बात बोलेगी: जीत के सौ अभिभावक और हार का अनाथ हो जाना

क्या बिहार के चुनाव में उन मुद्दों का कोई मतलब नहीं था, जिनसे राष्ट्रीय राजनीति की दशा-दिशा बनती बिगड़ती है? इन मुद्दों को उठाने की कीमत कांग्रेस ने न केवल बिहार, बल्कि तमाम राज्यों में चुकायी है, लेकिन प्रादेशिक चुनाव को महज़ स्थानीय तो नहीं बनाया जा सकता है न?

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अंतिम नतीजा चाहे जो हो, यह जनादेश सिर्फ और सिर्फ नीतीश के खिलाफ है!

तेजस्वी अगर इस चुनाव के एकल विजेता हैं, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हार के सर्वाधिक उचित व्यक्तित्व। वैसे तो राजनीति में नैतिकता और शर्म नामक शब्द होते नहीं, लेकिन नीतीश को नतीजे देखते हुए खुद ही अब संन्यास ले लेना चाहिए, केंद्र की राजनीति चाहें तो करते रहें।

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बिहार: एक पुल के इंतज़ार में 42 साल से यहां ढलती जा रही हैं पीढ़ियां

मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिले की सीमा पर नेशनल हाइवे 57 से महज डेढ़ किलोमीटर दक्षिण की दिशा में बसा यह गांव अपने ही नागरिकों के प्रति सत्ता, सियासत और प्रशासनिक उपेक्षा का जीता-जागता एक मिसाल है। यह गांव इस बात का सबूत और गवाह है कि आखिर कैसे नेता, जनप्रतिनिधि और अधिकारी उसी जनता से अपना मुंह मोड़ लेते हैं जिसकी सेवा करने का संकल्प लेकर वे अपने पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं।

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पुलिस के हथियारों से मुंगेर में हुआ नरसंहार: घटनाक्रम, संदर्भ व मांगें

बीते 26 अक्टूबर की रात मुंगेरवासियों के लिए दर्द-आंसुओं से भरी एक खौफनाक रात थी, जब दुर्गापूजा के मूर्ति विसर्जन के दौरान दर्जनों लोगों पर पुलिस प्रशासन ने गोलियां चलायीं व बेरहमी से लाठीचार्ज किया। इसमें 18 साल के अनुराग की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी।

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राग दरबारी: गोबरपट्टी के राजनीतिक टिप्पणीकार बिहार में ‘विकास की जाति’ को क्यों नहीं देखते?

किसका विकास हो रहा है मतलब किस जाति का विकास हो रहा है या फिर कह लीजिए कि विकास की जाति क्या है, इसे समझने का सबसे आसान तरीका यह जानना है कि किसके शासनकाल में किस जाति-समुदाय के लोगों की प्रतिमा लगायी जाती है; किसके नाम पर संस्थानों के नाम रखे जाते हैं; और किसके नाम पर सड़क का नामकरण हो रहा है।

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चुनावीबिहार-5: भाजपा के धुरंधरों को नहीं पता कि उनके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक चुकी है!

जिस तरह प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी ने सारे पड़ोसियों से संबंध एक समान स्तर पर बिगाड़े हैं, भाजपा ने मिथिलांचल से लेकर भोजपुर तक अपने कैडर्स को एक जैसा नाराज़ किया है।

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पंचतत्व: गंगाजल को गया तक ले जाना बिहार सरकार का विकट दृष्टिदोष है

खुद गंगा अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है. अगर गर्मियों में उससे 50 एमसीएम पानी निकाल लिया जाएगा तो खुद इसके परितंत्र पर क्या असर पड़ेगा, इसका क्या कोई अध्ययन बिहार सरकार ने कराया है?

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नए कृषि कानून का विरोध और आंदोलन बड़े किसानों का मसला है! चुनावी बिहार से प्रतिक्रियाएं…

एक ऐसे वक़्त में जब किसान अपनी आवाज मीडिया में दर्ज नहीं करा पा रहे हैं, मोबाइल वाणी ने उन्‍हें कृषि बिल पर अपनी राय दर्ज करवाने का एक मौका दिया और उनकी बात रिकॉर्ड की। आइए जमीन से आयी किसानों की आवाज़ के जरिये समझते हैं कि कृषि बिल को लेकर वे क्‍या सोच रहे हैं।

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पहले कोरोना, अब बाढ़! क्या बिहार के मजदूर-किसानों की ज़िंदगी का कोई मोल नहीं है?

यह प्रदेश में तथाकथित विकास की असफलता को दर्शाता है, जहाँ गांव की जनता को अपनी बीमारी के अच्छे इलाज के इलाज के लिए कम से कम 3 घण्टे का सफर तय करना होता है। शुरुआती दौर में तो सैम्पल को पटना या कोलकाता भेजा जाता था, जिसकी फाइनल रिपोर्ट आते-आते एक सप्ताह से 10 दिन तक लग जाते थे।

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राग दरबारी: क्या राजद का बीजेपी से गठबंधन संभव है?

अगर राजद और बीजेपी के बीच सचमुच कुछ पक रहा है या चुनाव के बाद भी किसी तरह का गठबंधन होता है तो यह सामाजिक औऱ लोकतांत्रिक राजनीति की पिछले तीस वर्षों में सबसे बड़ी हार होगी और निजी तौर पर लालू यादव की सांप्रदायिकता व फिरकापरस्ती के खिलाफ एक नायक के रूप में बनी छवि भी टूटेगी.

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