विश्व स्वास्थ्य दिवस: एक साफ, स्वस्थ विश्व के निर्माण का संकल्प


भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के पैमाने पर ‘‘जन स्वास्थ्य’’ एक जरूरी मसला है। सार्वजनिक जन स्वास्थ्य के बिना किसी भी व्यक्ति के लिए स्वस्थ और सुखी रहना नामुमकिन है। कोई व्यक्ति यदि महज धन सम्पत्ति के बदौलत यह सोचता है कि वह अच्छा स्वस्थ्य भी हासिल कर लेगा तो यह उसकी गलतफहमी है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) आज 72 वर्ष बाद भी दुनिया के स्वास्थ्य के लिए वैसे ही चिन्तित है जैसे अपनी स्थापना के समय (7 अप्रैल 1948) था। सन् 1950 से लगातार हर साल डब्लूएचओ विश्व स्वास्थ्य दिवस के बहाने दुनिया को स्वास्थ्य का संदेश बांट रहा है मगर यथार्थ है कि दुनिया में लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। आज व्यक्ति क्या पूरी पृथ्वी ही संकटग्रस्त है। हम विश्व स्वास्थ्य दिवस 2021 की बात करें तो यह बेहद दिलचस्प है कि हर वर्ष किसी एक रोग विशेष पर फोकस करने वाले डब्लूएचओ ने इस वर्ष (2021) सफाई और स्वास्थ्य को बेहतर दुनिया का पैमाना माना है। इस वर्ष की थीम है- ‘‘एक साफ, स्वस्थ विश्व का निर्माण।’’

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक बड़े योद्धा महात्मा गांधी स्वच्छता एवं नागरिक मूल्य (मानवता) को देश और दुनिया के पुनर्निमाण की बुनियादी शर्त मानते थे। स्वच्छता के लिए गांधी जी ने अपनी दिनचर्या में सुबह का एक दो घंटा आवश्यक रूप से समर्पित किया था। वे नारा लगाने एवं दिखावा करने की बजाय रोज सुबह अपने निवास एवं आसपास स्वयं सफाई करते थे। रोजाना संडास साफ करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। लाहौर के प्रसिद्ध कांग्रेस अधिवेशन में वे पूर्ण स्वराज्य की बजाय गन्दगी और सफाई पर खूब बोले थे। जब लोगों ने उनसे पूछा कि उन्होंने स्वराज्य पर क्यों नहीं बोला, तो गांधी जी ने कहा कि स्वतंत्रता पाने के लिए व्यक्ति को इसके लायक बनना होता है और इसके लिए व्यक्तिगत अनुशासन, साफ सफाई, इन्सानियत आदि सबसे पहली जरूरत है।

गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि नागरिक दायित्व और स्वच्छता राष्ट्रीय गौरव के आधार हैं। इसके साथ-साथ हम यह भी जान लें कि सफाई या स्वच्छता के बिना स्वास्थ्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इन दिनों पूरी दुनिया एक महामारी (कोविड-19)  से ग्रस्त है। वर्ष 2020 से चले आ रहे कोरोना वायरस संक्रमण की भयावहता के बावजूद डब्लूएचओ इस वर्ष साफ-सफाई या स्वच्छता की बात कर रहा है। सोचिए क्यों? वायरस, बैक्टीरिया, सूक्ष्मजीवी या अन्य रोग उत्पन्नकारी तत्व गन्दगी में ही पनपते और बढ़ते हैं। आधुनिकता के नाम पर अपनाई गई आधुनिक जीवनशैली, सुविधाभोगी तकनीक एवं अप्राकृतिक आदतों ने न केवल हमारे पर्यावरण को गन्दा किया बल्कि उसे जीवन लायक भी नहीं छोड़ा। प्रदूषण, गन्दगी, प्राकृतिक संसाधनों का विनाश, मानव-मानव में भेद, लोभ आदि विकृतियों ने ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी कि न तो हमारी जगह रहने लायक बची और न ही हमारा स्वास्थ्य बचा। आज दुनिया बीमारियों का पर्याय बनती जा रही है। विकास की वर्तमान अवधारणा देश-दुनिया में बहकाकर विनाशकारी भविष्य की ओर धकेल रही है। नयी बीमारियों के नाम पर अस्पतालों में मरीजों की जेब की लूट के अलावा और क्या है? जीवनशैली के रोग खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। मर्ज बढ़ते ही जा रहे हैं जितनी दवा की जा रही है। इसलिए आज हर व्यक्ति को सोचने की जरूरत है कि मुकम्मल स्वास्थ्य के लिए दीर्घकालिक उपाय क्या और कैसे किये जा सकते हैं? डब्लूएचओ के वर्ष 2021 का विश्व स्वास्थ्य दिवस का मुख्य प्रसंग इसीलिए ‘‘स्वच्छता’’ पर केन्द्रित है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए स्वच्छता एवं स्वास्थ्य वैसे तो शुरू से ही महत्वपूर्ण मुद्दे रहे हैं लेकिन विगत कई दशकों से संगठन का फोकस विभिन्न रोगों से सम्बन्धित चुनौतियों पर रहा है। कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि ‘‘जन स्वास्थ्य’’ एक महत्वपूर्ण मुद्दा होते हुए भी वैश्विक चिन्ता नहीं बन पाया। संगठन के अब तक के सालाना आयोजन ‘‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’’ पर जन स्वास्थ्य के विषय बहुत कम ही चर्चा में आए। उदाहरण के लिए, 1992 में हृदय की गति, 1994 में मुंह का स्वास्थ्य, 1995 में पोलियो, 1998 में मातृत्व, 1999 में वृद्धावस्था, 2002 में मानसिक रोग, 2005 में बच्चों का स्वास्थ्य, 2005 में मां और शिशु, 2009 में अस्पताल, 2011 में दवाओं की प्रभावहीनता, 2013 में उच्च रक्तचाप, 2016 में मधुमेह, 2017 में अवसाद, 2020 में स्वास्थ्य परिचारिका आदि विश्व स्वास्थ्य दिवस के विषय रहे।

चूंकि जन स्वास्थ्य  का मुद्दा संगठन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है इसीलिए ‘‘सन 2000 तक सबको स्वास्थ्य’’ का लक्ष्य तय किया गया, फिर सहस्त्राब्दि लक्ष्य, उसके बाद टिकाऊ विकास लक्ष्य तय किये गए। हर बार पुराने लक्ष्य के बदले नयी शब्दावली में नये लक्ष्य तय होते रहे लेकिन हासिल वही ढाक के तीन पात!

भारत में स्वास्थ्य की स्थिति पर नज़र डालें तो सूरत-ए-हाल और चिन्ताजनक है। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी खस्ता है। अन्य देशों की तुलना में भारत में कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 4 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है जबकि चीन 8.3 प्रतिशत, रूस 7.5 प्रतिशत तथा अमेरिका 17.5 प्रतिशत खर्च करता है। विदेश में हैल्थ की बात करें तो फ्रांस में सरकार और निजी सेक्टर मिलकर फंड देते हैं जबकि जापान में हैल्थकेयर के लिए कम्पनियों और सरकार के बीच समझौता है। आस्ट्रिया में नागरिकों को फ्री स्वास्थ्य सेवा के लिए ”ई-कार्ड“ मिला हुआ है। हमारे देश में फिलहाल स्वास्थ्य बीमा की स्थिति बेहद निराशाजनक है। अभी यहां महज 28.80 करोड लोगों ने ही स्वास्थ्य बीमा करा रखा है, इनमें 18.1 प्रतिशत शहरी और 14.1 ग्रामीण लोगों के पास हैल्थ इंश्योरेंस है।

