कोरोना वायरस संक्रमण का कहर अभी खत्म भी नहीं हुआ है और इस संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों में 90 फीसद के फेफड़े खराब पाये गये हैं। इनमें 5 फीसद लोग ऐसे भी हैं जो दोबारा संक्रमित हो गये हैं।
चीन के वुहान में अब तक आधिकारिक तौर पर 68,138 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित मिले थे जिनमें से 4512 की तो मौत हो चुकी है। वुहान विश्वविद्यालय की एक टीम कोरोना वायरस संक्रमण से प्रभावित लोगों पर एक शोध कर रही है जिसका नेतृत्व झोंगनान अस्पताल के इन्टेन्सिव केयर युनिट के निदेशक डॉ. पेंग कियोंग कर रहे हैं। दरअसल, वुहान में अप्रैल 2020 तक ठीक हो चुके कोरोना वायरस संक्रमित लोगों पर हुए इस सर्वे ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। एक वर्ष तक चलने वाले इस अध्ययन का पहला चरण जुलाई में खत्म हुआ है। इस सर्वे अध्ययन में मरीजों की औसत उम्र 59 वर्ष है। सर्वे के पहले चरण के परिणामों में कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक हुए मरीजों में 90 फीसद के फेफड़ों का वेंटिलेशन और गैस एक्सचेंज फंक्शन काम नहीं कर रहा है। ये लोग अब तक पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाये हैं। ये कथित ठीक हुए मरीज 6 मिनट में बमुश्किल 400 मीटर ही चल पा रहे हैं जबकि एक स्वस्थ व्यक्ति इतने समय में आसानी से 600 मीटर से ज्यादा चल लेता है।
इस संक्रमण से पूरी तरह ठीक हुए मरीजों में से कुछ को 3 महीने बाद भी आक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। 100 में से 10 मरीजों के शरीर से कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी भी खत्म हो चुकी है। 5 फीसद मरीजों का आइजीएम (इम्यूनोग्लोब्यूलिन एम) टेस्ट पॉजिटिव आया है यानि के वे कोरोना वायरस पॉजिटिव मान कर दोबारा क्वारन्टीन कर दिये गये हैं।
सब जानते हैं कि कोविड-19 संक्रमण के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान मनुष्य के फेफड़े को ही होता है, लेकिन संक्रमण ठीक हो जाने के बाद भी क्षतिग्रस्त फेफड़े की रिपेयरिंग नहीं हो पा रही है और ज्यादातर लोगों के फेफड़े के 20 से 30 हिस्से ने काम करना बंद कर दिया है। इस नये शोध में जो परिणाम सामने आ रहे हैं उसके अनुसार सम्बन्धित व्यक्ति में पल्मोनरी फाइब्रोसिस (फेफड़े खराब) की समस्या देखी जा रही है। इस बीमारी में ऑक्सीजन रक्तकणिकाओं में आसानी से नहीं पहुंच पाती। फेफड़े का आकार छोटा होने से सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है और जल्दी जल्दी सांस लेने की मजबूरी में फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। चूंकि फेफड़े के नष्ट हुए टिशू फिर से नहीं बन पाते इसलिए पल्मोनरी फाइब्रेसिस को ठीक नहीं किया जा सकता।
कोविड-19 के मामले में यह एक बेहद चिन्ताजनक मामला है। इसके अलावा और भी कई अध्ययन कोविड-19 से ठीक हो चुके लोगों पर चल रहे हैं जिसके शुरूआती संकेत भी डरावने ही हैं। अमरीका, इटली और चीन में किये गये अध्ययनों में पता चल रहा है कि कोविड-19 का सार्स सीओवी-2 वायरस संक्रमण के बाद हृदय को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इस बात का आधार केवल यह नहीं है कि कोविड-19 से पीड़ित लोगों के शरीर में हृदय की कोशिकाओं के नष्ट होने के सबूत मिल रहे हैं, बल्कि इस वायरस संक्रमण के बाद अनेक लोगों के हृदय में सूजन (मायोकार्डाइटिस) के लक्षण देखे जा रहे हैं। इसके अलावा इन कोविड-19 सर्वाइवर्स में तंत्रिका तंत्र, नसें, त्वचा आदि सम्बन्धित दिक्कतें भी देखने को मिल रही हैं।
