इस्लामोफोबिया और हिन्दूफोबिया: शेखचिल्ली के सपनों से निकले दो डर


आम तौर पर मुस्लिम की जो पहचान मीडिया पेश करता है वह सर पर टोपी पहने और लम्बी दाढ़ी रखे एक मौलाना टाइप के व्यक्ति की होती है। इस वेशभूषा और हुलिये के अलावा भी एक बड़ी तादाद मुसलमानों की मौजूद है जिनकी सामान्य वेशभूषा है और वह इन मौलाना टाइप की वेशभूषा वालों से अलग हैं और काफी शिक्षित, सेक्युलर और प्रगतिशील हैं। उन्हें अपनी सामाजिक जिंदगी में आने वाली किसी भी समस्या या सवाल के लिए किसी मौलाना के पास जाने की जरूरत नहीं है बल्कि वह अपने विवेक से ज्‍यादा सही निर्णय लेने में समर्थ और सक्षम हैं, लेकिन ऐसे लोगों से मीडिया घबराता है क्योंकि उनको टीवी बहस में ऐसे हुलिये और बौद्धिक क्षमता के लोग चाहिए जो मीडिया के उल्टे-सीधे सवालों पर या तो बगलें झांकने लगें या ऐसी प्रतिक्रिया दें जिससे मुस्लिम समाज का मजाक उड़े। इसके अलावा मीडिया मुसलमानों के बारे में एक डर फैलाता है कि उनकी आबादी बढ़ रही है और वह एक दिन भारत पर कब्ज़ा कर लेंगे। आज हम उसी डर पर चर्चा करेंगे।

डर मानव की एक सहज भावनात्मक प्रवृत्ति या प्रतिक्रिया है, जैसे जोर से आवाज होने या अचानक किसी के तेज आवाज में डांटने या अंधेरे से डर जाना। यह कोई बीमारी नहीं है, लेकिन जब बिना बात या किसी अंधविश्वास या प्रचार का शिकार होकर कोई व्यक्ति या समाज किसी व्यक्ति या समुदाय से अत्याधिक भयभीत होने उससे डरने लगता है तब यह फ़ोबिया कहलाता है जो बीमारी की श्रेणी में आता है। फ़ोबिया अनेक प्रकार का होता है। किसी को तंग जगह से डर लगता है तो कोई दांत की तकलीफ से डरता है तो कोई मकड़ी, कुत्ते, सांप-बिच्छू आदि से डरता है। धर्मों का फ़ोबिया यानि कोई व्यक्ति या समाज दूसरे धर्म के मानने वालों से भयभीत होने लगे। हिन्दू, मुस्लिम धर्म या ईसाई धर्म के मानने वालों से डरने लगे और मुस्लिम या ईसाई, हिन्दू धर्म के मानने वालों से खौफ खाने लगे। हम इस्लामोफ़ोबिया के एक एलि‍मेंट गजवा-ए-हिंद और हिन्दू फ़ोबिया के एलि‍मेंट अखण्ड भारत पर बात करेंगे।

गजवा-ए-हिंद का विचार एक हदीस से निकला है। हदीस यानि वह बातें जो इस्लाम के पैगम्बर हज़रत मोहम्मद ने अपने सम्पर्क में आने वाले किसी शख्स से कहीं, चाहे वह किसी सवाल के जवाब में या बतौर नसीहत कही हों। उनकी इन बातों को यानि हदीसों को उनकी मृत्यु के लगभग 211 साल बाद एकत्रित किया गया। इस्लामी आलिमों ने इन हदीसों में से बड़ी तादाद उन हदीसों की मानी है जो दलील के पैमाने पर कमज़ोर, जर्जर यानि जईफ़ या संदिग्ध हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि अनेक शासकों ने अपने किसी काम या आचरण को सही ठहराने और उस पर जनता की सहमति लेने के लिए पैग़म्बर साहब के नाम से उनको गढ़ा है। इसी तरह की हदीसों में औरत की गवाही को आधा यानि जिस बात की गवाही के लिए एक मर्द पर्याप्त है उसके लिए दो औरतों की गवाही चाहिए। यह उन पुरुष शासकों या धार्मिक पद पर आसीन व्यक्तियों ने औरत की हैसियत को पुरुष की तुलना में कम करने और उन्हें मानसिक रूप से अपने अधीन रखने के लिए किया।

