तिर्यक आसन: सुख उनका कुत्ता है, दुख दूसरों का कुत्ता है!


गलियों के शहर बनारस की एक गली से गुजर रहा था। एक आदमी अपने घर से निकला। पीछे-पीछे आदमी का ‘इम्पोर्टेड’ टॉमी भी घर के बाहर आ गया। उसी गली में आवारा कहा जाने वाला एक कुत्ता भी टहल रहा था। आवारा कुत्ते को गले में पट्टा बाँध घर में कैद रहने वाले टॉमी पर दया आयी। वो टॉमी को पुचकारने लगा। आवारा कुत्ते द्वारा टॉमी को पुचकारते देख आदमी ने अपने बेटे को आवाज लगायी और कहा- टॉमी को घर में ले जाओ। बाहर का कुत्ता उसे सूँघ रहा है। टॉमी बीमार हो जाएगा। 

टॉमी के प्रति आदमी का प्यार सभ्यता के विकास की कहानी है। विकसित होते हुए सभ्यता उस अवस्था में पहुँच गयी है जहां आदमी, आदमी के प्रति वफादार नहीं रह गया है। वफादारी जब से बिकाऊ होकर अनेक नस्लों में आने लगी, तब से आदमी कुत्तों का वफादार बनने लगा है। कुत्ता सदियों तक आदमी का वफादार रहा है। आदमी अब कुत्ते की वफादारी का कर्ज चुका रहा है।  

बनारस में एक जगह विदेशी गर्म कपड़ों का बाजार लगता है। उनमें कुछ उतरन होते हैं। कुछ नये। उस बाजार में दुकान लगाने वाले सूत्रों से पता चला कि ये कपड़े विदेशों से जरूरतमंदों को दान करने के लिए आते हैं। फिर किलो के हिसाब से पटरी पर दुकान लगाने वालों को बेच दिये जाते हैं। पटरी पर लगने वाले विदेशी ऊनी कपड़ों के बाजार में अब देश में निर्मित कपड़ों पर मेड इन इंग्लैंड की मुहर लगाकर बेचने वाले भी आ गये हैं।

ग्यारहवीं कक्षा में मटरगश्‍ती करता था, तब उतरन के बाजार से सत्तर रुपये में मेड इन इंग्लैंड जैकेट खरीदी थी। ‘इम्पोर्टेड’ पर आँख गड़ाये रखने वालों की नज़र में वो जैकेट चढ़ गयी। कितने की ली? दाम बताऊँ उसके पहले ही- दो हजार की तो होगी ही! सत्तर रुपये की है, ये बताऊँ उसके पहले ही- कहाँ से ली? अगला सवाल नहीं हुआ तो बता दिया- पटरी से ली। जगह बतायी तो- मजाक करना कब छोड़ोगे?

मेड इन इंग्लैंड के भौकाल ने सच को भी मजाक बना दिया! सत्तर रुपये वाली मेड इन इंग्लैंड जैकेट की महिमा है कि आज भी दो सौ रुपये वाली मेरी टी शर्ट हजार की समझी जाती है। दो सौ रुपये वाली टी शर्ट को हजार की मानने वाले से दस-बीस रुपये माँगता हूं, तो वो ये भी समझ लेता है कि मैं कंजूस हूं। खैर, छोड़िए…

विदेशी गर्म कपड़ों के उतरन के बाजार में नफासती वर्ग भी आता है। उच्च वर्ग की जीवनशैली के अंध-अनुयायी नफासती वर्ग को सिर्फ मध्यम वर्ग से नहीं जोड़ा जा सकता। इस वर्ग के अनुयायी किसी भी वर्ग से निकल सकते हैं। इस वर्ग के प्रतिनिधि गाँवों में भी बहुतायत में पाये जाने लगे हैं। 

आर्थिक उदारीकरण के बाद टेलीविजन और टेक्नोलॉजी की 4G क्रांति के माध्यम से दिखावे की नौटंकियों ने घर-घर में सेंध लगायी है। गाँव भी दिखावे से अछूते नहीं बचे हैं। जाति और धर्म का छुआछूत भले ही जातियों और समुदायों को बाँटता हो, पर दिखावे के छूत ने उन सबको एक रखा है। जब दिखावे के छूत से पीड़ित दो व्यक्तित्व मिलते हैं, तो वे जाति-धर्म का छुआछूत भूल अपने-अपने दिखावे के माध्यम को गले लगाते हैं। पुचकारते हैं। दिखावे के छूत ने कार्ल मार्क्स के वर्ग में भी विभेद पैदा कर दिया है। ये तय करना मुश्किल हो गया है कि कौन शोषक है और कौन शोषित!  

