दोस्तों, आप सबका प्यार हमारी फिल्म ‘लाल जोहार’ को मिल रहा है तो जाहिर सी बात है अच्छा लग रहा है। बहुत से साथी यह जानना चाहते हैं कि इस डाक्यूमेंट्री को बनाने का विचार कैसे आया? इस फिल्म के निर्माण के पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ यही एक भावना काम कर रही थी कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। अभी उम्मीद बाकी है इसलिए उम्मीद से भरी हुई खूबसूरत दुनिया भी बची हुई है।
देश और दुनिया के बहुत से तानाशाह और जल्लाद यह मानते हैं कि इतिहास की मौत हो चुकी है और विचारधारा ने फांसी लगा ली है जबकि ऐसा हुआ नहीं है और ऐसा कभी होने वाला भी नहीं है। अब भी मनुष्य की बेहतरी का खूबसूरत सपना किसी कोख में पल रहा है। खूबसूरत सपना कभी मरता नहीं है।
नियोगी एक खूबसूरत सपने का नाम था(हैं)। मुझे भी खूबसूरत सपने आते हैं और रोज़ आते हैं। मुझे एक खूबसूरत सपने को पूरा करना था इसलिए यह फिल्म बनायी है। मेरे पास अगर बहुत ज्यादा पैसे होते तो ‘मोला लव होगे’, ‘फंस जाबे धंस जाबे’, ‘तोर अऊकात का हे रे कलुआ’ जैसी फिल्म बनाने के बजाय शंकर गुहा नियोगी पर बड़े पर्दे पर दिखायी जाने वाली फिल्म अवश्य बनाता।
बहरहाल अपने रंगकर्मी साथियों के जज्बे और सहयोग से जैसे-तैसे पचास हजार रुपये में यह फिल्म तैयार हो गयी। इस फिल्म को बनाने के पीछे शहीद शंकर गुहा नियोगी के बच्चों और पत्नी का नाम भी एक बड़ा कारण है।
नियोगी की पत्नी का नाम है- आशा। बच्चों का नाम हैं- क्रांति, जीत और मुक्ति। इन नामों में भी विचार का बीज मौजूद है।
व्यवस्था कितनी ही क्रूर क्यों न हो जाए हमें यह आशा नहीं छोड़नी चाहिए कि कुछ बदलेगा नहीं। जीत का कोई रास्ता तभी खुलता है जब क्रांति होती है। मनुष्य की मुक्ति का मार्ग भी क्रांति के रास्ते से होकर गुज़रता है।
शंकर गुहा नियोगी की हत्या के बाद पूंजीपतियों और उनके टुकड़ों पर पलने वाले समझौतापरस्त लेखकों की पूरी जमात ने इस बात का जोरदार प्रचार किया था कि नियोगी का आंदोलन कई टुकड़ों में विभक्त होकर दम तोड़ चुका है। जब हमारी टीम के सदस्य इस फिल्म पर काम कर रहे थे तब हमने महसूस किया कि आंदोलन मरने के बजाय सुव्यवस्थित ढंग से दिनों-दिन बढ़ रहा है। हर दिल में धड़क रहा है। सांस ले रहा है।
नियोगी के विचार और कामकाज को आगे बढ़ाने के लिए अब नौजवानों की पूरी फौज़ तैयार हो चुकी है। जो लोग भी यह सोचकर खुश हैं कि सब कुछ तबाह हो गया है उन्हें अपना भ्रम दूर कर लेना चाहिए।
नियोगी का विचार अभी ज़िंदा है इसलिए नियोगी अभी ज़िंदा है!
फिल्म को बनाने के दौरान इधर-उधर से बहुत सी सामग्री जुटानी पड़ी। एक यह फोटो भी मिली जिसे यहां शेयर कर रहा हूं। फोटो क्रांति-जीत और मुक्ति गुहा नियोगी की हैं। फोटो में सभी बच्चे खूबसूरत दिख रहे हैं। कपड़े भी महंगे लग रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इतने महंगे कपड़े कॉमरेड शंकर गुहा नियोगी ने अपने बच्चों के लिए कभी नहीं खरीदे। वे अगर कभी फल की टोकरी भी लाते थे तो मजदूर बस्ती के बच्चों के बीच वितरित कर दिया करते थे।
ऐसा भी नहीं है कि खुद्दार पिता के बच्चों ने किसी अमीर मां-बाप के कपड़े धारण कर लिए हैं। फोटो में सिर्फ़ चेहरा क्रांति-मुक्ति और जीत का है। बाकी कमाल स्टूडियो वाले का है। उस स्टूडियो वाले का जो फोटो में यह भी दर्शा सकता है कि अमिताभ बच्चन आपका दोस्त है।
एक बात और याद आ रही है। एक बार स्कूल टीचर ने मुक्ति गुहा नियोगी से उसकी जाति पूछी। मुक्ति को यह नहीं मालूम था कि जाति किस बला का नाम है। उसने घर आकर अपने बाबूजी को बताया कि टीचर ने जाति के बारे में जानकारी मांगी है। नियोगी जी ने मुक्ति से कहा- ‘जाकर टीचर को बोलना हमारी जाति मनुष्य है। हम मनुष्य जाति से आते हैं।’ मुक्ति ने अपनी टीचर को वही बताया।
दोस्तों, हम भी मनुष्य जाति से आते हैं और हमने यह फिल्म भी मनुष्य जाति के लिए ही बनायी है। जो लोग क्रूर हैं, तानाशाह हैं, शोषक हैं, वे मनुष्य जाति में नहीं आते। बावजूद इसके वे लोग भी हमारी फिल्म देख सकते हैं।