बुनियादी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत


आज देश में दो तरह की शिक्षा व्यवस्था है- एक पैसे वालों और सक्षम लोगों के लिए जो अच्छे से अच्छे इंग्लिश मीडियम के स्कूल में पढ़ कर देश के उच्च संस्थानों में जाकर अपना भविष्य संवार सकें और दूसरा गरीबों की, जिनका सरकारी स्कूलों से पढ़कर अपना भविष्य बनाने की जद्दोजहद में उच्च संस्थानों में पढ़ना महज एक सपना रह गया है।

आजादी के बाद से देश में जहां ‘टेम्पल ऑफ एक्सेलेन्स’ कहे जाने वाले उच्च संस्थानों का निर्माण हुआ वहीं प्राथमिक शिक्षा बदहाल रही। सरकारी स्कूली व्यवस्था इस तरह से कमजोर होती गयी कि सरकारी स्कूल के बच्चे इंग्लिश मीडियम के प्राइवेट स्कूल के बच्चों से पिछड़ लगे और प्राइवेट स्कूल और इंग्लिश मीडियम स्कूल की महत्ता बढ्ने लगी। सत्‍तर और अस्‍सी के दशक में पहली बार सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान चलाया, फिर मिड डे मिल का प्रबंध किया गया और उसके उपरांत आने वाली हर सरकार ने कुछ न कुछ प्रयास किए लेकिन बुनियादी शिक्षा की व्यवस्था में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं आया। शिक्षा का अधिकार कानून (राइट टु एजुकेशन एक्ट) बना लेकिन इतने साल बाद भी यह सभी राज्यों में सभी प्राइवेट स्कूलों में लागू नहीं हो पा रहा है।   

उधर आइआइटी और आइआइएम से पढ़ने के बाद अधिकतर नौजवान बाहर का रुख करने लगे। इसका सबसे बड़ा कारण था कि भारत में उद्योग-धंधों की कमी थी। हर एक प्रोफेशनल को शिक्षा देने में सरकार के करोड़ों रुपये खर्च हो रहे थे फिर भी देश का बौद्धिक नुकसान तेजी से हो रहा था।

आज भारत विश्व का सबसे जवान देश है। भारत की आबादी लगभग 136 करोड़ है जहां 62 फीसदी से अधिक लोग 15 से 59 साल के हैं और 35 फीसदी लोग 19 वर्ष से कम उम्र के हैं। ऐतिहासिक रूप से यह देखा गया है कि इस तरह के जनसांख्यिकीय लाभांश ने कई देशों के समग्र विकास का 15% तक योगदान दिया है। कई एशियाई देशों- जापान, थाइलैंड, दक्षिण कोरिया और हाल ही में चीन ने अपने तीव्र विकास में इसका लाभ उठाया है। क्या भारत जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठा पाएगा?

इतनी बड़े जनसंख्या के लिए देश में पर्याप्त रोजगार नही हैं, औद्योगिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं है, बहुत से राज्यों में उद्योग धंधे नगण्य हैं जो इतने बड़े मानव संसाधन का उपयोग करने में अक्षम बनाता है। 50% से अधिक छात्रों में स्कूली पढ़ाई के पांच साल के बाद भी बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल की कमी है। हमारे देश के सरकारी स्कूल के छठवीं-सातवीं के आधे से अधिक बच्चे सही से रीडिंग नही कर पाते हैं और जोड़ तक नही जानते हैं। इतनी बड़ी आबादी की उचित शिक्षा और पर्याप्त रोजगार की व्यवस्था नहीं होने पर बहुत सारी समस्याओं की श्रृंखलाबद्ध शुरुआत हो जाती है।

एनसीईआरटी की पुस्तकें बहुत अच्छी है, उसमें बच्चों को सिखाने के लिए बहुत सारे क्रियाकलाप दिये होते हैं, लेकिन उन क्रियाकलापों को करवा पाना मुश्किल हो जाता है क्‍योंकि एक टीचर को एक कक्षा में 60 से 100 बच्चे देखने होते हैं। यूरोप और दूसरे विकसित देशों में एक शिक्षक पर 10 से 12 बच्चे होते हैं। छात्र-शिक्षक अनुपात को हमारे यहां सही किये जाने की जरूरत है।

भारत को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 6% शिक्षा पर खर्च करने की आवश्यकता है, 1968 से प्रत्येक राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह कहा गया है। 2019-20 में भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3.1% शिक्षा पर खर्च किया। चीन की आबादी लगभग भारत के करीब है लेकिन उसका 2020 का शिक्षा बजट भारत के 2021 के शिक्षा खर्च की तुलना में चार गुना अधिक है। आइएमडी बिजनेस स्कूल की एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत प्रति छात्र सार्वजनिक व्यय के मामले में 62वें स्थान पर है।

चूंकि शिक्षा केंद्र और राज्य दोनों के अधीनस्थ विषय है अतः यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि राज्य सरकार की ऐसी मंशा न हो। इस मामले में दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में संसाधनात्मक और संरचनात्मक नवीनता सबसे बड़ा उदाहरण है।

बुनियादी शिक्षा व्यवस्था और औद्योगिक शिक्षा पर सरकार को अच्छा बजट खर्च करने की जरूरत है और इसके लिए यदि जरूरत पड़े तो उच्च शिक्षण संस्थानों के बजट में कटौती करनी पड़े तो वो भी किया जा सकता है। उच्च संस्थानों जैसे आइआइटी और आइआइएम को सेल्फ सस्टेनेबल फाइनेशिंयल संस्थान बनाया जा सकता है। अलूमनी ग्रुप्स की सहायता और प्रोजेक्ट बेस्ड इंडस्ट्री, आदि से वित्तीय व्यवस्था का संचालन किया जा सकता है और पहले से ही कुछ उच्च संस्थान इस पर काम भी कर रहे हैं।  

बच्चों के विकास के लिए जब हर उचित संसाधन मौजूद रहेंगे तो अवश्य ही बुनि‍यादी शिक्षा में एक आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल सकता है। इसके साथ ही यदि शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन सुनिश्चित करना है तो हर हाल में इस क्षेत्र को भ्रष्टाचार मुक्त रखने का प्रयास करना होगा और इसके लिए हरेक स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।



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