बुधवार के द इंडियन एक्सप्रेस में पेज 8 पर दो खबरें ऊपर-नीचे छपी हैं। दोनों खबर ‘एक्सप्रेस न्यूज़ सर्विस’ के हवाले से छपी है। पहली खबर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की है जो 15 साल की एक दलित लड़की को कथित तौर पर जलाकर मारे जाने से जुड़ी है जबकि दूसरी खबर बिहार की है। इसमें भी एक लड़की को कथित रूप से जलाकर मारे जाने की सूचना है।
बुलंदशहर वाली पहली खबर में एसएसपी संतोष कुमार सिंह के मुताबिक 15 अगस्त 2020 को पीड़िता के साथ बलात्कार हुआ था। आरोपित को गिरफ्तार कर लिया गया था। वह अब भी जेल में बंद है। सिंह ने बताया, ‘’मंगलवार को हमें सूचना मिली कि वही लड़की संदेहास्पद स्थिति में जल गयी है। रात के 11 बजे तक ऐसा लगा कि उसने आत्महत्या की कोशिश की थी, लेकिन परिवार की शिकायत के मुताबिक 7 लोगों ने उसे जलाकर मारने की कोशिश की है।‘’
पीड़िता के परिवार के मुताबिक जिन लोगों ने उसे जलाकर मारने की कोशिश की वे आरोपित के सम्बंधी और सहयोगी हैं, जिसके ऊपर पोस्को और एससी/एसटी एक्ट लगाया गया है। पीड़िता के चाचा के मुताबिक सोमवार को शाम साढ़े आठ बजे उनके मोबाइल पर अज्ञात नंबर से फोन आया जिसमें उन पर अपनी शिकायत वापस लेने के लिए दबाव डाला गया और धमकाया गया कि अगर शिकायत वापस नहीं ली तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें। उनके मुताबिक, ‘’मंगलवार की सुबह साढ़े नौ बजे मुझे पता चला कि जब पीड़िता के मां-बाप घर में मौजूद नहीं थे तब आरोपितों ने उसे जला दिया।‘’ एसएसपी के मुताबिक पुलिस दोनों घटनाओं को जोड़कर घटना की जांच-पड़ताल कर रही है।
जिन लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गयी है उनके नाम हैं संजय बनवारी, बदन सिंह, वीर सिंह, जसवंत सिंह, गौतम और काजल। पुलिस के मुताबिक वे पीड़िता के घर के नजदीक ही रहते हैं। बाद में बलात्कार पीड़िता की दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गयी।
दूसरी घटना बिहार की है जो पटना डेटलाइन से छपी है। खबर के मुताबिक विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि वैशाली की 20 साल की एक लड़की की हत्या का मामला चुनाव के कारण पुलिस ने दर्ज नहीं किया। मंगलवार को पुलिस ने इस घटना से जुड़े मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया और घटना के 17 दिनों के बाद एक पुलिस अघिकारी को सस्पेंड किया गया है। राहुल गांधी ने मंगलवार को ही राज्य सरकार पर आरोप लगाया था कि चुनाव के चलते इस घटना को वह छुपा रही थी।
यह घटना देसरी पुलिस थाने के अंतर्गत 30 अक्टूबर को घटी थी, जब गुलनाज़ खातून के ऊपर सतीश राय, विजय राय और चंदन राय ने कथित रूप से मिट्टी का तेल डालकर उसे जिंदा जलाने की कोशिश की थी। गुलनाज़ के परिवार वालों के मुताबिक गांव का ही सतीश राय उसके पीछे पड़ा था और शादी करने के लिए लगातार दबाव डाल रहा था। इस बात को लेकर पहले वह हाजीपुर शहर पुलिस के पास गयी थी जहां से पुलिस ने उसे देसरी पुलिस थाने जाने को कहा।
मामला 2 नवंबर को दर्ज हो सका क्योंकि पुलिस चुनाव-कार्य में व्यस्त थी, हालांकि पुलिस ने पीड़िता का बयान दर्ज कर लिया लेकिन तीनों आरोपितों में से किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। इस बीच पीड़िता को पटना मेडिकल कॉलेज में रेफर कर दिया गया और रविवार, 15 नवंबर को उसकी मौत हो गयी।
ख़बर के मुताबिक वैशाली के एसपी मनीष कुमार ने कहा, ‘’हमने चंदन राय को गिरफ्तार कर लिया है और बाकी दोनों आरोपितों को जल्दी ही गिरफ्तार कर लेंगे।‘’ अखबार के मुताबिक ‘’गांव में हिन्दू और मुसलमानों की मिलीजुली आबादी है। तीनों आरोपित यादव हैं और दबंग जाति से आते हैं।‘’ 20 वर्षीय पीड़िता की मां ने कहा कि उसने गांव में सबसे गुहार लगायी लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की।
