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बात बोलेगी: जीत के सौ अभिभावक और हार का अनाथ हो जाना
क्या बिहार के चुनाव में उन मुद्दों का कोई मतलब नहीं था, जिनसे राष्ट्रीय राजनीति की दशा-दिशा बनती बिगड़ती है? इन मुद्दों को उठाने की कीमत कांग्रेस ने न केवल बिहार, बल्कि तमाम राज्यों में चुकायी है, लेकिन प्रादेशिक चुनाव को महज़ स्थानीय तो नहीं बनाया जा सकता है न?
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