तिर्यक आसन: विकास की रेसिपी और अपनी बीट से पौधे उगाने का अस्तित्‍ववादी हुनर


साधो, भारत का प्रधानमंत्री बनने के पहले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट याद हैं? गरीबी, लूट, शोषण, कालाबाजारी, एफडीआइ के खात्मे और स्वदेशी, रुपये की गिरती प्रतिष्ठा, किसान को उसका हक दिलाने वाले अन्य ट्वीट भी याद होंगे? चुनाव प्रचार के दौरान दिये गये भाषण भी याद होंगे? कई वर्ष हो गये हैं। हो सकता है स्मृति धुँधली पड़ गयी हो? मैं उन ट्वीट को री-ट्वीट कर याद दिलाता हूँ। ट्वीट-दर-ट्वीट की तर्ज पर पैरा-दर-पैरा।

साधो, गत लोकसभा चुनाव के दौरान विकास का बहुत शोर मचा था। विकास के शोर से प्रभावित होकर जनता ने उसकी ताजपोशी भी कर दी। ताजपोशी के बाद विकास का तेज मद्धम पड़ने लगा। विकास की रेसिपी का स्वाद कसैला होने लगा। विकास की रेसिपी के चक्कर में जनता ने पहले रहर की महँगी दाल खायी। विकास की रेसिपी का स्वाद बढ़ाने के लिए जनता अब भी कई वस्तुएँ महँगी खा और खरीद रही है पर विकास के चटपटे मसालों से जनता कीमतों को पचाना सीख गयी है। 

साधो, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद महंंगाई और बेलगाम हो गयी। कीमतों के विकास में नरेंद्र मोदी का कोई दोष नहीं है। दोष चूहों का है। बाजार में मोटे-मोटे चूहे हैं, जो गोदामों में रखा अनाज खा जाते हैं। वे चूहे किसके पालतू हैं, ये मैं जानता हूँ।

साधो, चूहों की कर्तव्यपारायणता के बारे में बताता हूँ। इधर शुगर के एक मरीज हैं। शहर के सबसे अच्छे डॉक्टर से इलाज कराते हैं। समय से दवा लेते हैं। डॉक्टर द्वारा बताये गये सभी परहेज भी बरतते हैं। फिर भी शुगर उनका पीछा नहीं छोड़ रही। शुगर के पीछा न छोड़ने का कारण चूहे हैं। डॉक्टर ने उनको चावल खाने से मना किया है पर चूहे उन्हें चावल खिला देते हैं।

साधो, शुगर के मरीज को चावल खिलाने वाले चूहे पाले भी जाते हैं। चूहे गेहूँ और चावल की बोरियों में उछल-कूद मचाते रहते हैं। खेल ही खेल में चूहे एक किलो गेहूँ के आटे में सौ-दो सौ ग्राम चावल का आटा मिला देते हैं। सरकार चूहों द्वारा की जा रही मिलावटखोरी रोकने में अक्षम है तो आटा चक्की वाले की क्या मजाल जो चूहों को रोके। न चूहों द्वारा फैलाये जा रहे रोगों का निदान हो रहा, न उनकी शुगर ठीक हो रही।

साधो, चूहे आतंकवाद के ‘स्लीपिंग माड्यूल’ हैं। वे बिना आवाज की जैविक गोली चलाकर हर वर्ष हजारों-लाखों को मौत के घाट उतार देते हैं। साधो, चूहे शांतिप्रिय हैं। खामोशी से अपना कार्य करते हैं। शोर तब मचाते हैं, जब उनकी कर्तव्यपारायणता में बाधा उत्पन्न होती है। उनकी कर्तव्यपारायणता का वर्तमान अनुपात एक किलो में सौ-दो सौ ग्राम चल रहा है। कोई कहे कि पचीस-पचास ग्राम मिलाओ या मिलावट का खेल बंद कर दो, तब चूहे शोर मचाएंगे- हमें कर्तव्य मार्ग से हट जावें कहा जा रहा है।

साधो, मैंने कीमतों के विकास से नरेंद्र मोदी को दोषमुक्त घोषित कर दिया। फिर भी उनके ‘विशेष’ समर्थक मुझे बीजों के दाम बढ़ने की वैश्विक साजिश समझाते हैं। विशेष समर्थक नरेंद्र मोदी के नसीब पर पूरा भरोसा करते हैं। मैं भी करता हूं। नरेंद्र मोदी के नसीब का ही कमाल है कि जब कीमतें कम होती हैं, तब विशेष समर्थक उनको श्रेय देते हैं। कीमतें बढ़ने का दोष पाकिस्तान पर मढ़ देते हैं। साधो, मैं तो कहता हूँ पाकिस्तान का निर्माण भी नरेंद्र मोदी के नसीब से ही हुआ था।

