‘आज नहीं तो कल, लोग फट पड़ेंगे’: दो फर्जी मुठभेड़ों और हत्याओं के बाद कश्मीर


अगस्‍त 2019 में तत्‍कालीन जम्‍मू और कश्‍मीर की सीमित स्‍वायत्‍तता को छीने जाने के बाद से इस क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन और बंद की लगभग समाप्ति हो चुकी थी। ऑनलाइन माध्‍यमों से लेकर सड़कों तक सरकारी निगरानी इतनी बढ़ गयी थी कि लोग प्रदर्शनों से दूर रहना शुरू कर चुके थे। तब से लेकर अब तक ऐसा पहली बार हुआ है कि श्रीनगर में हत्‍याओं के खिलाफ बंद का आयोजन किया गया।

नये साल पर श्रीनगर पूरी तरह से ठप था। ये बंद किसने बुलाया, इसको लेकर तरह-तरह की बातें हैं। दि कश्‍मीरवाला डॉट कॉम पर यशराज शर्मा ने 4 जनवरी को एक विस्‍तृत रिपोर्ट लिखी जिसमें कश्‍मीर घाटी में सतह के नीचे चल रही हलचलों की ओर एक इशारा है। इसकी कहानी शुरू होती है साल के अंत में हुई फर्जी मुठभेड़ में की गयी हत्‍याओं से, जिसमें तीन नौजवान मारे गये थे।  

बीते साल के अंत में 29-30 दिसंबर 2020 की रात सेना की अगुवाई में सैन्‍यबलों ने श्रीनगर से लगे इलाके में कथित रूप से आतंकी होने का आरोप लगाते हुए तीन नौजवानों को मार गिराया। मृतकों में 16 वर्षीय अतहर मुश्ताक वानी, 25 वर्षीय जुबैर अहमद लोन और 23 वर्षीय एजाज मकबूल गनाई शामिल थे। सूत्रों और मीडिया में आयी रिपोर्ट के अनुसार मारे गये तीनों के खिलाफ सुरक्षा बलों के पास कोई मामला दर्ज नहीं था।

इस घटना के महज चार दिन पहले ही पुलिस ने शोपियाँ में हुई फर्जी मुठभेड़ पर बयान जारी करते हुए इस बात का पर्दाफाश किया था कि किस तरह दक्षिण कश्मीर के दो स्थानीय नागरिकों की मदद से सेना के एक कैप्टन ने राजौरी से एक नाबालिग सहित तीन नौजवानों को अगवा कर लिया और फर्जी गोलाबारी दिखाते हुए उनके शरीर से हथियारों की बरामदगी दिखाई थी।

यशराज शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक:

उसी दोपहर भारतीय सेना की किलो फोर्स के जीओसी एच. एस. साही ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा : “पौ फूटते ही गोलीबारी फिर से चालू हो गई और आतंकियों ने भारी विस्फोटको के साथ सुरक्षा बलों पर हमला बोल दिया।” साही ने दावा किया कि “श्रीनगर के बाहरी इलाके लवायपुरा में बड़ी आतंकी करवाई की योजना बनाते हुए तीन आतंकवादी मार गिराए गए।”

मुठभेड़ में मारे गए तीनों कथित आतंकियों की तस्वीरें जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, दक्षिण कश्मीर के तीन परिवारों के लोगों ने शोपियाँ की तर्ज़ पर अपने परिजनों के बेकसूर होने का दावा करते हुए उनकी मृत देह को सौंपने की मांग की।

इस घटना की जब आलोचना शुरू हुई और जांच की मांग उठी तो पुलिस ने दो वीडियो ट्वीट किए जिनमें एक घर को घेरे हुए सुरक्षाबल नजर आ रहे हैं।

फ़र्जी मुठभेड़ के आरोप लगने के बाद पुलिस ने दो वीडियो जारी किये। एक वीडियो 29 दिसंबर की रात का है और दूसरा 30 की सुबह का। दोनों में सुरक्षा बलों को अज्ञात व्यक्तियों से समर्पण करने की अपील करते सुना जा सकता है।

पुलिस के अनुसार मुठभेड़ तब शुरू हुई जब सेना को आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में सूचना मिली और 29 दिसंबर की शाम तलाशी अभियान शुरू किया गया था। सुरक्षा बलों ने कहा कि ऑपरेशन को रात के अंधेरे के कारण रोक दिया गया था और 30 दिसंबर की सुबह फिर से शुरू कर दिया गया। सुरक्षा बलों के अनुसार ऑपरेशन तीन छिपे हुए आतंकवादियों की हत्या के साथ लगभग 11.30 बजे समाप्त हो गया था।

यशराज शर्मा अपनी रिपोर्ट में एजाज़ गनाई के परिवार के हवाले से लिखते हैं- 29 दिसंबर, मंगलवार को 23 वर्षीय गनाई पुलवामा के पुत्रिग्राम के अपने घर से सुबह्र करीब 11 बजे श्रीनगर में पीजी में दाखिला लेने के लिए निकला और फिर लौट कर नहीं आया।