अब इन दोनों घटनाओं में इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टिंग को गौर से पढ़ें। दोनों ही मामले में पीड़िता को कथित रूप से जलाकर मार डाला गया। एक मामले में पीड़िता दलित थी, दूसरे मामले में पीड़िता मुसलमान थी, मतलब दोनों ही सामाजिक स्तर पर कमजोर थीं। बुलंदशहर की घटना में जिनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ है उनके सिर्फ नाम हैंः संजय बनवारी, बदन सिंह, वीर सिंह, जसवंत सिंह, गौतम और काजल। इनकी जाति का अलग से कोई जिक्र नहीं है, परन्तु बिहार के वैशाली वाले मामले में आरोपितों ने नाम के साथ-साथ उनकी जाति भी बतायी गयी है क्योंकि दिये गये नामों से जाति का पता नहीं चलता है- सतीश राय, विजय राय और चंदन राय। इस मामले में अखबार दर्द लेकर यह बताना नहीं भूलता है कि ‘’तीनों आरोपित यादव हैं जो दबंग जाति से आते हैं’’।
इंडियन एक्सप्रेस ने एक ही पेज पर ऊपर और नीचे दोनों खबरें छापी हैं, लेकिन स्टोरी लिखने वाले या लिखवाने वाले अथवा संपादन करने वाले के मन में किस तरह की जातिगत वैमनस्यता है, दोनों खबरों को प्रस्तुत किये जाने का अंतर इस बात को प्रमाणित करता है।
कायदे से जिस किसी ने भी इस खबर को लिखा है या लिखवाया है, उसे दोनों ही मामले में आरोपितों की जाति का या तो जिक्र करना चाहिए था या फिर किसी में नहीं करना चाहिए था। पहली घटना चूंकि दलित लड़की से जुड़ी है, इसलिए उस मामले में आरोपितों की जाति की पहचान भी दर्ज करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि मेरा अनुमान है कि वे सभी आरोपित संभवतः राजपूत होंगे। बिहार के वैशाली वाली घटना में पीड़िता मुसलमान है और आरोपित व्यक्ति नाम से राय है, इसलिए उस घटना में रिपोर्टर या डेस्क पर बैठे व्यक्ति को आरोपित की जाति का जिक्र करना अनिवार्य लगा और सरनेम राय होने के बावजूद उसे अलग से यह बताना जरूरी लगा कि उसकी जाति क्या है।
इंडियन एक्सप्रेस में एक ही तरह की दो घटनाओं के लिए ऐसी रिपोर्टिंग इसलिए हुई है क्योंकि यह न्यूजरूम में डायवर्सिटी से जुड़ा मसला है। कायदे से एक जैसी दोनों ही खबरों में दोनों ही मामले के आरोपितों की जाति का जिक्र किया जाना चाहिए था और किसी एक में नहीं हुआ तो दूसरी में भी नहीं होना चाहिए था।
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अब इन दोनों खबरों के निहितार्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में दलितों को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। यहां दलितों को प्रताड़ित करने की घटनाएं आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद बेतहाशा बढ़ी हैं, जिसमें सामान्यतया सवर्णों की भूमिका होती है। हो सकता है कि सातों आरोपित सवर्ण हों और यह भी हो सकता है कि वे ठाकुर हों। अगर सचमुच आरोपित ठाकुर हैं तो राज्य सरकार की ज्यादा बदनामी हो सकती थी क्योंकि राज्य का मुखिया योगी आदित्यनाथ ठाकुर है। इसलिए यह मामला राज्य के मुख्यमंत्री को बचाने का भी लगता है।
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दूसरी खबर में तीनों आरोपितों राय की जाति का जिक्र करना भी एक षडयंत्र है क्योंकि राय सरनेम से जाति का पता नहीं चलता है। अभी कुछ दिन पहले संपन्न हुए चुनाव में माय (मुसलमान और यादव) का काफी जिक्र हुआ है। यह इस षडयंत्र का भी नतीजा हो सकता है कि जिसके द्वारा यह बताया जाए कि यादव समाज के लोग मुसलमानों को अधिक प्रताड़ित कर रहे हैं, जिनके साथ वे (मुसलमान) राजनीतिक गठबंधन बनाना चाहता है!
इसलिए न्यूजरूम में डायवर्सिटी (बहुलता) के साथ-साथ संवेदनशील इंसान को लाया जाना बहुत जरूरी है, अन्यथा समाज में वैमनस्यता फैलती रहेगी।