दक्षिणावर्त: सहस्रबुद्धि विमर्शों की ‘टोकरी में अनंत’ पाठों से बनता यथार्थ
क्या वाकई यह पहली सरकार है जिसने महिलाओं (कम से कम हिंदी साहित्य में) का सही में सम्मान किया है? या फिर ऐसा है कि बीते सात दशक के दौरान कृष्णा सोबती से लेकर चित्रा मुद्गल वाया अलका सरावगी, मृदुला गर्ग और नासिरा शर्मा (सभी उपन्यासकार) हिंदी की कोई कवियत्री अकादमी पुरस्कार के लायक हुई ही नहीं?
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