तिर्यक आसन: लोकतंत्र का स्टिकर, स्टिकर का लोकतंत्र

राज्यपाल नामक जीव की रक्षा कैसे हो? लोकतन्त्र के दंगल में राज्यपाल नामक जीव की रक्षा करने के लिए “सेव दी गवर्नर” नामक स्टिकर भी उपलब्ध है। राजनीतिक दलों ने “सेव दी गवर्नर” का स्टिकर लगाया हुआ है।

Read More

बात बोलेगी: जबरा मारे औ रोऊन न देय

सताने के लिए किसी बड़े बहाने की ज़रूरत नहीं भी हो सकती है। यह जबर के ऊपर है कि उसे कब ऐसा लग जाये कि उसकी मानना नहीं हुई है (या अव-मानना हुई है)।

Read More

तन मन जन: हमारे शरीर की प्राइवेसी को सरेआम बेचने के प्रोजेक्‍ट का ऐलान हो चुका है!

आपकी बीमारी की प्रोफाइल, क्लिनिकल जांच रिपोर्ट, इलाज का विवरण आदि। अब तक आपके स्वास्थ्य और क्लिीनिकल जांच का विवरण डाक्टर की अनुशंसा पर आपके पास हार्ड कॉपी के रूप में होता था। अब यह डिजिटल डेटा के रूप में आपके डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट में दर्ज होगा।

Read More

गाहे-बगाहे: नफ़स न अंजुमने आरज़ू से बाहर खींच

अधिक ईमानदारी से कहा जाय तो प्रशांत भूषण ने उस कॉकस के मर्म पर चोट कर दी जिसे झेलना मुश्किल नहीं नामुमकिन है। और जब झेलना मुम्किन नहीं है तो सजा उन्हें मिलेगी। लेकिन प्रशांत भूषण भी कोई इंसान हैं। उन्होंने माफी मांगने से इंकार कर दिया।

Read More

दक्षिणावर्त: आज़ादी के 73 वर्ष, कुछ मील के पत्थर और…

इस्लाम को भारतीयता के अनुकूल न ढालकर फिलहाल हमारे समय की दो बड़ी विचारधाराएं एक ही गलती कर रही हैं। यह गलती भारत को भारी पड़ने वाली है।

Read More

पंचतत्व: सोन से रूठी नर्मदा मैया कहीं हमसे भी न रूठ जाए!

लगातार होते रेत खनन, नदियों के पास ताबड़तोड़ कथित विकास परियोजनाओं और बांध बनाये जाने और इसके जलागम क्षेत्र में जंगल की अबाध कटाई ने नर्मदा को बहुत बीमार बना दिया है. गर्मियों में नर्मदा का जलस्तर तो इतना गिर गया था कि कोई पांव-पैदल भी नदी को पार कर सकता था. इस नदी को नदी-जोड़ परियोजना ने भी काफी नुकसान पहुंचाया है

Read More

आर्टिकल 19: हम उस बुलडोज़र पर बैठे हैं जो हमारी आज़ादी को कुचलते हुए आगे बढ़ रहा है!

झूठ कहती हैं किताबें कि आज़ादी की लड़ाई में देश का हर तबका शामिल था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के लोग इसी देश के लोग तो थे। गोडसे भी इसी देश में रहता था, लेकिन आरएसएस को तो आज़ादी नहीं चाहिए थी? यह तिरंगा भी नहीं चाहिए था। संविधान भी नहीं चाहिए था। वही संघ देश चला रहा है।

Read More

तिर्यक आसन: आज़ादी की दुकान सज गयी है…

दुकानों पर चौबीस घंटे देशभक्ति फहरा रही है। दसों दिशाओं से हवा चल रही है। देशभक्ति भी दसों दिशाओं में खड़ी है। किसी का सिर हिमालय की चोटी की तरह तना हुआ है। किसी का सिर नीचे बह रही नाली के मुँह में जाने को है।

Read More

डिक्टा-फिक्टा: हमारे सांस्कृतिक इतिहास का एक ज़रूरी अध्याय है टैगोर का सिनेमा के साथ जुड़ाव

टैगोर का सिनेमा के साथ जुड़ाव हमारे सांस्कृतिक इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जिसे बार-बार पढ़ा जाना चाहिए

Read More

बात बोलेगी: लोकतंत्र के ह्रास में बसी है जिनकी आस…

एक बड़ा वर्ग ऐसे ही तैयार हुआ है, जिसके लिए पूरी व्यवस्था के जो सह-उत्पाद यानी बाय-प्रोडक्ट हैं वे उसी के उपभोक्ता के तौर पर तैयार किये गये हैं

Read More