गजवा-ए-हिंद के बारे में जो हदीस है वह पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब की वफ़ात के 211 साल बाद सन् 843 में बसरा यानि मिस्र में पैदा हुए नईम इब्ने हम्माद नामक इस्लामी विद्वान द्वारा संकलित की गई जिसको उन्होंने अपनी किताब, ‘‘किताब अल फ़ितना’’ में दर्ज किया। यह हदीस संकलनकर्ता, इस्लामी न्यायशास्त्र के माहिर इमाम अबू हनीफ़ा के मुखालिफ़ थे और इनके बारे में भी यह कहा जाता है कि इन्होंने भी अनेक हदीसों को गढ़ा था। इनकी किताब में ही वह हदीस है जिसमें कहा गया है कि खुरासान से काले झंडे लिए हुए एक लश्कर निकलेगा जिसका रुख भारत की ओर होगा। यहां वह गैर मुस्लिमों से जंग करेगा और उन्हें हराने के बाद वहां के बादशाह को जंजीरों से बांधकर वापस सीरिया पंहुचेगा जहां उनकी मुलाकात ईसा इब्ने मरियम यानि मरियम के बेटे हज़रत ईसा से होगी। इसी किताब में इस हदीस को दूसरी तरह से पेश किया गया है कि यूरोशलम का बादशाह योद्धाओं का एक लश्कर हिंद और सिंध की ओर भेजेगा जो वहां के मूर्तिपूजकों से जंग करेंगे और विजय हासिल करने के बाद वहां का खजाना जब्त करके वहां के राजा को जंजीरों से बांधकर वापस यूरोशलम के बादशाह के सामने पेश करेंगे और जो लूटा हुआ खजाना होगा उससे यूरोशलम का सौंदर्यकरण करेंगे। अब इसमें दो अलग अलग कहानियां हो गईं। एक यूरोशलम यानि आज के इज़राइल की और दूसरी मध्य एशिया के क्षेत्र खुरासान की।

खुरासान ईरान के एक प्रदेश का नाम भी है और यह भी कहा जाता है कि प्राचीन खुरासान में ईरान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और अफगानिस्तान का क्षेत्र आता है। तालिबान के विरोधी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान जिसने काबुल हवाई अड्डे पर हमला किया था वह अपना लक्ष्य इस पूरे क्षेत्र को मिलाकर प्राचीन खुरासान देश का निर्माण करना बताता है। अगर हम इस हदीस को सच भी मान लें तो यह भविष्यवाणी उस दौर के बारे में है जब दुनिया में बादशाही निजाम था जिसमें झंडे और तलवारें-भाले-तीरकमान लेकर घोड़ों या ऊंटों पर सवार फौज किसी बादशाह या बादशाह द्वारा नियुक्त किसी योद्धा के नेतृत्व में निकलती और दूसरे बादशाहों के इलाके पर हमला करके हारने वाले राजा को कैदी बना लेती और उसके खजाने पर कब्‍जा कर लेती। उस जमाने में यह तसव्वुर नही किया जा सकता कि कभी मानव इतिहास में ऐसा दौर भी आएगा जब दुनिया में मौजूद बादशाही निजाम खत्म हो जाएगा और उसकी जगह सरमायेदाराना निजाम और उसके नतीजे में जम्हूरियत यानि डेमोक्रेसी जैसी कोई राज्य व्यवस्था भी आएगी जिसमें शासन संविधान नामक किसी किताब के आधार पर चलाने के लिए अवाम अपना प्रतिनिधि चुनेगी।