गाँव में एक घर में कई कुत्ते हैं। उनमें से एक पर ‘इम्पोर्टेड’ की मुहर लगी है। घर में एक लड़का भी है। लड़का कुछ महीने पूर्व अन्य लड़कों के साथ घूमता था। अब उसका हृदय परिवर्तन हो चुका है। उसने अपने वर्ग को पहचान लिया है। अब वो इम्पोर्टेड के साथ घूमता है। जब लड़कों के साथ घूमता था, तब दूसरे गाँवों के लड़के भी उसके मित्र बने। वे जब इससे मिलने आते, तब उनके साथ कोई लड़का होता। उनका भी ह्रदय परिवर्तन हो गया। वे भी अपने वर्ग को पहचान लिए। अब वे मिलने आते हैं, तब उनके साथ भी इम्पोर्टेड होता है। मिलने पर दोनों के कुत्ते एक-दूसरे से बात करते हैं। वे दोनों अपने कुत्तों की बातें सुनते हैं। एक-दूसरे से बात नहीं करते। जब कभी एक-दूसरे से बात करते हैं, तो कुत्तों के सुख-दु:ख की चर्चा करते हैं। उन दोनों ने आदम के सुख-दु:ख को कुत्तों के सुख-दु:ख से ‘रिप्लेस’ कर लिया है। सुख उनका कुत्ता है। दु:ख दूसरों का कुत्ता है।      

उनकी ऐसी लगातार कई मुलाकातों के बाद मुझे लगा, शायद दोनों में कट्टी हो गयी हो। कुत्तों के बीच दोस्ती बरकरार रखने के लिए वे मुलाकात के सिलसिले को जारी रखे हों। ‘लगा’ समाधान के लिए एक और मुलाकात के अवसर पर मैंने एक से पूछा- दोनों में बात क्यों नहीं होती? एक ने बताया- होती तो है। भौंक-भौंक एक-दूसरे से बात करते हैं! मुझे आश्चर्य हुआ- मैं कुत्तों के बारे में नहीं, तुम दोनों के बारे में पूछ रहा हूं। दूसरे ने बताया- अभी हम कुत्तों की भाषा सीख रहे हैं। सीख लेंगे, तब उसी भाषा में एक-दूसरे से बात करेंगे।       

नफासती वर्ग में ताजा-ताजा शामिल हुआ एक सदस्य बड़े बाजार में जाता है। वहां एक किलो चीनी खरीदता है। एक किलो भारी पैकेट को ट्रॉली में रख कैश काउंटर तक जाता है। बिल चुकाता है। एक किलो भारी पैकेट से लदी ट्रॉली को धकेलते हुए बड़े बाजार से बाहर आता है। वहां ट्रॉली जमा कर देता है। आर्थिक मजबूती बढ़ने के बाद ये दो ट्रॉली लेगा। एक ट्रॉली में बैठकर खरीदारी करेगा। दूसरी में एक किलो का पैकेट रखेगा। दोनों ट्रालियों को धकेलने के लिए रोबोट खरीद लेगा। 

बीस करोड़ गरीबों के इस देश में एक ऐसा भी समूह है, जो समाजसेवा करने के लिए पूरे वर्ष हर हफ्ते नये-नये त्यौहार ‘बनाता’ है। बनाये गये नये त्यौहारों को मनाने के दौरान नये-नये व्यंजन भी बनाता है। जिस देश की बीस करोड़ से अधिक की आबादी भूखे पेट सोने के लिए मजबूर है, वही देश अपनी खान-पान की विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है! 