कोविड-19 के 80 फीसद मरीजों में ठीक हो जाने के बाद भी सूंघने और स्वाद की क्षमता में कमी के लक्षण देखे जा रहे हैं, हालांकि सामान्य फ्लू के संक्रमण में भी ऐसे लक्षण देखे जा गये हैं। विशेषकर एडेनोवायरस से होने वाले फ्लू संक्रमण में यह लक्षण कुछ गम्भीर मामलों में सामने आते हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे सार्स सीओबी-2 में मनुष्य का तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। बेल्जियम में हुए शोध के अनुसार मनुष्य के शरीर में तंत्रिका कोशिकाएं वायरस के मुख्य तंत्रिका तंत्र में पहुंचने के लिए मुख्य द्वार का काम करती हैं। पहले फैल चुके सार्स और मर्स वायरस के दौरान तंत्रिका कोशिकाओं के जरिये दिमाग में पहुंचने वाले वायरस से मस्तिष्क को नुकसान हुआ था। जापान में कोविड-19 बीमारी से ठीक हो चुके एक मरीज को जब मिर्गी के दौरे पड़ने लगे तब चिकित्सकों को पता चला कि उसके दिमाग में सूजन है। चीन और जापान को भी नुकसान उठाना पड़ा है।
कोविड-19 का मरीज यदि वेंटिलेटर से लौटा है तो उसके गुर्दे (किडनी) के क्षतिग्रस्त होने की सम्भावना ज्यादा है। दरअसल, कोविड-19 के मरीजों को निमोनिया की वजह से फेफड़े में जमा द्रव को हटाने के लिए जो एलोपैथिक दवाएं दी जाती हैं वे किडनी पर गंभीर असर डालती हैं। ऐसे लोगों में कोविड-19 संक्रमण से मुक्त हो जाने के बाद भी किडनी सम्बन्धी दिक्कतों में उलझे रहने का खतरा ज्यादा है। ऐसे लोगों में त्वचा सम्बन्धी रोगों के लक्षण भी देखने को मिले हैं। स्पष्ट है कि कोविड-19 का इन्सानों की त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
कोरोना वायरस संक्रमण का दंश झेलकर बच आए लोगों में खासकर वे लोग जो सिगरेट और तम्बाकू के आदी रहे हैं उनमें अन्य संक्रामक रोगों से प्रभावित होने या संक्रमित होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल युनिवर्सिटी में मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर अरविन्द मिश्रा के अनुसार तम्बाकू व सिगरेट का उपयोग करने वाले लोगों में कोविड-19 संक्रमण से बच जाने के बाद भी दिल, फेफड़े, त्वचा, कैंसर और मधुमेह की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। वहां चल रहे एक अध्ययन के शुरुआती परिणामों के अनुसार कोविड-19 का वायरस शरीर को लम्बे समय के लिए कमजोर बना देता है। इन अध्ययनों की शुरुआती रिपोर्ट ने वैज्ञानिकों, चिकित्सकों को परेशानी में डाल दिया है। भारत और एशिया के अन्य देशों के सन्दर्भ में कोविड-19 से ठीक हो चुके लोगों में किया गया यह अध्ययन चिन्ता को बढ़ाने वाला है।
मेरे खुद के द्वारा कोविड-19 संक्रमित 250 लोगों में होमियोपैथिक उपचार के बाद भी तीन ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें एक महीने में ही दोबारा कोविड-19 पॉजिटिव पाया गया, हालांकि पहली बार संक्रमित होने पर इनमें से दो ने शुरू के कुछ दिनों तक होमियोपैथी की दवा के साथ-साथ एलोपैथी की दवा भी ली थी।
