इमरजेंसी: पचीसवीं वर्षगांठ मनाने के भाजपा के फैसले को स्वामी ने ‘हास्यास्पद’ क्यों लिखा था?

सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने इस लेख में बताया है कि कैसे आरएसएस के नेता माधवराव मुले ने नवंबर 1976 के शुरुआती दिनों में उनसे कहा कि वह विदेश चले जाएं क्योंकि संगठन ने इंदिरा गांधी के सामने आत्मसमर्पण करने से संबंधित दस्तावेज तैयार कर लिया है। इस दस्तावेज़ पर जनवरी 1977 में हस्ताक्षर हो जाएगा और फिर ‘इंदिरा और संजय को तुष्ट करने के लिए तुम्हें बलि का बकरा बनाया जाएगा क्योंकि तुमने विदेशों में इनके खिलाफ काफी दुष्प्रचार किया है।’

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इमरजेंसी: साल भर जेल काट चुके प्रबीर आज भी निशाने पर हैं, जब आपातकाल नहीं है!

शाह आयोग का निष्कर्ष था कि पीएस भिंडर ने डीपी त्रिपाठी के भ्रम में प्रबीर पुरकायस्थ को गिरफ्तार कर लिया और अपने इस कृत्य को सही ठहराने के लिए झूठमूठ के आरोप लगाकर प्रबीर के खिलाफ मीसा के तहत वारंट जारी करा दिया। बेशक, प्रबीर भी आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे लेकिन पुलिस उस दिन उन्हें नहीं बल्कि त्रिपाठी को पकड़ने गयी थी। चूंकि यह मामला सीधे-सीधे पीएम हाउस से जुड़ा था इसलिए किसी ने भिंडर की बातों को चुनौती नहीं दी।

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इमरजेंसी: जनतंत्र के साथ आधी रात हादसा हो गया और लोगों को पता ही नहीं चला…

राय ने आयोग को बताया कि काम समाप्त होने के बाद जब वह कमरे से बाहर निकल रहे थे तो उन्हें ओम मेहता (गृह राज्यमंत्री) से यह सुनकर बहुत हैरानी हुई कि अगले दिन न्यायालयों को बंद रखने और सभी अखबार के दफ्तरों को बिजली की सप्लाई काट देने का आदेश जारी किया जा चुका है।

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अधूरी विजय-यात्रा में सम्पन्न होते अश्वमेध यज्ञ का भय

भाजपा अब अपनी आगे की यात्रा सिर्फ़ पुरानी भाजपा के भरोसे नहीं कर सकती! उसे अपनी पुरानी चालों और पुराने चेहरों को बदलना पड़ेगा। चेहरे चाहे किसी योगी के हों या साक्षी महाराज, गिरिराज सिंह, साध्वी प्राची, प्रज्ञा ठाकुर या उमा भारती के हों। इसका एक अर्थ यह भी है कि राजनीति में सत्ता का बचे रहना ज़रूरी है, व्यक्तियों का महत्व उनकी तात्कालिक ज़रूरत के हिसाब से निर्धारित किया जा सकता है।

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क्या प्रधानमंत्री को पता है कि लोग उनके सम्बोधन से पहले किसी अनजान आशंका से भर जाते हैं!

प्रधानमंत्री को जनता की यह सच्चाई कभी बतायी ही नहीं गयी होगी। सम्भव यह भी है कि प्रधानमंत्री ने ऐसा कुछ पता करने की कोई इच्छा भी कभी यह समझते हुए नहीं ज़ाहिर की होगी कि जो लोग उनके इर्द-गिर्द बने रहते हैं वे सच्चाई बताने के लिए हैं ही नहीं।

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दो दूनी चार, 1600 से ज़्यादा की क़तार: मारे गए शिक्षकों के नाम बच्चों का एक सबक!

हर बार जब वह गिनती में लगे होते, तो खोई हुई आत्माओं की इस अंतहीन सूची में कुछ और नाम जुड़ चुके होते. उन्होंने सोचा कि अगर वह इन भटकती आत्माओं को पाताललोक में अपने ऑफ़िस के बाहर क़तार में खड़ा कर दें, तो यह लाइन सीधा प्रयागराज तक पहुंच जाती.

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क्या ‘लार्जर पॉलिटिक्स’ का गला घोंट रही है उत्तर प्रदेश की ‘न्यू कांग्रेस’?

इस बार उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव भाजपा के लिए भारी झटका सिद्ध हुए हैं. इस कठिन परीक्षा में कांग्रेस का फर्स्ट आना जरूरी नहीं था. उसका सेकंड या थर्ड आना भी बेहद उत्साहजनक हो सकता था, लेकिन जो कुछ ‘हो सकता था’, नहीं हुआ. पंचायत चुनाव के आंकड़ों में कई बार थोड़ा-बहुत अंतर रहता है, लेकिन लार्जर पिक्चर एकदम साफ़ दिखाई दे रही है.

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6 जून 2017 को हुए मंदसौर कांड में शहीद किसानों की नींव पर छह महीने से खड़ा है किसान आंदोलन

गत छह माह से अधिक समय से दिल्ली के बॉर्डरों पर तीन कृषि विरोधी कानूनों को रद्द कराने, सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की कानूनी गारंटी देने और बिजली संशोधन बिल 2020 को रद्द कराने के लिए चल रहे किसान आंदोलन के पीछे मंदसौर के शहीद किसानों की प्रेरणा काम कर रही है।

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ट्रम्प का मीडिया उद्यम और सूचना पर सत्ता व बाजार के संयुक्त नियंत्रण का भविष्य

महत्वाकांक्षी टेक कम्पनियाँ अगर तब के राष्ट्रपति ट्रम्प (बाइडन ने निर्वाचित हो जाने के बावजूद तब तक शपथ नहीं ली थी और ट्रम्प व्हाइट हाउस में ही थे) का अकाउंट बंद करने की हिम्मत दिखा सकती हैं तो उसके विपरीत यह आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए कि अपने व्यावसायिक हितों के चलते सरकार के दबाव में वे हमारे यहां भी कुछ हज़ार या लाख लोगों के विचारों पर नियंत्रण के लिए समझौते कर लें।

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नरेंद्र मोदी के पैदा किये सवालों के जवाब राहुल गांधी के पास हैं, लेकिन वही उनकी चुनौती भी हैं!

राहुल गांधी के भाषण हों या पत्रकार वार्त्ताएं, देश की आर्थिकी के संबंध में वे खुल कर अपने विचार व्यक्त करते हैं और तब यह सोच कर ताज्जुब होता है कि मनमोहन सिंह के दस वर्षों के शासनकाल में उनकी ऐसी सोच कहां थी, जब वे संविधानेतर शक्ति के रूप में सत्ता पर बेहद प्रभावी थे।

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