बात बोलेगी: ‘नये भारत’ के नागरिकों के लिए क्यों न एक भयदोहन कोष बनाया जाए!

ज़रूरी तो नहीं कि मंदिर के लिए वसूले गये चंदे से मंदिर से सम्‍बन्धित काम ही हो। जैसे पीएम केयर्स से भी ज़रूरी तो नहीं हुआ कि केवल कोविड संबंधी काम ही हुए। कोष एक, काम अनेक। फिर मंदिर के लिए माहौल बनाये रखना भी ज़रूरी है।

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बात बोलेगी: सब सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

यह सब एक ऐसे समय में लिखा जा रहा है जब किसी को किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि किसी के साथ कुछ हो जाने से खुद उसे ही कुछ फर्क नहीं पड़ता। जब पीड़ितों को पीड़ा से फर्क न पड़े और उत्पीड़कों के लिए भी उत्पीड़न एक सामान्य बात हो जाए और यह सब एक व्यवस्था के तहत हो रहा हो तब सामुदायिक जीवन में फर्क पड़ने जैसा कोई भाव नहीं रह नहीं जाता है।

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बात बोलेगी: बारहवीं की सरकारी तेरहवीं और मेरिटोक्रेसी का मिडिल क्लास अचार

अचार की तरह हिंदुस्तान में बारहवीं कक्षा का इम्तिहान भी भविष्य के महलों की बुनियाद है। बारहवीं कक्षा की अंकसूची और उसका पर्सेंटाइल भी अचार की तरह का एक जायका है। इन दोनों तरह के जायकों पर ही जैसे मोदीयुग में संकुचित होते मध्यवर्ग का वजूद टिका है।

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बात बोलेगी: परेशानियों को पहचानने की सलाहियत से महरूम सरकार पर मुस्कुराता बुद्ध का चाँद

आज किसान पूरी दुनिया में भारत के राजदूत बन गये हैं। दुनिया सरकार की कम, किसानों की बातें ज़्यादा सुन रही हैं। सरकार इस बात से हलकान है। वह अपनी भड़ास उन माध्यमों पर निकाल रही है जिनके मार्फत आज के बुद्ध अपनी बात दुनिया तक पहुँचा रहे हैं। बुद्ध अगर आज हुए होते तो उन्हें दीक्षाभूमि में ही महदूद किये जाने की कोशिशें की जा रही होतीं। ठीक वैसे ही जैसे किसानों को सिंघू, गाजीपुर, टिकरी में घेर देने की कोशिशें की जा चुकी हैं।

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बात बोलेगी: खुलेगा किस तरह मज़मूं मेरे मक्तूब का या रब…

जिसके कहे पर देश चलने लगा था या उतना तो चलने ही लगा था जितनों की उँगलियों में देश की बागडोर सौंपने का माद्दा था, आज वे उँगलियां उस नीली स्याही को कोसती नज़र आ रही हैं जिसे वोट करते वक्‍त उन्‍होंने लगवाया था। ऐसी हर कम होती उंगली का एहसास इस विराट सत्ता को हो चुका है।

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बात बोलेगी: बीतने से पहले मनुष्यता की तमाम गरिमा से रीतते हुए हम…

हम पिछली सदी से ज़्यादा नाकारा साबित हुए। हमने संविधान को अंगीकार किया और अपनी आवाजाही और बोलने की आज़ादी पर बलात् तालाबन्दी को भी अंगीकार किया। हम एक अभिशप्त शै में तब्दील हो गये। हम न मनुष्य रहे, न नागरिक हो सके। हम कुछ और बन गये, जिसके बारे में अगली सदी में चर्चा होगी।

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बात बोलेगी: जीने के तमाम सुभीते मरने की आस में मर गए…

भारत का संविधान मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है उसमें भी मोक्ष का अधिकार देने की हैसियत नहीं है या उसने इसके बारे में कुछ नहीं सोचा किया। क्या प्रेरणादायी नरेन्द्र मोदी देश के संविधान में छूट गये अधिकारों का सृजन अपने नागरिकों के लिए कर रहे हैं?

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बात बोलेगी: दिल्ली ‘ज़फ़र’ के हाथ से पल में निकल गई…

दिल्ली में बदलाव की बयार हमेशा हलचल में रहती है। कभी बहुत धीरे तो कभी बहुत तेज। और कई बार इतनी तेज कि जब तक बातें समझ में आयें, यहां बदलाव हो जाता है। ‘’परिवर्तन संसार का नियम है’’ कहने वाले का ज़रूर कोई सीधा संबंध दिल्ली से रहा होगा।

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बात बोलेगी: भंवर में फंसी नाव के सवार

भंवर में फंसी एक नाव में हम सब सवार हैं। खेवैया बंगाल में चुनाव प्रचार कर रहा है। नाव डगमगाती है तो हमें ही संभालना है। डूबती है तो हमें ही डूबना है। और बच निकल आती है तो भी हमें ही बचना है। क्यों न इस बार कुछ नया होकर लौटें?

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बात बोलेगी: वबा के साथ बहुत कुछ आता है और जाता भी है!

महामारी की पैदाइश से लेकर आज की विभीषिका के इतिहास को जब लिखा जाएगा तो उनका भी नाम यहां आना चाहिए जो इसे लेकर आलोचनात्मक और तार्किक नज़रिये से बात करते आए। तब भी उन्हें संख्या बल के सामने हुज्जत झेलनी पड़ी, लेकिन गत एक सप्ताह के दौरान हम देख रहे हैं कि उन्हें लगभग बेइज्जती नसीब हो रही है।

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