हर्फ़-ओ-हिकायत: 2014 में स्वतंत्र हुए लोगों का ऐतिहासिक संकट


बॉलीवुड की अदाकारा कंगना रनौत ने एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा है कि 1947 में जो आजादी मिली वो भीख थी, असली आजादी 2014 में मिली है। जाहिर है इसके बाद दो भागों में बंटी सोशल मीडियाजीवी जनता में जोरदार चर्चा छिड़नी ही थी। बीजेपी के नेता वरुण गांधी ने कंगना के बयान पर रोष व्यक्त किया और पूछा कि इस सोच को मैं ”पागलपन कहूं या फिर देशद्रोह?” वरुण की टिप्‍पणी में रानी लक्ष्‍मीबाई का भी जिक्र था तो कंगना को गुस्सा आना ही था चूंकि लक्ष्मीबाई के भूत, वर्तमान औऱ भविष्य सिर्फ रनौत जी का पेटेंट है, कॉपीराइट तो छोटी चीज है।

कंगना खुद कहती हैं कि बॉलीवुड में एक वही हैं जिन्होंने पहली बार देशभक्ति फिल्म बनायी है वो भी रानी लक्ष्मीबाई पर। सो, कंगना ने फौरन काउंटर बयान जारी किया और लिखा कि ”हालांकि, मैंने साफ बताया था कि 1857 में आजादी की पहली लड़ाई हुई, जिसे दबा दिया गया। इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत अपना अत्याचार और क्रूरता को बढ़ायी गयी। फिर एक सदी के बाद गांधी के भीख के कटोरे में हमें आजादी दे दी गयी… जा और रो अब।”

कंगना द्वारा 1857 के जिक्र के साथ ही कहानी इतिहास के मकड़जाले में फंस गयी है। सवाल उठता है कि 1857 में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ी थी या फिर झांसी को उनके कब्जे से बचाने की जंग लड़ी थी क्योंकि उससे पूर्व तो वहां अंग्रेजों का शासन ही नहीं था। फिर रानी लक्ष्मीबाई किससे आजादी चाहती थीं? इस सवाल के जवाब में कंगना के पुरखों का भी इतिहास बरामद हो सकता है। इसलिए इतिहास के झरोखे से आजादी की कथित पहली लड़ाई को देखने की जरूरत है, जिसका जिक्र कंगना कर रही हैं।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगल बादशाह औरंगजेब को इस बात के लिए राजी किया हुआ था कि वे कंपनी को बिना शुल्क दिए व्यापार कर सकें। 1707 में औरंगजेब के निधन के बाद भारत की तमाम रियासतें अलग-अलग फैसले लेने लगीं। 1754 में बंगाल के नवाब ने कंपनी का बिना शुल्क व्यापार प्रतिबंधित कर दिया जिसके बाद पहली बार कंपनी की बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला से सीधी जंग हुई। 1765 तक बंगाल (तब बिहार का इलाका भी बंगाल में आता था) कंपनी के अधीन चला गया और मुगल बादशाह ने बंगाल की नवाबी कंपनी को सौंप दी। इसके बाद 1857 तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के तमाम राज्यों में रेजिडेंट नियुक्त किए जो धीरे-धीरे व्यावसायिक प्रतिनिधि की जगह राज्य या उस देश की सत्ता और राजा कौन होगा यह तय करने लगे। कुछ राज्यों के साथ उन्‍होंने सहायक सेना संधि (Subsidiary Alliance) कर ली और बाद में राजा बनाने के नाम पर राज्य ही हड़प लिया। इस तरह से अंग्रेज कंपनी ने बहुत रणनीतिक तरीके से भारत के भूभाग में अलग-अलग देशों को अपने कब्जे में ले लिया, जैसे झांसी, ग्वालियर, काशी, बिठूर, दरभंगा, जयपुर, जोधपुर, हैदराबाद, मैसूर, पटियाला, सतारा, बडौदा, इंदौर, पुणे, सूरत, पंजाब! ऐसे सैकड़ों देशों पर अंग्रेजी कंपनी ने सहायक सेना संधि के जरिये कब्जा कर लिया।