कोरोना वायरस संक्रमण से उपचार के बाद ठीक हो चुके लोगों के शरीर के अंगों खासकर फेफड़ा, किडनी आदि के क्षतिग्रस्त होने की पृष्ठभूमि में कोविड-19 से बचाव के लिए तैयार किये जा रहे वैक्सीन की प्रभाव-क्षमता पर भी नजर रखनी चाहिए। फिलहाल दुनिया भर में कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए 100 से अधिक वैक्सीनों का ट्रायल चल रहा है। काफी ट्रायल तो अब इन्सानों पर भी शुरू हो चुका है और वो भी अब अन्तिम चरण में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के विशेष प्रतिनिधि तथा वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डेविड नाबारो तो कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव की वैक्सीन को लेकर फिलहाल नकारात्मक बातें कर रहे हैं। डॉ. नाबारो कहते हैं कि कोविड-19 से बचाव की मुकम्मल वैक्सीन को आने में दो से ढाई वर्ष तक का समय लग सकता है। अन्तरराष्ट्रीय न्यूज एजेन्सी सीएनएन को दिये अपने एक्सक्लूसिव इन्टरव्यू में उन्होंने कहा कि, ‘‘सबसे खराब सम्भावना है कि कोरोना का कोई टीका कभी आ भी न पाये।’’ जाहिर है कि वे यह भी बताना चाह रहे हैं कि विगत चार दशकों से दुनिया के वैज्ञानिक एचआइवी से बचाव के टीका पर शोध कर रहे हैं लेकिन अभी तक इसकी वैक्सीन नहीं आ पायी है।
रोगों से बचाव के लिए बन रही वैक्सीन को लेकर कई नकारात्मक खबरें वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। जैसे डेंगू से बचाव का टीका कुछ देशों में 9-45 वर्ष की आयु के लोगों के लिए उपलब्ध है लेकिन डब्लूएचओ सिफारिश करता है कि वैक्सीन केवल ऐसे लोगों को ही दिया जाये जिन्हें पहले से डेंगू वायरस के संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है। अमरीका के सेन्टर फॉर डिज़ीज़ कन्ट्रोल (सीडीसी) के अनुसार डेंगू के वैक्सीन निर्माता सनोफी पाश्चर ने 2017 में घोषणा की थी कि, ‘‘वे लोग जो वैक्सीन लेते हैं और जो पहले डेंगू वायरस से संक्रमित नहीं हुए हैं उन्हें गम्भीर रूप से डेंगू के द्वारा संक्रमित होने का खतरा है।’’ वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिक खुद ही कह रहे हैं कि वैक्सीन का उपयोग करने से सामान्य लोगों में डेंगू संक्रमण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है यानि लेने के देने पड़ने की सम्भावना ज्यादा है। इसलिए मैं कहता हूं कि वैक्सीन की राह इतना आसान नहीं है और अगर वैक्सीन आ भी गयी तो उस पर भरोसा करना भरोसेमंद नहीं है।
कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर यह दावा करना तो फिलहाल उचित नहीं है कि इसके प्रसार और संक्रमण का खतरा अब थम गया है, लेकिन यह ज़रूर कहा जा सकता है कि लोगों में कोरोना वायरस को लेकर बैठे डर में काफी कमी आयी है। वैसे संक्रमण के रोजाना मामले अब भी पहले से ज्यादा हैं लेकिन संक्रमित लोगों के जल्द ठीक होने की खबरों से राहत मिलती है। मेरा खुद का एक अध्ययन अभी तीन महीने के बाद यानि जुलाई अन्त तक एक सुखद परिणाम दे रहा है। कोविड-19 से संक्रमित और पॉजिटिव मरीजों में जिन 100 मरीजों ने केवल होमियोपैथिक दवा से अपना उपचार लिया वे विगत 13 हफ्तों में पूरी तरह स्वस्थ और संतुष्ट हैं। मार्च-अप्रैल में आये 125 कोविड-19 पॉजिटिव मरीजों ने पूरी तरह होमियोपैथी दवा से अपना उपचार कराया और इनमें कुछ अपवादों को छोड़कर 110 लोग पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद से अब तक स्वस्थ एवं बिना किसी साइड इफेक्ट के जीवन जी रहे हैं। 