छत्तीसगढ़ का बीजापुर वो जिला है जहाँ से प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अपनी महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना शुरू की थी। उसी बीजापुर के तर्रेम के जंगलों में शनिवार को माओवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के 22 जवानों की मौत हुई है और दो दर्जन से ज्यादा घायल हुए हैं। पिछले 15 दिनों के दौरान हुई यह दूसरी बड़ी नक्सली वारदात है। इसके पहले 23 मार्च को माओवादियों ने आइडी से सुरक्षाबलों की बस को उड़ा दिया था जिसमें पांच जवान शहीद हुए थे।
हत्याओं का यह दौर उस वक्त चल रहा है जिस वक्त छत्तीसगढ़ में कोरोना की वजह से हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। तमाम बड़े शहर लॉकडाउन में हैं और कोविड से होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दुखद यह है कि इतनी बड़ी घटना घटने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने एक माह पहले पदस्थापित हुए सीआरपीएफ डीजी कुलदीप सिंह को छत्तीसगढ़ भेजकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है।
इंटेलिजेंस फेल्योर की कीमत
बीजापुर की घटना उस वक्त घटी है जब केन्द्रीय सुरक्षा बल और राज्य पुलिस के दो हजार से ज्यादा जवान एक साथ काम्बिंग आपरेशन में निकले थे। छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद घटी यह अब तक की सबसे बड़ी घटना है। बीजापुर में हुए माओवादी आपरेशन में लगभग 600 माओवादियों के शामिल होने की बात कही जा रही है। बताया जा रहा है कि माओवादियों की सेन्ट्रल कमेटी में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर रहा माडवी हिडमा इस पूरे आपरेशन को लीड कर रहा था। हिडमा सेन्ट्रल कमेटी में कम उम्र के बावजूद आदिवासियों के बड़े चेहरे के तौर पर देखा जाता है। उस पर 40 लाख का इनाम घोषित है।
इस घटना में मृतकों के बारे में जानकारी देते हुए छत्तीसगढ़ के डीजी डीएम अवस्थी कहते हैं कि शहीद हुए जवानों में 6 एसटीएफ, 8 कोबरा,1 सीआरपीएफ और 8 डिस्ट्रिक्ट रिजर्व पुलिस के जवानों की मौत हुई है यानि कि ज्यादातर छत्तीसगढ़ पुलिस के जवान मारे गए हैं। एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि न केवल प्लानिंग के लेवल पर बल्कि आपरेशन के लेवल पर भी इंटेलिजेंस फेल हुआ है।
एक वर्ष से नहीं हुई माओवाद पर कोई बैठक
गृहमंत्री बनने के बाद अगस्त 2019 में अमित शाह ने 10 राज्यों के गृहमंत्रियों की एक बैठक बुलाई थी जिसमें सिर्फ और सिर्फ माओवाद पर चर्चा हुई थी। उसके बाद छत्तीसगढ़ में ही जनवरी 2020 में पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक हुई लेकिन उसके बाद अमित शाह समेत समूचा मंत्रिमंडल पहले कोरोना और फिर चुनावों में उलझा रहा यानि कि पिछले एक वर्ष से माओवाद नियंत्रण को लेकर देश में कोई बड़ी बैठक नहीं हुई। यह जरूर हुआ कि भाजपा के कई केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों ने किसान आन्दोलन में बैठे लोगों को माओवादी बता दिया।
अब जबकि घटना घट चुकी है, तो अमित शाह अपना असम दौरा बीच में छोड़कर वापस दिल्ली लौट रहे हैं। बताया जा रहा है कि अब वह दिल्ली में समीक्षा बैठक करेंगे चौंका देने वाला तथ्य यह है कि माओवाद प्रभावित राज्यों को दी जाने वाली विशेष सहायता राशि के अंतर्गत छत्तीसगढ़ को दी जाने वाली राशि 2020-21 में लगभग 75 फीसदी तक घटा दिया। यह राशि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसी अनुपात में घटा दी गई।
सरकार लगाती रही है तालमेल के अभाव का आरोप
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल माओवादी आपरेशन में बार-बार तालमेल के अभाव का आरोप लगाते रहे हैं। पिछले वर्ष मार्च माह में सुकमा में माओवादियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में छत्तीसगढ़ के 17 पुलिसकर्मियों की मौत के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र पर घटना के दौरान ‘तालमेल की कमी’ का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि सीआरपीएफ के जवान ‘मौके से 500 मीटर’ दूर मौजूद थे लेकिन उन्होंने कार्रवाई नहीं की क्योंकि उन्हें आदेश नहीं दिया गया था।
बताया जाता है कि उस आपरेशन में ‘सीआरपीएफ और डीआरजी (जिला रिजर्व गार्ड) की दोनों टीमें एक साथ ऑपरेशन पर गई थीं। मुठभेड़ स्थल से 500 मीटर की दूरी पर सीआरपीएफ के जवान थे, उन्हें आगे बढ़ने का आदेश नहीं मिला जिसके कारण वे वहीं रुके रहे और कार्रवाई नहीं की। आखिरकार घटना में 17 लोगों की मौत हो गई।
बीजापुर में शनिवार को घटी घटना में भी ऐसी ही चीजें सामने आ रही हैं। यह सवाल जरूर उठेगा कि 2000 से ज्यादा जवानों को एक बेहद सघन जंगल में भेजने से पहले पर्याप्त इंटेलिजेंस इनपुट क्यों नहीं लिए गए? ऐसा कैसे हुआ कि 600 से ज्यादा माओवादी एक जगह इकट्ठा थे लेकिन इसकी जानकारी सुरक्षा बालों को नहीं हुई?
संदेह के घेरे में शान्ति प्रस्ताव
एक के बाद एक घट रही माओवादी वारदात उस शान्ति प्रस्ताव के आने के बाद हो रही है जिसके बारे में CONCERNED CITIZEN SOCIETY OF CITIZEN यानि 4C नाम के एक संगठन ने यह दावा किया था कि नक्सली सरकार से सुलह करना चाह रहे हैं। गौरतलब है कि मार्च के पहले सप्ताह में भाजपा समेत अन्य पार्टियों के प्रतिनिधियों और एक्टिविस्टों के इस संगठन ने पदयात्रा भी शुरू की थी, हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बार-बार कहा है कि पहले माओवादी हिंसा का रास्ता छोड़े फिर कोई बात हो सकती है।
शान्ति प्रस्ताव की यह खबर देश के लगभग सभी बड़े अखबारों पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई थी। अजीबोगरीब यह हुआ कि इस प्रस्ताव के सामने आने के कुछ दिनों बाद माओवादियों ने प्रेस नोट जारी करके बातचीत के लिए तीन शर्तें रख दी। खुद पहल करने वाले एक्टिविस्टों और पत्रकारों को धमकियाँ भी दी। इस प्रस्ताव पर राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा था कि वो इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से बात करेंगे, हालांकि साहू के अलावा सरकार के अन्य किसी नेता ने इस कथित शान्ति प्रस्ताव पर कोई टिप्पणी नहीं की।