His Excellency the Governor-General’s policy in establishing subsidiary alliances with the principal states of India is to place those states in such a degree of dependence on the British power as may deprive them of the means of prosecuting any measures or of forming any confederacy hazardous to the security of the British empire, and may enable us to reserve the tranquility of India by exercising a general control over those states, calculated to prevent the operation of that restless spirit of ambition and violence which is the characteristic of every Asiatic government, and which from the earliest period of Eastern history has rendered the peninsula of India the scene of perpetual warfare, turbulence and disorder…

Richard Wellesley, 4th February 1804, dispatch to the East India Company Resident in Hyderabad

1857 में कंपनी की धोखेबाजी के खिलाफ सभी राजा और नवाब एकजुट होने लगे, लेकिन मुगल बादशाह कमजोर पड़ चुका था! ऐसे में अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने कंपनी के खिलाफ रणनीति तो बनायी, लेकिन मेरठ में कंपनी की छावनी में देशी सिपाहियों के बगावत से रणनीति गडबड़ हो गयी। खैर, बागी कंपनी के सिपाही दिल्ली पहुंच गए और मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेतृत्व सौंप दिया। इससे पहले झांसी के राजा की मृत्यु के बाद उनके निस्‍संतान होने की वजह से कंपनी के रेजिडेंट ने झांसी में अपनी पसंद का नया उत्तराधिकारी बनाना चाहा था। 1840 में लॉर्ड डलहौजी ने एक नीति (Doctrine of Lapse) बनायी जिसमें किसी भी शासक के निस्‍संतान होने पर उसे अपने उत्तराधिकारी को गोद लेने का अधिकार नहीं था। शासक की मृत्यु होने के बाद या सत्ता का त्याग करने पर उसके शासन पर कब्ज़ा कर लिया जाता था। रानी झांसी इस संधि से मुकर गयीं और कंपनी की फौज से लड़ गयीं।

सवाल उठता है कि पहले ही सहायक सेना संधि और रेजिडेंट की शर्त मान चुके झांसी के पास आखिर क्या विकल्प था? झांसी के राजा ने कंपनी की शर्तों को क्यों माना? और जब समझौता हो रहा था तो रानी कहां थीं? इसलिए कंगना रनौत का ये कहना कि 1857 में राजा और नवाब आजादी की लड़ाई लड़े थे, अजीब लगता है। ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि किसी भी देश ने जनता से पूछ कर तो किया नहीं था। एक दूसरे राज्य से लड़ने के लिए कंपनी की सेना को रखना, व्यापार के लिए रेजिडेंट को रखना, ये सब उनके अपने फैसले थे। फिर किस बात की आजादी की लड़ाई?         

हिमाचल प्रदेश सरकार की आधिकारिक वेबसाइट

कंगना रनौत को अपने गृह प्रदेश में मंडी और कांगड़ा का इतिहास भी नहीं मालूम है, कि 1857 में उनके पुरखे क्या कर रहे थे। 1809 में लाहौर के महाराजा रणजीत सिंह ने मंडी और कांगड़ा देश को गोरखा राज्य से आजाद कराया था, लेकिन 1845 में कंपनी और सिखों के बीच हुई जंग में मंडी और कांगड़ा के राजाओं ने कंपनी का साथ दिया था। हिमाचल प्रदेश सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर साफ-साफ लिखा है कि 1857 में बुशहर के अलावा पहाड़ी राज्य अन्य राज्यों की तरह सक्रि‍य नहीं थे।

दरअसल, 1757 के प्लासी के युद्ध और 1764 में बक्सर के युद्ध के बाद कंपनी ने भारत की सीमा में स्थित तमाम देशों को सहायक सेना संधि से डील कर लिया था। इस भारी मूर्खता को 1857 की आजादी की पहली जंग कहना अदभुत इतिहासबोध है। जिन्हें ये नहीं पता है कि 1858 में ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन अपने हाथ में लिया था वे अब बता रहे हैं कि 1947 में भारत को आजादी ‘भीख’ में मिली है।

सबसे पहले कंगना रनौत को ये पता करना चाहिए कि जिसे वे आजादी की पहली नाकाम जंग कह रही हैं, उसमें उनके पुरखों ने अंग्रेजों का साथ दिया था या मुगलों का। उसके बाद कंगना खुद बताएं कि उन्हें आजादी किससे और कैसे मिली है।


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