अंग्रेजों के जमाने में उदित हुए इस समूह की दावतों और शानो-शौकत को देख महानगरों के बाद छोटे-छोटे शहर भी संक्रमित होते चले गये। छोटे शहरों में इस समूह में शामिल होने के लिए प्रयासरत, सम्भावित सदस्यों की आर्थिक मजबूरी से सर्दियों में विदेशियों की उतरन और चूड़ी बिंदी के साथ आर्टीफिशियल ज्वेलरी बेचने वाली दुकानों के पास छोटे शहरों के बड़े वाहन खड़े होने लगे हैं। 

इस समूह के एक सम्भावित सदस्य सड़क के किनारे पटरी पर सजे विदेशी गर्म कपड़ों के उतरन के  बाजार में पहुँचते हैं। लंबी चौड़ी कद काठी के सम्भावित सदस्य गाड़ी से उतरते हैं। अपने काले चश्मे को आँखों पर चढ़ा लेते हैं। चश्मा नहीं लगाने पर आँखों में उतरने वाले झूठ के सार्वजनिक हो जाने का डर। 

वे एक दुकान पर पहुँचते हैं। दुकानदार से कहते हैं- कुछ बढ़िया दिखाओ यार। अपने ड्राइवर को देना है। दुकानदार साइज के बारे में पूछता है। वे बताते हैं- बिल्कुल मेरी साइज का है।

उधर उतरन के बाजार से थोड़ी दूर खड़ी गाड़ी में ड्राइवर सीट पीछे कर, डैश बोर्ड पर पैर पसार, हाफ स्लीपर की मुद्रा में बैठा मेमना साइज का ड्राइवर गाड़ी के अंदर लगे शीशे में देखते हुए, माचिस की तीली से दाँतों में फँसी सुपारी की कतरन निकाल रहा होता है। 

सदस्य की सदस्या का हाल। दोनों की कुंडली नहीं मिली थी, आदतों से वर्ग मिल गया। शादी के बाद वे ‘मेड फॉर ईच अदर’ हो गए। सदस्या के पहले सम्भावित हटाने के लिए वे घर के सभी खातों को हर हफ्ते ‘ऑडिट’ करवा रही थीं। उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि दशमलव के बाद बढ़ने वाली महंगाई उन्हें मध्यम वर्ग से निम्न मध्यम वर्ग में धकेल देती। अनवरत जारी कोशिशों के फलस्वरूप समूह के एक वरिष्ठ सदस्य के दानपत्र की बदौलत समूह के कोषाध्यक्ष उनका पूर्णकालिक तबादला मध्यम वर्ग में कर देते हैं। साथ ही समूह में शामिल हुए नये सदस्यों के स्वागत के लिए एक भव्य पार्टी के आयोजन की भी घोषणा की जाती है। 

सदस्या पार्टी में चार चाँद लगाने के उपायों के बारे में सोच रही हैं। ‘श्रृंगार तो बजट में आ जाएगा लेकिन स्त्री का आभूषण गहने होते हैं’, ये सोचकर उनकी सोच का सिर दर्द करने लगता है। समूह में पहली बार पुराने गहने पहनकर जाऊँगी तो काम वाली बाई क्या सोचेगी? ये सोचते हुए वो बाजार का रुख करती हैं। चूड़ी बिंदी के साथ नकली गहनों की दुकान के पास उनकी कार रूकती है। वे कार से उतरती हैं और दुकान की तरफ बढती हैं। उधर गाड़ी में बैठा ड्राइवर यथास्थिति में कतरन निकालने के कार्य में लग जाता है। 

सदस्या के शारीरिक हाव-भाव उतरन के बाजार में उतरे सम्भावित सदस्य की तरह ही होते हैं। दुकान पर पहुँचती हैं। दुकानदार से कहती हैं- भैया, लेटेस्ट डिजाइन की बढ़िया ज्वेलरी दिखाना। दुकानदार अपने हाथ आभूषण वाले डिब्बों की तरफ बढ़ाता ही है, तभी सदस्या फिर बोल पड़ती हैं- आज अपनी काम वाली बाई को समूह की पार्टी में लेकर जाना है। उसी को ज्वेलरी देनी है।

उधर घर में काम वाली बाई सदस्या द्वारा पार्टी में पहने जाने वाले बुटिक में डिजायन हुए डिजायनर कपड़ों पर इस्तरी कर रही होती है।

Two different kinds of Chihuahua dogs play and run together.

