यादगार क्यों रह जाएगा काशी में दिवंगत अनिल चौधरी का अंतिम तर्पण!

काशी की धरती और लोगों ने देर से सही, लेकिन अपने प्रिय गुरु दिवंगत अनिल चौधरी का सुव्‍यवस्थित, सुचिंतित और भव्‍य तर्पण किया। संयोग से, इस साल का पितृपक्ष कल से शुरू होने जा रहा है। इस मौके पर काशी और अनिल चौधरी को याद करने का केवल यह मंतव्‍य है कि उनकी आत्‍मा अब मुक्‍त होकर हजारों देहों के माध्‍यम से आने वाले समय में मुक्ति के सपनों को अपना स्‍वर दे।

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एक शख्स और उसके जीवन-मंत्रः अनिल चौधरी की याद में

उनके पास जाना ऐसे अभिभावक के पास जाना था, जिससे जिरह करते हुए आपको किसी format के बारे में नहीं सोचना था, आप अपने जैसे ही रहकर उनसे सवाल, बहस, चर्चा कर सकते थे। और इस बहस के बीच आपका खाना-पीना-सोना सब उनकी ही ज़िम्मेदारी होती थी। 

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स्मृतिशेष: अनिल चौधरी, एक प्रतिबद्ध जनसरोकार योद्धा​

अनिल चौधरी का जीवन हमें सिखाता है कि कैसे संस्थागत सीमाओं से परे जाकर, विचारधारा और प्रतिबद्धता के साथ सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। उनकी शिक्षाएं और संघर्ष हमें आज भी प्रेरित करते हैं कि हम लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के लिए निरंतर प्रयासरत रहें।​

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वो जो सवाल करता रहा… : अनिल चौधरी की याद में

उन्हें कभी ख़ुद को केंद्र में रहने का शौक़ नहीं था। उन्होंने हमेशा वह रास्ता चुना जो लंबा था, मुश्किल था, लेकिन जिसमें सांगठनिक प्रक्रियाओं का निर्माण था, लोगों की ताक़त बढ़ाने की कोशिश थी, और नीचे से नेतृत्व को उभारने की मेहनत थी। 14 अप्रैल 2025 को कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उनका निधन हुआ। वे शायद कोई श्रद्धांजलि सभा पसंद न करते, लेकिन उस इंसान की बात किए बिना नहीं रहा जा सकता जिसने न सिर्फ हम में से कई लोगों को, बल्कि उस राजनीतिक स्थान और माहौल को बनाने में चार दशकों में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

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