कोरोना से बचे तो बाढ़ ने लील लिया जीवन: बिहार से लेकर मध्‍यप्रदेश तक तबाही का आलम

एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी आंकड़ों के अनुसार 4 अगस्त तक बिहार में 19 लोगों की जान जा चुकी है और 63 लाख से ज्‍यादा लोग बाढ़ की चपेट में आये हैं. बिहार के 16 से अधिक जिले बाढ़ की चपेट में हैं.

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दक्षिणावर्त: 12 करोड़ जिंदा प्रेतों का डूबता प्रदेश, जहां किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता!

बाढ़ में लोग चूड़ा, सत्तू और बिस्किट लेकर आनंदित हैं, अगर टी-शर्ट मिल जाए तो क्या ही अच्छा, सोने पर सुहागा। सरकार ने 6 हजार नकद का भी दांव चल दिया है। उज्ज्वला का सिलिंडर भी है ही।

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बात बोलेगी: चढ़ी हुई नदी के उतरने का इंतज़ार लेकिन उसके बाद क्या?

असम, बिहार से ऐसी तस्वीरें ज़्यादा आ रही हैं। इन दो राज्यों में हालांकि यह वार्षिक कैलेंडर का हिस्सा हैं इसलिए फिर भी कुछ न कुछ मानसिक तैयारी लोगों की होती होगी, लेकिन पिछले कई साल से ऐसी ही तस्वीरें देखते हुए लगता है कि बाढ़ का पानी उतरने के बाद ये लोग शून्य से ज़िंदगी शुरू करते होंगे तभी तो इनका हर बार उतना ही नुकसान होता है जितना उससे पिछले बरस हुआ था!

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पहले कोरोना, अब बाढ़! क्या बिहार के मजदूर-किसानों की ज़िंदगी का कोई मोल नहीं है?

यह प्रदेश में तथाकथित विकास की असफलता को दर्शाता है, जहाँ गांव की जनता को अपनी बीमारी के अच्छे इलाज के इलाज के लिए कम से कम 3 घण्टे का सफर तय करना होता है। शुरुआती दौर में तो सैम्पल को पटना या कोलकाता भेजा जाता था, जिसकी फाइनल रिपोर्ट आते-आते एक सप्ताह से 10 दिन तक लग जाते थे।

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ज़मीन में उग आयी है नदी, गांवों में घुस आये हैं जानवर! असम में दोहरी तबाही का मंज़र…

क्यों हर साल वहां के लोगों को डूब कर मरना पड़ता है? क्यों बाढ़ नियंत्रण के लिए सरकारें कोई योजना बना कर हल नहीं खोजतीं? हर साल पता होता है कि तबाही आ रही है लेकिन हर साल सरकारें और प्रशासन शुतुरमुर्ग की तरह ज़मीन में सिर गड़ा लेते हैं?

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