पंचतत्व: हिंदुओं को स्वर्ग ले जाने वाली वैतरणी नदी कहां पर है?

हिंदुओं के लिए स्वर्ग के द्वार खोलने वाली वैतरणी नदी ओडिशा में भी है और महाराष्ट्र में भी. रावी, व्यास और सतलज हांगकांग में भी हैं और कर्नाटक की अधिकांश नदियों के नाम वैदिक संस्कृत में हैं. जाहिर है, नदियों के नाम इतिहास के सूत्र छोड़ते हैं. भाषा विज्ञानियों को इस दिशा में काम करना चाहिए.

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आर्टिकल 19: लोकतंत्र के शून्‍यकाल में…

भारत की संसदीय व्यवस्था में लोकतंत्र का मतलब बीजेपी का, बीजेपी के लिए और बीजेपी के द्वारा हो चुका है। बीजेपी ही सवाल पूछ सकती है। बीजेपी को ही जवाब देना है और बीजेपी को ही सुनना है। इसीलिए 14 सितंबर से शुरू होने जा रहे संसद के सत्र में विपक्ष के सांसदों की जुबान पर ताला लगा दिया गया है।

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तिर्यक आसन: सुख उनका कुत्ता है, दुख दूसरों का कुत्ता है!

कुत्ते और कुतिया के चरित्र पर शक नहीं करना चाहिए। खलील जिब्रान के अनुसार- महान से महान आत्मा भी अपनी शारीरिक जरूरतों को नजरंदाज नहीं कर सकती।

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डिक्टा-फ़िक्टा: नाराज़गी, नफ़रत और नकार से ही चलता है सोशल मीडिया का कारोबार

अपने धंधे को चमकाने के लिए सोशल मीडिया जिस मानवीय भावना का दोहन करता है, वह है नाराज़गी और नफ़रत. इस बारे में कई शोध हो चुके हैं. यही भावना पोस्ट या ट्वीट के वायरल होने को संभव बनाती है और इसे प्रोमोट कर प्लेटफ़ॉर्म अपना इंगेजमेंट बूस्ट करते हैं.

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बात बोलेगी: ‘प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया’ से ‘प्रतिक्रिया ही प्रतिक्रिया’ तक

जब तक खुजलाते रहोगे, मज़ा आएगा लेकिन जब सतह की चमड़ी उधड़ जाएगी तब पसीना भी कष्ट देगा। इस खुजली का शिकार हर वह नागरिक है जो तब भी चिंता कर रहा था और अब भी एक अलग तरह की प्रतिक्रिया का शिकार होते जा रहा है।

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तन मन जन: सबसे खौफ़नाक दौर में पहुंच चुका है मलेरिया पैदा करने वाला परजीवी

इस लेख में मैं हजारों साल पुरानी महामारी मलेरिया की चर्चा करूंगा। 50,000 साल पुरानी यह महामारी अब अपने खौफनाक दौर में है!

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गाहे-बगाहे: वह आके ख्वाब में तस्कीने इज्तराब तो दे…

मेरे मन में एक सवाल उठता है कि अगर पचास फीसदी भारतीय शी जिनपिंग को पसंद करने लगेंगे तो क्या होगा? मोदी जी और उनके भक्त क्या सोचेंगे? उन्हें कैसा लगेगा?

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देशान्‍तर: बारूद के ढेर पर बैठे लेबनान में उगते इंक़लाब के फूल

इस बात का कोई जवाब नहीं है कि विस्फोट कैसे हुआ, किसने किया, यह बारूद का ढेर क्यों और कैसे इतने समय तक इकट्ठा हुआ और जहाज़ किसका था और वहां क्यों था? मलबे का ढ़ेर अभी पूरी तरह साफ़ भी नहीं हुआ है, लेकिन लेबनान हमेशा की तरह एक अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक अखाड़ा बना हुआ है। इस सप्ताह का देशांतर लेबनान के राजनैतिक हालात और अक्टूबर से चल रहे आंदोलन के ऊपर, जिसे अक्टूबर क्रांति भी कहा जा रहा है।

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दक्षिणावर्त: त्र्यंबक का संज्ञाहरण

उसके दिमाग को पढ़ा जा रहा था। यह बात वह अपनी पत्नी और एकमात्र दोस्त से कई बार बता चुका था, लेकिन दोनों ने ही उसकी बात को हवा में उड़ा दिया था।

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पंचतत्व: शहरों की बवासीर है ठोस कचरा

देश के पांच राज्य ऐसे हैं, जो देश के कुल कचरा उत्पादन का आधा हिस्सा बनाते हैं पर उसे ट्रीट नहीं करते. महाराष्ट्र सबसे अधिक कचरा पैदा करता है पर उसका 40 फीसद से अधिक कचरा बगैर ट्रीटमेंट के पड़ा रहता है.

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