75 वर्ष बनाम डेढ़ घंटे: हिंदी साहित्य उर्फ़ पेज थ्री संवेदना



27 जनवरी 2007 को एक अद्भुत घटना घटी…पता नहीं यह पहले ही हो गया या हमें पता बाद में चला, एक समूचा शहर अपनी तमाम संवेदनाओं, दावों और मानवीयता के साथ मौत की नींद सो गया। जानते तो हम पहले भी थे और अब भी हैं कि दिल्ली की दीवार यूं तो बहुत ठोस होती है और उसे भेद पाने के लिए हरक्यूलिस जैसी ताक़त चाहिए, लेकिन देखा पहली बार…75 वर्ष का जिया एक जीवन पंचतत्व में विलीन हो गया और साथ ही भस्म हो गईं उन लोगों की तमाम संवेदनाएं, मिट गए सबके ओढ़े हुए दुख और छीज गया लेखक होने का झीना परदा…

कमलेश्वर की मौत दरअसल देश की सांस्कृतिक राजधानी और साथ ही राजनीतिक राजधानी के तमाम बौद्धिक नुमाइंदों के बेनकाब हो जाने के लिए एक माध्यम बन गई…जाते-जाते कमलेश्वर यह सबसे ज़रूरी काम कर गए। अंत्येष्टि स्थल लोदी रोड पर जमावड़ा था दिल्ली के तमाम संपादकों, लेखकों और पत्रकारों का… और कहना न होगा कि कौन कितना दुखी था, यह उसके द्वारा टीवी चैनलों को दी जा रही बाइट, चैनलों को दिए जा रहे फोन-इन और पत्रकारों से की जा रही बातचीत में अभिव्यक्त हो रहा था।

एक ओर दूरदर्शन के महानिदेशक और बड़े कवि लीलाधर मंडलोई अपने ही सरकारी चैनल को बाइट देने में लगे हुए थे तो दूसरी ओर चित्रा मुदगल अपने फोन पर कमलेश्वर की जीवनी किसी चैनल को दिए जा रही थीं। नाम बहुत से हैं, किनकी-किनकी बात करें…बात नाम की नहीं है…क्या यह कहने में कोई संकोच हो सकता है कि यह वक्त और जगह बाइट देने की नहीं है…

हमारी दूसरी पंक्ति के लेखक…कुछ युवा और कुछ अधेड़ वहां मौजूद संपादकों और पत्रकारों से जुगाड़ भिड़ा कर इस मौत को शब्दों में ढाल कर सबसे पहले छप जाना चाहते थे…हमारे एक युवा मित्र इस बात को लेकर परेशान थे कि चूंकि अंतिम साक्षात्कार कमलेश्वर का करने का मौका उन्हें ही मिला, इसलिए अब कहां छपने की जुगत लगाई जाए। भागलपुर से आए एक अल्प चर्चित कहानीकार और फोटोग्राफर रंजन श्मशान स्थ‍ल पर साहित्यकारों के बगल में डिफॉल्ट खड़े होकर अपने चेले-चपाटों के द्वारा फोटो खिंचवाने में लगे थे…उनके उत्साह पर रोक लगाने की जब मैंने कोशिश की तो उन्होंने मुझे ही फ्रेम में उतार लेना चाहा…क्या है ये सब। क्या यह मान लिया जाए कि हिंदी प्रदेश की जनता संवेदनहीन हो चुकी है, विवेकहीन हो चुकी है अथवा यह एक शहर की मौत के संकेत हैं…कौन ज़िम्मेदार है।

बात यहीं तक रहती तो भी कम अक्षम्य नहीं है…उसी शाम गांधी शांति प्रतिष्ठान में 4.00 बजे कथाकार शिव कुमार शिव के नए उपन्यास का लोकार्पण और प्रथम सुधा सम्मान समारोह था…सुधा शिव जी की बहू का नाम है जिनका दुखद देहांत पिछले वर्ष हो गया। आधे से ज्यादा जनता डेढ़ घंटे के शोक के बाद वहीं पाई गई…हां, हम भी वहां थे यह कहने में कोई संकोच नहीं…हम गए थे देखने तमाशा कि कैसे उड़ते हैं चीथड़े ग़ालिब के…

राजेंद्र यादव, असग़र वजाहत और कई अन्य मंचस्थ…ठीक 4.30 पर…अभी कमलेश्वर की चिता की आग भी शांत नहीं हुई थी। खचाखच भरा हॉल और अपने-अपने आदमियों को मिलने वाले पुरस्कारों के बेकल इंतज़ार में जुटी साहित्यिक भीड़ जिसे पिछली रात हुई मौत से रंच मात्र लेना-देना नहीं था शायद…मैंने शिवजी से पूछा था वहीं पर कि क्या कार्यक्रम स्थगित नहीं किया जा सकता…उन्होंने ‘नहीं’ में जवाब दिया…माना जा सकता है कि भागलपुर से दिल्ली आई जनता की तकनीकी दिक्कतात रही होंगी…यादव जी और वजाहत साहब का क्या…क्या अपनी संवेदना को बचाने का साहस उनमें भी नहीं….

एक सज्जन हैं अजय नावरिया…दलित आलोचक…उन्हें अंत्येष्टि स्थल पर सभी को खुलेआम यह निमंत्रण देते पाया गया कि आज उन्हें पुरस्कार मिलने वाला है और सभी अवश्य आएं…क्या यह अश्लीलता से कम कुछ भी है…जी हां, उन्हें आलोचक की श्रेणी में पुरस्कार दिया गया…कहने की ज़रूरत नहीं कि क्यों और कैसे। पुरस्कार किन्हें दिए गए और क्यों…ये नाम देखकर आप खुद समझ जाएंगे…हिंदी में कहानीकार रंजन से बेहतर हैं, आलोचक अमरेंद्र और अजय नावरिया से प्रखर और टीवी पत्रकार वर्तिका नंदा से तेज…लेकिन पुरस्कारों की बगिया में एक ही प्रसून खिलता है…यह बात और आगे जाती है, खैर…

तो याद कीजिए पेज थ्री…मधुर भंडारकर की वह फ़िल्म जिसमें शहर में होने वाली मौतों पर नम होने वाली आंखों पर काले चश्मे दिखाए गए थे…अजीब बात है कि दुनिया को देखने वाला सभी का चश्मा लाल है, दिखाने वाला भी लाल…लेकिन मौत हमेशा काली ही दिखाई देती है…और काले में पारदर्शी आंसुओं को छुपाया दिखाया जा सकता है…

75 वर्ष के ए‍क जीवन को डेढ़ घंटे के शोक में बिसार दिया गया…यह हिंदी का पेज थ्री है…दरअसल, दोनों में अब कोई विभाजक रेखा नहीं रही…

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4 Comments on “75 वर्ष बनाम डेढ़ घंटे: हिंदी साहित्य उर्फ़ पेज थ्री संवेदना”

  1. चिट्ठाजगत में स्वागत है आपका। उम्मीद है निरंतर लेखन चलता रहेगा।

  2. मन से निकली सच्ची श्रद्धांजलि है. कमलेश्वर जी को श्रद्धा सुमन.

  3. आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में स्वागत है..

    आपकी सूचना के लिये – आपके पन्नों पर बीच-बीच में कुछ पंक्तियां उपर या नीचे से आधी गायब हो जा रही हैं (मै इण्टरनेट इक्सप्लोरर प्रयोग कर रहा हूं)

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