1 मई से 31 जुलाई तक किये गये उनके मूल्यांकन में वे सब सकारात्मक और किसी भी रोग सम्बन्धी जटिलता से बचे हुए हैं।
कोरोना वायरस संक्रमण से बचकर ठीक हो चुके लोगों को चिकित्सा विशेषज्ञों की यह सलाह है कि जो लोग मेटाबॉलिक सिन्ड्रोम के शिकार हैं उन्हें अपनी जीवनशैली, खान-पान और शरीर की विशेष देखभाल का खयाल रखना चाहिए। अध्ययन और अनुभव बता रहे हैं कि कोविड-19 महामारी से बचकर निकल जाने के बाद मेटाबॉलिक सिन्ड्रोम के मरीजों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना आदि असामान्य लक्षण भी देखे जा रहे हैं। चिकित्सा की चर्चित शोध पत्रिका ‘लैन्सेट’ के ताजा अंक में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कोविड-19 से संक्रमण के बाद ठीक हुए लोगों में गुलियन-बेयर सिन्ड्रोम (एक न्यूरोलॉजिकल विकृति) के मामले 46 फीसद से 84 फीसद तक देखे गये हैं। कोलकाता मेडिकल रिसर्च इन्स्टीच्यूट (सीएमआइआइ) के वरिष्ठ न्यूरो कन्सलटेन्ट डॉ. एस.एस. नंदी ने अपने शोध में पाया है कि कोरोना वायरस संक्रमण के बाद एक्यूट सेरीब्रो वस्कुलर रोग के साथ न्यूरोलॉजिकल डिजार्ड्स की सम्भावना 84 फीसद तक देखी जा रही है।
इसमें सन्देह नहीं कि कोरोना वायरस संक्रमण एक नया और जटिल वायरस संक्रमण है फिर भी इसकी मृत्यु दर कम होने से मानता के लिए सबसे बड़ी राहत यह है कि शुरुआती अनुमान से संक्रमण की रफ्तार तो नहीं थमी लेकिन अब मौतों की संख्या में कमी से लोगों को काफी राहत है। इस संक्रमण के दौरान वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद एवं होमियोपैथी की दवाओं ने भी बड़ी भूमिका निभायी। आयुर्वेदिक इम्यून बूस्टर, हर्बल दवाएं, होमियोपैथी की कोरोना से बचाव की दवा कैम्फोरा की 1000 शक्ति सहित अन्य औषधियों ने पूरे देश में अच्छी भूमिका निभायी है। इस दौरान मैंने हेल्थ एजुकेशन आर्ट लाइफ फाउन्डेशन (हील) नामक वैज्ञानिक संस्था की मदद से दिल्ली के दो महत्वपूर्ण कोरोना संक्रमित क्षेत्र निहाल विहार, तिलक नगर के अलावा पश्चिम विहार, रानी बाग, अशोक विहार, रोहिणी आदि के 35000 लोगों में कोरोना से बचाव के लिए होमियोपैथिक दवा कैम्फोरा 1000 की खुराकें निःशुल्क बांटीं और परिणाम पूरी तरह सकारात्मक और उत्साहजनक मिले। अब तक के मूल्यांकन में इन क्षेत्रों के संवेदनशील इलाके और वहां के लोगों में संक्रमण के प्रसार को रोकने में पूरी सफलता मिली।
दिल्ली सरकार इस अध्ययन के क्लस्टर क्लिनिकल ट्रायल पर विचार कर रही है। मैं तो अब भी देश के अन्य राज्यों में जहां भी कोरोना वायरस का संक्रमण फैल रहा है, वहां के लिए होमियोपैथी की प्रिवेंटिव दवा कैम्फोरा-1000 की रोजाना तीन खुराक को तीन दिनों तक लेने की सलाह दूंगा। कोरोना से बचाव का यह रास्ता एक सुलभ विकल्प है। भरोसा हो तो अवश्य आजमाइए।