ग्यारहवीं कक्षा में मटरगश्‍ती करने के दौरान जहाँ अस्थायी निवास था, वहां पास-पड़ोस में नफासती वर्ग के सदस्य भी थे। बगल में ही एक पाँच सितारा होटल था। होटल परिसर की चहारदीवारी में कई जगह छोटे-छोटे सुराख थे जिनसे नफासती वर्ग द्वारा आवारा घोषित कुत्ते-कुतिया होटल के बगीचे में पहुँच जाते थे। 

चहारदीवारी के अंदर सुरक्षा के लिए कई इम्पोर्टेड टहलते रहते थे। एक कुतिया सुराख के रास्ते होटल के बगीचे में जाती। उसे देख इम्पोर्टेड रक्षक भौंकते। कुतिया पर वर्चस्व साबित करने के लिए आपस में तू-तू भौं-भौं भी करते।  

कुतिया के पीछे पड़े कुत्ते हजार शब्दों वाली, गागर में सागर भरने वाली सामाजिक परिदृश्य की तस्वीर बनाते हैं। तस्वीर के माध्यम से ‘मर्द’ मानसिकता, स्त्री दुर्दशा और लैंगिक अनुपात की प्रदर्शनी लगाते हैं। 

आते-जाते कुतिया की एक इम्पोर्टेड से बनने लगी। दोनों का प्रेम परवान चढ़ा तो कुतिया गर्भवती हो गई।

कुत्ते और कुतिया के चरित्र पर शक नहीं करना चाहिए। खलील जिब्रान के अनुसार- महान से महान आत्मा भी अपनी शारीरिक जरूरतों को नजरंदाज नहीं कर सकती। 

इम्पोर्टेड की आत्मा और कुतिया की आत्मा ने अपनी शारीरिक जरूरतों में से एक जरूरत को पूरा किया। कुतिया के पेट में कई आत्माएँ आ गयीं। 

आदमी भी अपनी शारीरिक जरूरत पूरा करने के लिए इधर-उधर नयी आत्मा का बीज रोप देता है, पर उन्हें अपना नाम नहीं देता। कुत्तों का अभिभावक जरूर बन जाता है। चीथड़ा पहने हुए आदमी के बच्चे को दुत्कारता है। टॉमी को पुचकारते हुए कहता है- अले मेला बच्चा। अले मेला बाबू।

लड़का या लड़की होने के जिम्मेदार गुणसूत्र पुरुष के पास होते हैं, पर लगातार तीन-चार लड़कियां पैदा हो जाएं तो ‘औरत में ही कोई खराबी है’ का ताना मिलता है। लगातार तीन-चार लड़के हों तो पुरुष के ‘पौरुष में बहुत दम है’ की दाद मिलती है। कुतिया पर इम्पोर्टेड की कृपा थी। उस पर मेड इन इंग्लैंड की मुहर लगी हुई थी। लड़की या लड़के का पता लगाने के लिए भ्रूण का लिंग परीक्षण कराने वालों को कुतिया के बच्चों के लिंग से कोई समस्या नहीं थी! पिल्ले हों या पिल्ली, भावी अभिभावक तैयार थे! मेड इन इंग्लैंड की महिमा। 

वो वर्ग, जो आवारा कुत्ते-कुतिया से अपने टॉमी को बचाने के लिए कहता है- ‘टॉमी को अंदर ले जाओ। बाहर का कुत्ता सूँघ रहा है। टॉमी बीमार हो जाएगा’, वही वर्ग आवारा कुतिया की देखभाल के प्रति चिंतित हो उठा। कुतिया के प्रसव की तारीख का अनुमान लगाने लगा। फलाँ महीने में बच्चा देगी। कितने बच्चे होंगे? पिल्ले काले हों तो अच्छा रहेगा। पिल्ली भूरी हो तो अच्छा रहेगा। 

वो आत्माएँ जिनका न तो लिंग निर्धारित था और न ही देश, उन्हें गोद लेने की तैयारी थी। आदमी का शरीर पहनकर बहुत सी आत्माएँ अनाथ घूम रहीं हैं, उन्हें गोद लेने वाले दुर्लभ हो गये हैं।



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