उत्तर प्रदेश की राजनीति में रामपुर और आजमगढ़ की सीटें अब भाजपा की झोली में हैं। रामपुर में मिली हार का कारण सीधे तौर पर आज़म खान की बीते कई महीनों की जेल यात्रा से उपजी गैर-हाजिरी को माना जा रहा है। उससे बड़ी आग पूर्वांचल में लगी है। सपा का सबसे मजबूत किला, जहां से कभी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने क्रमशः 2014 और 2019 में चली भाजपा लहर में भी जीत का परचम लहराया था, वहां से अब भाजपा के दिनेश लाल यादव उर्फ़ निरहुआ संसद सदस्य निर्वाचित हुए हैं। तमसा और सरयू के किनारों पर अब भगवा लहरा रहा है।
आजमगढ़ और आर्यमगढ़ की लड़ाई कुछ देर के लिए फिर से थम गयी है और सपा का किला कुछ समय के लिए भाजपा के हाथों में जा चुका है। रामपुर के साथ आजमगढ़ हारने से सपा खेमे की आशाओं पर भारी तुषारापात हुआ है क्योंकि आजमगढ़ की सीट को आसानी से जीता हुआ मान कर सपा का शीर्ष नेतृत्व आखिरी समय तक चैन से बैठा हुआ था, लेकिन इन उपचुनावों के नतीजों के बाद अब 2024 में होने वाले आम चुनावों के सन्दर्भ में सपा को गहरे आत्ममंथन की आवश्यकता पड़ेगी। चुनाव की तारीख तय होने के दिन से ही सपा खेमा इस बात को लेकर आश्वस्त था कि आजमगढ़ में उनकी लड़ाई भाजपा से है और बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली लड़ाई से बाहर रहेंगे, ऐसे में उपचुनाव में इस लड़ाई का त्रिकोणीय बन जाना आपने आप में कई राजनैतिक सन्देश एक साथ दे रहा है।
आंकड़ों का गणित बिलकुल सरल है। 2014 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ खड़े हुए तत्कालीन भाजपा उम्मीदवार रमाकान्त यादव को 277102 वोट मिले थे। मुलायम सिंह यादव को 3,40,306 वोट मिले थे। सपा का वोट प्रतिशत 35.43 और भाजपा का 28.85 था। गुड्डू जमाली को 2014 में 266528 वोट मिले थे और उनके वोटों का प्रतिशत 27.75 था। 2019 में बसपा-सपा गठबंधन के उम्मीदवार अखिलेश यादव के खिलाफ खड़े हुए निरहुआ को 361704 वोट मिले। उनके कुल वोटों में 84602 वोटों का इज़ाफा हुआ। सपा को 60 प्रतिशत और भाजपा को 35 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 की तुलना में भाजपा को 2019 में लगभग सात प्रतिशत की बढ़त मिली थी।
बहरहाल, सपा खेमे में बैठे जानकारों ने इस बढ़त को तवज्जो नहीं दी और आजमगढ़ को अभेद्य मजबूत किला मानते हुए 2022 आने तक इंतज़ार किया। विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आजमगढ़ जनपद की 10 विधानसभा सीटें सपा को मिल जाने के बाद पार्टी खेमे में जश्न का माहौल था लिहाजा इस बात पर विवेचना करना भी शायद ज़रूरी नहीं समझा गया कि 2022 के विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ की इन दस सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 10 से बढ़कर 29 प्रतिशत हो गया है। ऐसे में 2022 के उपचुनाव में भाजपा को 312768, सपा को 304089 और बसपा को 266210 वोट मिले हैं, यानि भाजपा का वोट प्रतिशत 34.39 और क्रमशः सपा व बसपा का वोट प्रतिशत 33.44 और 29.27 है। इस उपचुनाव में कुल मतदान मात्र 49.43 प्रतिशत ही हुआ था लेकिन हार के निशान इन्हीं आंकड़ों में छुपे हुए हैं।