इसमें शक नहीं है कि देश में महज इलाज की वजह से गरीब होते लोगों की एक बड़ी संख्या है। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान एम्स के एक शोध में यह बात सामने आई है कि हर साल देश में कोई 8 करोड लोग महज इलाज की वजह से गरीब हो जाते हैं। यहां की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था ऐसी है कि लगभग 40 प्रतिशत मरीजों को इलाज की वजह से खेत-घर आदि बेचने या गिरवी रखने पड़ जाते है। एम्स का यही अध्ययन बताता है कि बीमारी की वजह से 53.3 प्रतिशत नौकरी वाले लोगों में से आधे से ज्यादा को नौकरी छोड़नी पड़ जाती है।

विश्व स्वास्थ्य दिवस 2021 के बहाने मैं अपने देश की जनता से एक विनम्र अपील करना चाहता हूं। यह अपील दरअसल जुमलों और नारों का खेल खेल रही सरकारों के कोरे वादे के उलट अपनी सेहत और देश-दुनिया तथा पर्यावरण की सेहत के लिए बेहद जरूरी है। मेरी अपील है कि मानवता और प्रकृति की बेहतरी के लिए देश और दुनिया का प्रत्येक नागरिक रोजाना ‘‘एक घंटा देह को और एक घंटा देश’’ को दे। अपने इस रोजाना एक घंटा के समर्पण में प्रत्येक व्यक्ति नियमित व्यायाम, योग, शारीरिक अभ्यास, दौड़, साइकिल आदि की मदद से अपने शरीर की सेवा करे। यदि देश और दुनिया में सभी लोग नियमित और ईमानदारी से अपने शरीर की प्राकृतिक देखभाल शुरू कर दें तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि लोगों के रोगों में 70-80 फीसद की कमी आ जाएगी। इसके साथ साथ नियमित प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक दिनचर्या, पर्यावरण सम्मत जीवनशैली, पहनावा, रहन सहन आदि काफी हद तक लोगों को रोग से बचाएंगे।

‘‘एक घंटा देश को’’ अभियान के तहत हम सभी रोजाना अपने आस-पड़ोस, गली मुहल्ले, सड़क, नाली आदि की साफ सफाई करें। यदि व्यक्ति स्वयं और अपने परिवेश को साफ रखे तो उसका पर्यावरण स्वतः साफ होने लगेगा। प्रकृति के पंच तत्व, मिट्टी, हवा, पानी, अग्नि और आकाश की शुद्धता एवं व्यापकता पूरे ब्रह्मांड की जीने लायक बनके रखेगी और हम दीर्घकाल तक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

विश्व स्वास्थ्य दिवस 2021 का यही संदेश पूरी दुनिया में स्वास्थ्य और स्वच्छता और क्रांति ला सकता है, यदि हम व्यक्तिगत स्तर पर इस संदेश का मर्म समझें और आज से ही उस पर अमल करना शुरू कर दें। चिकित्साशास्त्र में एक महत्वपूर्ण विषय है हाइजिन या प्रिवेंटिव एवं सोशल मेडिसिन। हाइजिन का मतलब होता है- स्वास्थ्य की कला। इस शब्द का उद्भव फ्रांस से है। इस अवधारणा में व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए साफ सफाई को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इसके लिए आपको नियमित हाथ धोना, शरीर को साफ रखना, शौच की नियमित क्रिया के साथ साथ अपने परिवेश को साफ और सुन्दर रखने को सुनिश्चित करना है। यदि हमने यह संकल्प ले लिया तो समझिए स्वास्थ्य का प्रसार शुरू हो जाएगा और हम दीर्घजीवी स्वस्थ लोगों की श्रेणी में आ जाएंगे। यह बेहद आसान है। क्या हम और आप यह संकल्प ले सकते हैं?


लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं तथा जनपथ पर तन मन जन नाम से जन स्वास्थ्य पर केंद्रित कॉलम लिखते हैं।


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