जैसा कि उक्त हदीस में दिया है कि सीरिया में मरियम के बेटे की हुकूमत होगी तो क्या सीरिया में आज मरियम के बेटे ईसा की हुकूमत है? और क्या यूरोशलम में आज बादशाहत क़ायम है? यूरोशलम में आज इज़राइल की सरकार है और वहां चुनाव के माध्यम से जनता अपने प्रतिनिधि को चुनती है। ऐसी हालत में क्या इज़राइल का प्रधानमंत्री हिन्दुस्तान से जंग करने अपना लश्कर भेजेगा जो भारत को जीतकर और यहां के बादशाह को जंजीरों में जकड़कर और भारत का ख़जाना जब्त करके वापस यूरोशलम लौटेगा। उस दौर के भविष्यवक्ता को यह भी अनुमान नहीं था कि 1400 साल बाद अरब के इस क्षेत्र यूरोशलम में मुसलमानों के बजाय यहूदियों का शासन होगा। क्या आज के दौर में 1400 साल पहले की जाने वाली कोई भविष्यवाणी सच हो सकती है? ऐसी कल्पना परियों, देवों की तिलिस्‍मी कहानियों में ही की जा सकती है जिन पर केवल बच्चे या जिनकी बुद्धि बच्चों जैसी है वह ही यकीन कर सकते हैं। कोई विवेकशील व्यक्ति अगर आज के वैज्ञानिक दौर में ऐसी कहानियों पर विश्वास करता है तो यह उसका मानसिक विकार ही कहलायेगा। क्या आज के दौर में अश्वमेध यज्ञ किया जा सकता है जिसमें कोई प्रतापी या शक्तिशाली राजा अपने घोड़े को छोड़ दे और वह घोड़ा किसी दूसरे शासक के राज में जाकर उसको चुनौती दे कि या तो मेरी अधीनता स्वीकार करो या मुझसे जंग करो? अगर आज के दौर में अश्वमेध मुमकिन है तब गजवा-ए-हिंद की भविष्यवाणी को भी सच माना जा सकता है।

फिर आज जो ओआइसी के 57 मुस्लिम बहुल मुल्क हैं अगर उनका आकलन करें तो क्या उनमें से किसी एक में भी यह सामर्थ्‍य है कि वह दूसरे देश पर हमला कर सके? वह तो खुद अपने वजूद के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। 40 करोड़ की मुस्लिम आबादी से घिरा 70 लाख की आबादी वाला इज़राइल मध्यपूर्व के इन अरब देशों को ग़ज्वे यानि जंग में दो-दो बार हरा चुका है। रही तालिबानियों की बात जिन्होंने पहले सोवियत संघ और अब अमरीका को वापस अपने देश लौटने पर मजबूर कर दिया तो उसके पीछे उनके खुद के बनाये हथियारों और जंग की तकनीक की भूमिका नहीं बल्कि जब वह सोवियत संघ से लड़ रहे थे तब हथियारों से लेकर खाने तक का सारा खर्चा अमरीका और सऊदी अरब उठा रहा था। अगर अमरीका उनको कंधे पर रखकर छोड़ी जाने वाली स्टिंगर मिसाइल नहीं देता तो क्या वह सोवियत संघ को हरा सकते थे? नहीं, यह मुमकिन नहीं था। इसका सबूत है कि जिस तालिबान का राज सोवियत सेना के जाने के बाद अफगानिस्तान पर कायम हुआ था वह अमरीकी हमले के बाद कुछ ही वक्त में खत्म हो गया और तब से लड़ते-लड़ते अब आकर जब अमरीका थक गया और अफगानिस्तान को उसने पत्थर युग में पहुंचा दिया तब वापस गया। इसको तालिबान की जीत नहीं कहा जा सकता। इसमें भी उनकी मदद रूस और चीन ने अगर नहीं की होती और अमरीका वैश्विक आर्थिक संकट से कमजोर न हुआ होता तो आज भी तालिबान का जीतना मुमकिन नहीं था।

तो यह कुछ मिसालें हैं जो आज के दौर की हकीकत को बताती हैं। इसलिए गजवा-ए-हिंद अव्यावहारिक कल्पना है जिसे हकीकत की जमीन पर उतारा नहीं जा सकता। यह एक अविश्वसनीय भविष्यवाणी है जिससे डरना वैसा ही है जैसे रस्सी को सांप समझकर डर जाना या भूत-प्रेत-जिन्न जिनको विज्ञान की कसौटी पर साबित नहीं किया जा सका है उनसे भयभीत रहना। दुनिया में बहुत सी ऐसी चीजें मौजूद हैं जिनका भौतिक रूप में कोई वजूद नहीं है लेकिन उनसे डराकर लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। भूत प्रेत जिन्न भगाने वाले ओझा और रूहानी इलाज करने वाले स्वयंभू आलिम आपको अपने आसपास भी मिल जाएंगे। उनके विज्ञापन आप रेल के डिब्बों और बसों में पा सकते हैं। मैं अपनी बात को फिर से दोहराता हूं कि जिस तरह आज के दौर में अश्वमेध यज्ञ मुमकिन नहीं है उसी तरह गज़्वाये हिंद भी मुमकिन नहीं है। जो लोग गज़्वाये हिंद के कारण इस्लामोफोबिया का शिकार हैं उनको इस बात को तार्किकता और विवेक की कसौटी पर कसना होगा। कौआ कान ले गया, इस पर यकीन करके कौअे के पीछे दौड़ने के बजाय अपना कान टटोलकर देखना होगा।      