ऐजाज़ की लाश की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद अगली सुबह गनाई परिवार हैरान रह गया। एजाज़ के पिता, मोहम्मद मकबूल गनाई, जो कि कश्मीर के गांदरबल में तैनात एक पुलिस कांस्टेबल हैं, ने कथित गोलीबारी में मारे गए तीन युवकों की तस्वीर से एजाज़ की पहचान की थी। उन्होंने अपनी बेटी, एजाज की बड़ी बहन, असिया गनाई को फोन किया और इसकी जानकारी दी। असिया को यकीन नहीं हुआ। उसने तस्वीर देखी और अपने भाई को पहचान लिया।

परिवार ने “फर्जी मुठभेड़” में एजाज़ की हत्या का आरोप लगाते हुए सरकारी बलों के खिलाफ नारेबाजी की। एजाज़ के पिता का कहना है कि 29 को ही तीन बजे उसने घर फोन किया था। घरवालों ने उससे पूछा था कि, उसने खाना खाया या नहीं। “उसने मुझे बताया कि वह न्यूवा [पुलवामा जिले के एक गाँव] में एक दोस्त के घर पर रहेगा।” असिया कहती हैं– उसके बाद से उसका फोन नहीं लगा।

अतहर वानी के पिता अपने बेटे की लाश मांगते हुए, साभार: thekashmirwalla.com

अतहर मुश्ताक 11वीं क्लास का छात्र था। वह 29 तारीख को परीक्षा के लिए घर से किताबें लेने गया था। उसने घर में खाना खाया और शाम 4 बजे निकल गया था। अतहर के चाचा शफ़ी के मुताबिक, शफी के बेटे और अतहर का चचेरा भाई रईस काचरू एक हिजबुल मुजाहिदीन आतंकवादी था, जो 2017 में पुलिस अधिकारियों पर एक मुठभेड़ के दौरान मारा गया था।

शफ़ी कहते हैं– “मेरे बेटे को तो पहले ही मार चुके हो, और कितनों को मरोगे? वो (अतहर) आतंकवादी नहीं था।“

इस कथित पुलिस मुठभेड़ में कत्ल हुए तीसरे व्यक्ति 25 वर्षीय ज़ुबैर अहमद लोन के भाई मोहम्मद अल्ताफ लोन, जो पुलिस विभाग में काम करता है, ने एक स्थानीय समाचार पत्र को बताया कि उसके भाई को बलों द्वारा गलत तरीके से मार दिया गया। लोन ने 10वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी और एक स्थानीय शटरिंग यूनिट में एक कारपेंटर था।

“वह मंगलवार को घर पर था और परिवार के साथ दोपहर का भोजन किया। उसके बाद, हमें उसके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।“ अल्ताफ लोन ने कहा, “हमने सोचा कि वह रिश्तेदारों से मिलने गया होगा।”

इस तरह से तीनों के परिवार वालों ने उनकी मौत की कहानी सुनाई।

घाटी में अविश्वास का माहौल तो पहले से ही था। फर्जी मुठभेड़ की इन दो घटनाओं ने पुलिस और आम जनता के बीच के विश्वास को और भी कमजोर करने का काम किया। सुरक्षा बलों की इस कारवाई के विरोध में कश्मीर के पुलवामा और शोपियाँ में 2021 के पहले दिन 1 जनवरी को सार्वजनिक जीवन ठप रहा।

शर्मा की रिपोर्ट कहती है कि किसी को इसकी जानकारी नहीं थी कि बंद का आह्वान किसने किया। कश्मीर के एक मामूली इलाके में सोफ़ी की बगल में बैठे आदमी के मुताबिक “बंदी की घोषणा पाकिस्तान ने की थी।” एक छोटे से समूह में कुछ लोगों के साथ बैठे एक आदमी ने इसका खंडन किया: “नहीं, बंद का आह्वान किसी ने नहीं किया। जनता ने अपनी मर्ज़ी से बंद रखा।”

30 दिसंबर को मारे गए तीनों नौजवानों के शवों को श्रीनगर में पुलिस नियंत्रण कक्ष (PCR) लाया गया तब कक्ष की घेराबंदी नुकीले तारों और भारी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती से की गई थी। जैसे ही मृतकों के परिजन केक्ष के बाहर शवों की मांग के लिए इकट्ठी हुई, वैसे ही और अधिक सुरक्षा बल वहाँ भेज दिए गए।

मारे गए नौजवानों में एक एजाज़ गनई की माँ ने रोते हुए कहा, “कम से कम मुझे उसकी लाश तो दे दो, वह एक सामान्य नागरिक है। मुझे उसकी लाश सौंप दो।”

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि, इस मामले में सिर्फ एक निष्पक्ष जांच ही परिवारों को शांत कर सकती है।

कश्मीर में इस मुठभेड़ को लेकर काफी आक्रोश है। यह आक्रोश क्‍या शक्‍ल लेगा आने वाले दिनों में, इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। शर्मा अपनी कहानी में महाराजगंज से सोफ़ी को उद्धृत करते हैं:

‘’नब्‍बे के दशक में कौन जानता था कि बंदूकें निकल आएंगी? इस बार आप नहीं जानते कि क्‍या होने वाला है, लेकिन जो भी होगा वो 2008, 2010, 2010 और 2016 से बड़ा होगा। आज नहीं तो कल, लोग फट पड़ेंगे।‘’


अनुवाद और प्रस्तुति: नित्यानंद गायेन


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