साधो, अकाल से बचाने वाले कथित गोदामों में रखा अनाज खा कर महंगाई बढ़ाने की तरकीब चूहों ने निकाली है। देश का पेट भरने की जिम्मेदारी किसानों पर डाल दी है। जिम्मेदारी निभाने के लिए वे कमरतोड़ मेहनत कर रहे हैं। फिर भी अपने परिश्रम की फसल के डेढ़ गुना लागत के लिए गले में फंदा कसने पर मजबूर हैं। साधो, महंगाई जितनी बढ़ेगी, चूहे गोदामों में रखा अनाज खाकर मोटे होते जाएंगे। साधो, मैं ये सोचता हूं कि जब भारत भाग्य विधाता की कमर टूट जाएगी, तब भारत क्या खाएगा? पकौड़ा विथ हरी चटनी? 

साधो, देश को खुले में शौच मुक्त बनाने का अभियान चल रहा है। गाँवों को सरकारी डंडे के दम पर खुले में शौच मुक्त बनाया जा रहा है। साधो, जिनके पास झोपड़ी लगाने के लिए अपनी जमीन नहीं है, वे किसकी जमीन पर शौचालय बनवाएं? एक अभिनेत्री ‘जहां सोच वहां शौचालय’ बनवाने के लिए प्रेरित करती है। साधो, इस विज्ञापन को बंद करवा देना चाहिए क्योंकि घर में शौचालय रहते हुए भी मैं ‘जहां सोच वहाँ शौचालय’ का उल्लंघन करता हूं। विशेष भोजन वाले दिन खुले की तरफ जाता हूं। खुले में ‘जहां सोच वहां शौचालय’ का एक प्रयोग करता हूँ। प्रयोग के कारण खुले में शौच करने से होने वाली सजा का डर नहीं लगता। 

साधो, ‘स्वदेशी के’ बाजार में ऐसी बीटी/जीएम फसलें आ गयी हैं, जिनसे पैदा होने वाले फलों में बीज नहीं होते। बीटी/जीएम फसलों के दुष्प्रभाव से पशु-पक्षियों द्वारा कहीं भी रोप दिये जाने वाले टमाटर, पपीता, पीपल आदि उगना बंद हो चुके हैं। टमाटर से तो बीज पूरी तरह गायब हो गये हैं। देसी टमाटर में बीज मिलते हैं। तो जिस दिन बीज वाले फल खाता हूं, उस दिन मोबिल वाला डिब्बा लेकर खुले की तरफ जाता हूं। अपनी बीट के बीजों से कहीं भी पौधे उगा देने वाले पक्षियों की तरह हो जाना चाहता हूं। 

साधो, पर्यावरण असंतुलन के कारण जिस तरह से खाद्य श्रृंखला से जीव विलुप्त हो रहे हैं, अपना अस्तित्व बचाने के लिए मानव जाति को भी पक्षियों की तरह अपनी बीट से पौधे उगाने का हुनर सीख लेना चाहिए। जिस दिन बीज वाला फल खाएं, मोबिल वाला डिब्बा लेकर खुले में जाएं। 

साधो, अगर खुले में शौच करते हुए सरकारी आदेश के उल्लंघन के तहत मेरी गिरफ्तारी हो, तो जामा तलाशी के दौरान प्राप्त वस्तुओं का सच्चा विवरण लिखा जाए। मध्य प्रदेश की तरह झूठा नहीं। मध्य प्रदेश के सरकारी कारिंदों ने खुले में शौच करने वालों से बरामद हुए लोटों की प्रदर्शनी लगायी थी। मुझे आश्चर्य हुआ कि आर्थिक उदारीकरण के बाद भी कौन लोटा लेकर खेत की तरफ जाता है?

साधो, आर्थिक उदारीकरण लागू होने के बाद एफडीआइ के प्राइवेट जेट में सवार होकर बिना बीज वाली बीटी/जीएम फसलों के विदेशी सौदागर भी आये। हवाई अड्डे पर उनका ‘वार्म वेलकम’ करने के लिए ईएमआइ पर खुशियाँ खरीदने की लत लगाने वाले उनके जनरल मैनेजर ऑफ इंडिया तैयार खड़े थे- जिनकी बदौलत ईएमआइ की पगडंडी पर फरार्टा भरते, धूल उड़ाते मोटरसाइकिल घर-घर पहुँची। साथ में मोबिल का डिब्बा भी घर-घर पहुँचा। जिनके घर मोबिल का डिब्बा नहीं पहुँचा, उनके घर कोल्ड ड्रिंक की प्लास्टिक वाली बोतल पहुँची। साधो, इधर शौच के लिए खुले में जाने वाले मोबिल या कोल्ड ड्रिंक की बोतल लेकर जाते हैं। वे खानदानी रईस, जिनकी रईसी का रक्षक अब ‘परदा’ है, जो कभी नक्काशीदार पात्र लेकर खुले की तरफ जाते थे, वे भी डिब्बे में अँगुली फँसाने लगे। 

