लगभग 50 दिनों से हम सभी लॉकडाउन के चलते अपने अपने घर में रहकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण के मामलों की आये दिन बढ़ती संख्या से लगता है कि जैसे लॉकडाउन का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा किन्तु यह तथ्य एकदम आधारहीन है। केवल लॉकडाउन के कारण ही दुनिया के दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश मे गरीबी, बेरोजगारी और विकासशील अर्थव्यवस्था होने के बावजूद इतने लंबे समय तक लॉकडाउन जारी रखना सरकार का बेहद सूझबूझ भरा, समयानुसार निर्णय था और केवल इसी कारण 135 करोड़ की जनसंख्या के अनुपात में भारत मे कोरोना पॉज़िटिव केस विकसित देशों जैसे अमेरिका, इटली, स्पेन के अनुपात से कम हैं। यद्यपि यह संख्या कम नहीं हो रही है जो कि चिंता का विषय है, लेकिन लगभग हर राज्य इस महामारी से उबरने के लिए लगातार हर सम्भव प्रयास कर रहा है।
इतना लंबा समय किसी भी व्यक्ति के लिए साधारण परिस्थितियों में घर में रह कर बिताना असम्भव होता है। अब जबकि लोगों को लगभग दो महीने का यह समय अपने लिए मिल गया, तो यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि आपने इस दौरान क्या किया। जानते तो सभी हैं लेकिन तथ्यों की भाषा को स्वीकारते भी हैं इसलिए यहां कुछ आंकड़े स्पष्ट करना आवश्यक है। लॉकडाउन के बाद भारत का इंटरनेट प्रयोग पहले की तुलना में 13 प्रतिशत बढ़ा और टेलीकॉम मिनिस्ट्री के अनुसार 22 मार्च के बाद से हर दिन लगभग 308000 टेराबाइट डाटा प्रयोग किया गया। इससे स्पष्ट है कि ऑनलाइन वीडियो, गेम्स, बड़ी एपीके फाइल्स की डाउनलोडिंग इधर बीच अधिक रही।
बिजनेस टुडे के एक सर्वे के अनुसार लॉकडाउन के बाद से सोशल मीडिया के प्रयोग में 87 प्रतिशत वृद्धि हुई तथा इसका औसत प्रतिदिन प्रयोग 150 मिनट से बढ़कर 280 मिनट हो गया। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप इस दौरान सबसे अधिक प्रयोग होने वाली सोशल मीडिया साइट्स रही। एप एनी के डाटा के अनुसार 25 मार्च से 3 मई के बीच ऑनलाइन गेम्स डाउनलोड में 75 प्रतिशत वृद्धि हुई।
ये सभी आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं और मनोवैज्ञानिको, समाजशास्त्रियों तथा अर्थशास्त्रियों के लिए शोध के विषय भी हैं। काश, ऐसी वृद्धि देश की जीडीपी में हुई होती तो देश आज कहां होता, लेकिन जो हुआ है उससे सिद्ध होता है कि अधिकतर लोगों ने इंटरनेट का अंधाधुंध प्रयोग किया, लगभग हर एप्लिकेशन पर उपलब्ध हर वेब सीरीज़ ऐसे देख डाली जैसे यह टास्क पूरा किये बिना उन्हें प्रमोशन नहीं मिल पाएगा। लूडो किंग की लोगों ने इतनी प्रैक्टिस की है कि यदि यह खेल ओलंपिक में शामिल हो जाये तो भारत के कई गोल्ड मेडल पक्के हैं।
मनोरंजन आवश्यक है लेकिन व्यसन की हद तक नहीं। इस महामारी के समय नकारात्मक विचारों से बचने के लिए कुछ समय इन सब माध्यमों से तरोताजा होने के लिए किया जा सकता है लेकिन 50 दिन के 72000 मिनटों में से एक-तिहाई ऐसे ही व्यर्थ कर देना कौन सी बुद्धिमत्ता है?
संस्कृत में एक श्लोक है –
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः! ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति!!
अर्थात जिन मनुष्यों के पास विद्या, तप, दान की भावना, ज्ञान, शील (सत्स्वभाव), मानवीय गुण, धर्म में संलग्नता का अभाव हो वे इस मरणशील संसार में धरती पर बोझ बने हुए मनुष्य रूप में विचरण करने वाले पशु हैं।
वर्चुअल वर्ल्ड में फंसा मनुष्य मृग के रूप में विचरण ही तो कर रहा है। क्या उक्त गुणों के विकास के लिए, आत्मावलोकन के लिए, वृद्ध सेवा के लिए, अंतर्निहित रुचियों के पुनर्पल्लवन के लिए यह समय नहीं था? क्या एक स्मॉर्टफ़ोन मे आपकी ज़िंदगी सिमट गयी है? क्या यह डिवाइस आपसे ज्यादा स्मार्ट है? और अगर है तो इस समय आपको आत्मविश्लेषण की जरूरत है।
विचारहीन बनकर एक मशीनी दिनचर्या जीने वाले लोगों को सोचना चाहिए कि उनके मन, शरीर और अध्यात्म इन सभी में किसी एक भी पक्ष की उन्नति इतने समय मे वे कर पाये या नहीं। ऊर्जा और समय का कभी भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। समय आपको दूसरा मौका नहीं देगा और ऊर्जा उत्तरोत्तर कम होती जाएगी। आलोचना को बाधा समझने वालों से भी अपील है की आलोचना को बाधा नहीं बल्कि उत्प्रेरक समझें। निंदा ही सुधार का रास्ता दिखती है।
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय
लेखक समाजशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं
Wah bikul sahi baat boli ..Ye hi reality h.is time ko sabhi ko logo ko jagrook karne ..Society k bhale k liye karna tha ..Jabki logo ne sirf apne apne swarth ko importent deker ek kaidi ki tarha jeevan bitaya h.ab ek jail me saja kat raha kaidi or ek insan ghar me lockdown me time kat raha h .Dono me koi anter nhi h
Scintillating. Indian society should think over it weather we should live in virtual world or in real one. Thought provoking genius article by Prof Prashant jee. Nice endeveour. Liked it !
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