दुनिया भर में बौद्धिक व भौतिक विकास में पीछे रह जाने वाले पाकिस्तानी मुस्लिम धार्मिक लोग साईस को गाली देते हुये आधुनिक साईस का आनंद उठा रहे हैं। वही यूटयूब पर आकर गज़्वाये हिंद की भविष्यवाणी से अवाम में इस्लामोफोबिया पैदा करते हैं और जिसका विस्तार भारत में वह लोग कर रहे हैं जिनको इस तरह का इस्लामोफोबिया पैदा करने से राजनीतिक व आर्थिक हित लाभ मिलता है।

अब हम हिन्दूफोबिया की सच्चाई पर गौर करते हैं। हिन्दूफोबिया यानि हिन्दू धर्म के मानने वालों को खतरा मानकर उनसे खौफजदा होना, यह चीज वैसे तो पाकिस्तान और बांग्‍लादेश में पाई जाती है लेकिन जिसका विस्तार भारत में हो रहा है। जिस तरह इस्लामोफोबिया का एक तत्व यानि एलि‍मेंट गजवा-ए-हिंद है उसी तरह हिन्दूफोबिया का एक तत्व अखण्ड भारत और हिन्दू राष्ट्र है जिसमें सवर्ण हिन्दुओं को छोड़कर बाकि उनसे निम्नतर होंगे। आज के दौर में अगर कुछ लोग अखण्ड भारत बनाने को अपना लक्ष्य बताने लगे तो क्या उनकी इस काल्पनिक इच्छा की आज के दौर में कोई हकीकत है? आइए, उनकी इस बात को तर्क की कसौटी पर कसते हैं। अखण्ड भारत में कौन-कौन से देश आते हैं पहले उसको जान लेते हैं। अखण्ड भारत में पाकिस्तान, बांग्‍लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, भूटान और कल का बर्मा और आज का म्‍यांमार आता है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि कैलाश पर्वत सहित भारत का एक बड़ा भू-भाग चीन के कब्‍जे में है और जिसे हम आजतक वापस नहीं ले पा रहे हैं। अभी वर्तमान सरकार के दौर में चीन ने कुछ और भारत भूमि पर कब्‍जा कर लिया है। ऐसे में क्या जरा सा भी मुमकिन है कि हम उपरोक्त सात देशों को मिलाकर अखण्ड भारत का निर्माण या किसी संगठन द्वारा दिखाये जा रहे सपने को साकार कर पाएंगे?

अफगानिस्तान की ही बात लें तो अफगानियों ने दुनिया की सबसे ज्‍यादा सैनिक और आर्थिक शक्ति वाले देश अमरीका को भारी नुकसान उठाने के बाद वापस अपने देश जाने पर मजबूर कर दिया। क्या भारत उसको अपनी सैनिक ताकत के बल पर अपनी सीमा में शामिल कर सकता है? यह सारे स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाले देश हैं। इन पर बलपूर्वक कब्‍जा करने की कल्पना करना क्या मुमकिन है? लेकिन पाकिस्तान के यूट्यूब पर बैठे डॉ. इसरार अहमद, उरिया मकबूल या ज़ेद हामिद और इसी तरह के दूसरे लोग पाकिस्तानी अवाम को अखण्ड भारत की कल्पना से डराते रहते हैं। साथ ही गजवा-ए-हिंद की बात करके भारत के हिन्दुओं में इस्लामोफोबिया पैदा करते हैं। ऐसे ही भारत के कुछ लोग और उनके संगठन अखण्ड भारत बनाने का सपना अपने अनुयायियों को दिखाते रहते हैं।

इस चर्चा का सार यह निकलता है कि आज के दौर में न तो गजवा-ए-हिंद और न ही अखण्ड भारत मुमकिन है। जो लोग इस तरह के ख्वाब में डूबे रहना चाहते हैं उनको डूबे रहने दो, लेकिन बाक़ी जो विवेकशील लोग हैं और जो हर बात को तर्क की कसौटी पर कसते हैं उनके लिए ऐसी नामुमकिन बातों पर सोचना अपना समय बर्बाद करना है। अखण्ड भारत या गजवा-ए-हिंद जैसे शेख़चिल्ली ख्वाबों पर ग़ालिब का यह शेर खरा उतरता है, ‘‘हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन, दिल को खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है।’’


लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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