साधो, मेरी गिरफ्तारी मोबिल वाले डिब्बे के साथ होगी तो गुडवर्क ‘रियलिस्टिक’ लगेगा। अगर सरकारी कारिंदों को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन भी चाहिए, तो गिरफ्तारी के दौरान कारिंदों पर ढेलों से हमला भी कर दूँगा- ‘’मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार’’।

साधो, जिस दशक में देश में आर्थिक उदारीकरण लागू हुआ, उस दशक में लड़कियों को आकर्षित करना महंगा था। लड़कियों को आकर्षित करने के लिए जिम जाकर सुगठित शरीर बनना पड़ता था। दशक बदला। रुपये की कीमत गिरी। महंगाई बढ़ी। लड़कियों को आकर्षित करना सस्ता हुआ। सौ डेढ़ सौ के डियो या आफ्टर शेव लोशन की सुगंध से लड़कियां आकर्षित होने लगीं। आज महंगाई और बढ़ी, रुपये की कीमत और गिरी, तो लड़कियों को आकर्षित करना और सस्ता हो गया। पचास-साठ रुपये की चड्ढी या बनियान पहनकर ही लड़कियों को आकर्षित किया जा सकता है। महंगाई का बढ़ना नहीं रुका तो विज्ञापनों में चड्ढी-बनियान भी उतर जाएगी। लड़कियों को आकर्षित करना पूरी तरह मुफ्त हो जाएगा। रुपये की गिरती कीमत के साथ बाजार भी ‘गिरता’ जा रहा है। 

साधो, कभी रुपये की कीमत गिरने से प्रधानमंत्री अपनी गरिमा खोते थे, अब नहीं खोते। कभी जनता और विपक्ष पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि की आग से झुलस जाते थे, अब नहीं झुलसते। पेट्रोल की धीमी आँच पर पक रही विकास की रेसिपी में अखिल भारतीय मंत्रिमंडल के खानसामों द्वारा प्रतिदिन डाले जाने वाले धर्म के चटपटे मसालों ने कीमतों को पचाना सिखा दिया है। 

साधो, नरेंद्र मोदी अचार बेचने के तरीके भी बताते हैं। वे बताते हैं कि उनके खून में व्यापार है। पर घर-घर शौचालय बनावने की नीति बनाने में उन्होंने चूक कर दी। विज्ञापनों से सीख लेते हुए उन्हें करना ये चाहिए था कि लडकियाँ शौचालय देखकर आकर्षित हों। लड़के सिर पर कमोड लेकर घूमें। उन्हें देख लडकियाँ ऊ ला ला कहें। 

साधो, मैंने मैं मैं का प्रयोग किया है। ये नरेंद्र मोदी की नकल है। मैं की जगह देश या जनता का प्रयोग करता, तो उनमें वे लोग भी आ जाते, जिन्हें इस देश में पैदा होने का दु:ख होता है। नरेंद्र मोदी को भी इस देश में पैदा होने का बहुत दर्द होता है। देश या जनता का प्रयोग कर मैं उन विशेष समर्थकों को भी उसी दर्द से रूबरू नहीं करवाना चाहता, जो नरेंद्र मोदी की तरह गलती से इस देश या लोक में पैदा हो गये हैं। उन्हें व्यापार लोक में पैदा होना चाहिए था।  

साधो, गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट के मंत्रियों और सांसदों को कुछ निर्देश दिये। मीडिया से पता चला- पीएम मोदी ने सांसदों को दिये प्रचार के निर्देश। साधो, मीडिया की इस भाषा पर नरेंद्र मोदी को क्रोध जरूर आया होगा। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए विकास को देखते हुए, होना ये चाहिए था- जनरल मैनेजर ने सेल्स एग्जिक्यूटिव्स को दिया टारगेट।

साधो, कर्ज लेकर घी पीने वाली फिलॉसफी को सरकारी आधार देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वीकार किया था- नरेंद्र मोदी मुझसे बेहतर सेल्समैन हैं। नरेंद्र मोदी ने इसे साबित भी कर दिया। मनमोहन सिंह सेल्समैन ही रह गये। नरेंद्र मोदी जनरल मैनेजर बन गए। साधो, नरेंद्र मोदी को मीडिया के पेंच और कसने चाहिए ताकि मीडिया उनकी उपलब्धियों का बखान सही शब्दों में करे।



About विभांशु केशव

View all posts by विभांशु केशव →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *