणा भरी हो, वह प्रेम का संगीत बाँटता है। वह सुंदरता से प्रेम करना सिखाता है और बताता है, क्या सुंदर है, क्या नहीं।

Read More

हिन्दू पुनर्जागरण से अधूरे नवजागरण तक भारतीय चित्रकला के राजनीतिक सफर की कहानी

भारतीय चित्रकला का सच’ एक ऐसी पुस्तक है जो समाजशास्त्रीय नजरिये से लिखी गयी है और जिसमें एकेडमिक्स के लटकों झटकों से दूर एक ऐसे कलाकार की दृष्टि का परिचय मिलता है जो भारत जैसे वर्ग विभाजित समाज में उत्पीड़ित बहुमत के साथ खड़ा है।

Read More

‘सीने में फांस की तरह’ फंसी कविताएं

कवि के सीने की फाँस है सेलेब्रिटी बनाम सामान्य मनुष्य। वह कहते हैं- सराहना में/खो जाते सामान्यजन स्वतः/अपने आप। लगभग सभी कविताओं में कवि ऐसे ही विचलित होता है और मानवता के पक्ष में अपनी आवाज उठाता है। ‘आदिवासी’ कविता में निमाड़, मालवा के आदिवासियों का संघर्ष, उनकी बेबसी, उनके दुख, गरीबी और पीड़ा की अभिव्यक्ति हुई है। ‘मिथ’ बड़े पृष्ठभूमि की कविता है जिसमें कवि ने अन्तर्विरोधों को रेखांकित किया है।

Read More

पुस्तक समीक्षा: भारत का संविधान – महत्वपूर्ण तथ्य और तर्क

यह किताब संविधान की पृष्ठभूमि और इसके निर्माण की प्रक्रिया को समझने के लिए हिंदी में एक जरूरी दस्तावेज की तरह हैं जो महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ-साथ संविधान के वजूद में आने के तर्कों को बहुत ही सटीकता के साथ प्रस्तुत करती है।

Read More

धर्मनिरपेक्षता के संघर्ष में सरदार पटेल को सही नजरिये से समझने की कोशिश

, जब हम सेकुलरिज्म को पश्चिमी अवधारणा से देखते हैं जिसमें धर्म और राजनीति एक दूसरे से पर्याप्त दूरी बरतते हैं, तभी हमें सरदार हिंदुत्ववादी रुझान वाले दिखते हैं। किताब के परिचय में नानी पालखीवाला ने इस धारणा के लिए स्पष्ट तौर पर समाजवादियों जैसे जेपी, वामपंथियों के साथ ही आज़ाद को भी को ज़िम्मेदार ठहराया है।

Read More

जीवन में संविधान: रोजमर्रा की कहानियों में संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात करने की कोशिश

इस किताब में 76 लघु कहानियां हैं। ये महज कहानियां नहीं हैं बल्कि किसी न किसी के साथ हुई सच्ची घटनाएं हैं जिन्‍हें कहानी के माध्यम से किताब में बयां किया गया है। लेखक ने इन सभी घटनाओं को बहुत ही सरल भाषा में कहानी में ढाला है। इन कहानियों के जीवंत पात्र बच्चे हैं, महिलाएं हैं, किशोर/किशोरियां हैं, युवा हैं, बुजुर्ग हैं, दलित हैं, आदिवासी है, गरीब हैं, वंचित तबकों से हैं।

Read More

नये भारत के उदय के बीच तीन ख़ानों की दास्तान

इन तीनों के बारे में लगातार लिखा जाता रहा है। इनसे जुड़े विवादों से लेकर अफवाहों और फिल्मों तक के बारे में बहुत कुछ पहले से ही लिखा और कहा जा चुका है। ऐसे में पहला सवाल यह उठता है कि इन तीनों पर आधारित एक किताब नया क्या पेश कर सकती है?

Read More

पराक्रमहीनता का राग मालकौंस

समीक्ष्य पुस्तक Modi@20: Dreams meet Delivery 21 अध्याय और 1 प्राक्कथन से संयोजित-संपादित पुस्तक है जिसमें राजनीति, कला, संगीत, खेल, उद्योग आदि से जुड़े देश के 22 दिग्गजों के आलेखों को सम्मिलित किया गया है। शायद यह पहली ऐसी पुस्तक मेरे देखने में आयी है जिसका सम्पादन कोई व्यक्ति नहीं एक ‘फाउंडेशन’ ने किया है।

Read More

एक सत्यशोधक के रूप में जोतिबा फुले की तस्वीर: देस हरियाणा का भाषणों को समर्पित अंक

अब तक हिंदी पाठकों के दिमाग में बनी जोतिबा फुले की तस्वीर एक समाज सुधारक की तस्वीर या फिर एक जातिवाद विरोधी महात्मा की तस्वीर के रूप में बनी हुई है। ये भाषण जोतिबा फुले के दर्शन, विज्ञान और इतिहास के सत्यशोधक की तस्वीर बनाते हैं। यह भाषण पहली बार मराठी में 1856 में प्रकाशित हुए थे।

Read More

सहजीविता का इतिहास और इतिहास की ऐतिहासिकता: नदी पुत्र की एक सुदीर्घ समीक्षा

अच्छी किताब की एक विशेषता यह है कि वह आप के मस्तिष्क में विचारों की नयी तरंग पैदा कर देती है, आपको नया कुछ सोचने-विचारने को प्रेरित करती है। इस शोध-प्रक्रिया में लेखक ख़ुद निषादों के जीवन में झांकते-झांकते ‘एन्थ्रोपोसीन’ की वैचारिकी में जा पहुँचे, और इस तरह उन्हें अपने आगामी शोध का आधार मिल गया।

Read More