विधानसभावार वोट
लोकसभा उपचुनाव 2022
पार्टी | गोपालपुर | सगड़ी | मुबारकपुर | आज़मगढ़ | मेंहनगर |
भाजपा | 59584 | 59278 | 51670 | 74976 | 66654 |
सपा | 61150 | 53059 | 58684 | 68579 | 62365 |
बसपा | 48389 | 48781 | 67849 | 49107 | 51980 |
विधानसभावार नतीजों से स्पष्ट है कि सपा गोपालपुर सीट को छोड़ कर आजमगढ़ लोकसभा के अंतर्गत आने वाली बची हुई चारों सीटें हार चुकी है।
विधानसभा चुनाव 2022
पार्टी | गोपालपुर | सगड़ी | मुबारकपुर | आज़मगढ़ | मेंहनगर |
भाजपा | 84,777 | 60,578 | 51,623 | 84,777 | 72,811 |
सपा | 100,813 | 83,093 | 80,726 | 100,813 | 86,960 |
बसपा | 39,281 | 41,006 | 48,734 | 39,281 | 50,173 |
चाचा से बैर हार का बड़ा कारण
आजमगढ़ उपचुनाव में भाजपा खेमे ने सपा को संगठनात्मक चोट भी दी। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने जहां एक तरफ लखनऊ छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अभिषेक सिंह उर्फ़ आशू को पार्टी की सदस्यता दिलवा कर सपा के बचे-खुचे अगड़ी जातियों के वोट बैंक में सेंध मार दी वहीँ दूसरी तरफ शिवपाल यादव की अनुकम्पा से पार्टी के संस्थापक सदस्य और यदुवंशियों के कद्दावर स्थानीय नेता रामदर्शन यादव को भी भाजपा ने अपने साथ ले लिया। एक रैली में पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हैलीपैड से ही रामदर्शन को अपने साथ ले लिया और मंच पर उनकी शान में कसीदे काढ़े। ऐसे में यादव वोटों का भी एक ठीकठाक हिस्सा भाजपा के खेमे में आसानी से चला गया। पट्टीदारी-नातेदारी और दुनियादारी के समन्वय के इस पुरबिया खेल में शिवपाल यादव अखिलेश से चार कदम आगे चल रहे थे।
दलित वोटों का ध्रुवीकरण
लगभग 30 प्रतिशत यादव और 12 प्रतिशत मुस्लिम वोटों के आंकड़ों की बाजीगरी के बीच मुस्लिम-यादव गठजोड़ का पहाड़ा पढ़ते-पढ़ाते सपा आजमगढ़ लोकसभा के लगभग 24 प्रतिशत दलित वोटों को भूल ही गयी और गुड्डू जमाली के वोटों के संख्या कमोबेश उतनी ही रही जितने उन्हें 2014 में मिले थे। ऐसे में यह स्पष्ट है कि दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा में गया है। बचा-खुचा काम आजमगढ़ लोकसभा की अगड़ी जातियों और गैर-यादव पिछड़े वोटों ने कर दिया और निरहुआ जी के संसद सदस्य होने का रास्ता साफ़ होता चला गया।
काम न आया सोशल मीडिया का प्रचार तंत्र
सपा ने सोशल मीडिया पर चुनाव जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन ज़मीन पर सपा प्रमुख की गैर-मौजूदगी, चुनाव समितियों के बीच आपसी समन्वय और तालमेल में भारी कमी और विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ के आंकड़ों से उपजे आत्मविश्वास ने रही-सही कमी पूरी कर दी। जीता हुआ चुनाव मान कर सोशल मीडिया पर हुंकार भरने का खमियाज़ा यह हुआ कि बना-बनाया वोट बैंक खिसक कर बसपा और भाजपा में बँट गया। साथ ही सपा के स्थानीय नेताओं समेत आजमगढ़ में लगातार कैम्प कर रहे पूर्वांचल के अन्य क्षेत्रीय नेताओं की मेहनत पर भी पानी फिर गया।
चर्चा में रही प्रथम परिवार की गैर-मौजूदगी
उपचुनाव के लिए पिछले दिनों चल रहे प्रचार के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्यों की ग़ैर-मौजूदगी लगातार चर्चा का विषय बनी रही। कभी आजमगढ़ से ही सांसद रहे अखिलेश यादव का प्रचार में न आना मतदाताओं के बीच गलत सन्देश दे गया। यहां तक कि नेताजी मुलायम सिंह यादव को भी इस चुनाव से दूर रखे जाने और डिम्पल यादव समेत परिवार के अन्य सदस्यों की गैर-मौजूदगी के बाबत शुरू से अंत तक तरह-तरह के कयास लगते रहे। जहां एक तरफ भाजपा ने अपनी पूरी ताकत आजमगढ़ में झोंक दी थी वहीँ दूसरी तरफ सपा से डॉ. रामगोपाल यादव समेत कई अन्य वरिष्ठ नेताओं की दूरी से सपा के वोट समूहों में निराशा का माहौल था।
बने हैं कुछ नये समीकरण
गौरतलब है कि आजमगढ़ लोकसभा के अंतर्गत मेंहनगर, आजमगढ़ सदर, मुबारकपुर, सगड़ी और गोपालपुर विधानसभा सीटें आती हैं। इन सीटों पर यादव और मुस्लिम वोटर की संख्या अधिक है। इनके अलावा दलित और कुर्मी वोटर भी निर्णायक भूमिका में हैं। पिछला लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद स्थानीय स्तर पर दिनेश लाल उर्फ़ निरहुआ का क्षेत्र में आना-जाना लगा हुआ था, इसका फायदा उन्हें मिला और सपा के अधिकांश वोटर भाजपा में स्थानांतरित हो गए। दूसरी तरफ भारी संख्या में मुस्लिम वोट शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मिल जाने से सपा के धर्मेंद्र यादव को दोतरफा नुकसान हुआ।
तल्ख़ रिश्ते भी बने हार का कारण
मीडिया में आजम खां और अखिलेश यादव के बीच मतभेद की खबरों के साथ अखिलेश-शिवपाल के बीच चल रही तल्खियों की खबरें भी खूब सामने आयीं। ऐसे में शिवपाल और आज़म समर्थकों तथा अखिलेश समर्थकों के बीच भी इन उपचुनावों के दौरान लगातार आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा। विधानसभा चुनाव के बाद आजम खां के समर्थकों ने आरोप लगाया कि अधिकांश यादव मतदाताओं ने ही सपा को वोट नहीं दिया। वहीं, बुलडोजर व अन्य मामलों में मुस्लिमों का साथ न देने का आरोप भी सपा पर लगा। ऐसे में मुसलमानों की एक अच्छी-खासी संख्या का भी सपा से मोह भंग हुआ। आजमगढ़ में अल्पसंख्यक समुदाय ने बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली पर ज्यादा भरोसा जताया, ऐसे में मुस्लिम वोटों का बँटवारा हुआ तो दूसरी तरफ निरहुआ को यादव के साथ-साथ दलित और कुर्मी वोट भी मिले।
कम मतदान प्रतिशत भी बना हार का कारण भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव और सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव के बीच जहां एक तरफ कांटे की टक्कर थी वहीँ वोटों का अंतर लगातार घट-बढ़ रहा था, लेकिन इसी बीच बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली भी लगातार बढ़त बनाए हुए थे। आधे वोटों की गिनती के बाद यह स्पष्ट होने लगा था कि निरहुआ की बढ़त सभी विधानसभा क्षेत्रों से समानांतर रूप से हो रही है। आजमगढ़ में इस उपचुनाव में सिर्फ 49 प्रतिशत वोट पड़े थे, ऐसे में कोर मतदाताओं की उदासीनता का खमियाज़ा भी सपा को ही भुगतना पड़ा।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं