नई दिल्ली, 20 दिसंबर : छत्तीसगढ़ की जेल में फर्जी मुकदों में बंद दो पत्रकारों संतोष यदव व सोमारू नाग की तत्काल रिहाई समेत कई अन्य मांगों को उठाने के लिए कल यानी 21 दिसंबर, 2015 को जगदलपुर में होने जा रहे पत्रकार महाआंदोलन को प्रतिष्ठित लेखकों, पत्रकारों, राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने अपना समर्थन दिया है।
इस साल सबसे पहले साहित्य अकादमी का पुरस्कार लौटाने वाले प्रतिष्ठित लेखक उदय प्रकाश ने भी संतोष और सोमारू की रिहाई के समर्थन में जारी बयान पर दस्तखत किया है। ध्यान रहे कि उदय प्रकाश द्वारा साहित्य अकादमी का पुरस्कार लौटाए जाने के बाद ही देश भर में लेखकों का प्रतिवाद शुरू हुआ था और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ मुख्यधारा में एक बहस अब तक जारी है। प्रतिष्ठित साहित्यकार असद ज़ैदी, पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा, लेखक पंकज बिष्ट, अपूर्वानंद, दिलीप मंडल, सुभाष गाताड़े और वरिष्ठ पत्रकार जावेद नक़वी, भारत भूषण, सीमा मुस्तफा, उज्जवल भट्टाचार्य, राजकिशोर व प्रशांत टंडन ने भी छतीसगढ़ में पत्रकारों के दमन की निंदा की है।
बयान पर दस्तखत करने वाले राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में भारत का लोक जनवादी मोर्चा (पीडीएफआइ), एपवा, जामिया टीचर्स सॉलिडरिटी असोसिएशन, न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, ऑल इंडिया तंज़ीम-ए-इंसाफ़, युवा भारत, रिहाई मच, इंसाफ अभियान, जेयूसीएस, पीयूसीएल दिल्ली और जन संघर्ष समन्वय समिति शामिल हैं।
कई वेबसाइट, समाचार पोर्टल और ब्लॉगों ने भी पत्रकारों के आंदोलन का समर्थन किया है। इनमें प्रमुख रूप से भड़ास4मीडिया, हस्तक्षेप, प्रतिरोध, बरगद, संघर्षसंवाद, हाशिया, जनपथ इत्यादि अहम हैं। आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच, कविता: 16 मई के बाद, जन मीडिया, जर्नलिस्ट सॉलिडरिटी फोरम, सन्हति जैसे सांस्कृतिक समूहों ने भी कैद पत्रकारों की रिहाई की मांग उठाई है।
देश भर के पत्रकार सोमवार 21 दिसंबर को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनवाने और संतोष व सोमारू को बेशर्त तत्काल रिहा करने हेतु जगदलपुर में इकट्ठा हो रहे हैं।
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पत्रकारों को समर्थन का वक्तव्य
छत्तीसगढ़ के पत्रकार महाआंदोलन के समर्थन में बयान
छत्तीसगढ़ के बस्तर में इस साल जुलाई और सितंबर में जन सुरक्षा अधिनियम के तहत फर्जी मामलों में गिरफ्तार किए गए दो पत्रकारों सोमारू नाग और संतोष यादव की रिहाई व पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की मांग को लेकर 21 दिसंबर, 2015 को जगदलपुर में होने जा रहे पत्रकार महाआंदोलन को हम बेशर्त समर्थन ज़ाहिर करते हैं। देश में पिछले कुछ समय से अभिव्यक्ति की आज़ादी पर जिस तरह से हमले बढ़े हैं और पत्रकारों को लगातार डराया, धमकाया व मारा गया है, उसने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारों की वैधता पर सवाल खड़ा कर दिया है और लोकतंत्र के बुनियादी उसूलों को ही खतरे में डाल दिया है।
छत्तीसगढ़ की स्थिति इस मामले में इसलिए विशिष्ट है क्योंकि वहां पत्रकारों को नक्सलियों और राज्यसत्ता के दो खेमों में बांट दिया गया है। हालत यह है कि दंतेवाड़ा के सुदूर अंचलों में सांस लेने के लिए पत्रकारों को पुलिस या नक्सलियों की अनुमति लेनी होती है और अगर किसी पत्रकार को पुलिस और नक्सलियों के संघर्ष में पिस रहे आदिवासियों की चीखें बेचैन करती हैं और वह तटस्थ रहने का अपराधबोध सहन नहीं कर सकता है, तो उसकी जगह जेल या मृत्युलोक ही तय है। बस्तर में आंचलिक पत्रकारों की भयावह स्थिति को नेमीचंद्र जैन और साईं रेड्डी के उदाहरणों से समझा जा सकता है जिनको पहले पुलिस ने नक्सलियों का मुखबिर होने के आरोप में जेल भेजा और बाद में रिहा होने पर नक्सलियों ने उन्हें पुलिस का एजेंट बता कर मार डाला। अब संतोष यादव और सोमारू नाग को लगातार जगदलपुर की जेलों में उत्पीड़न से गुज़रना पड़ रहा है लेकिन अब तक देश भर में कोई बड़ा आंदोलन इनके समर्थन में खड़ा नहीं हो सका है।
बस्तर में पत्रकार पहले भी आन्दोलित हुए हैं। उन्होंने न केवल सरकार और पुलिस तंत्र के विरुद्ध अपना स्वर तीखा किया बल्कि नक्सलियों के विरोध में भी अपनी जान को हथेली पर रख कर उतरे हैं। जब पत्रकार नेमीचन्द्र जैन की हत्या नक्सलियों द्वारा की गई थी, तब एकजुट होकर सभी आंचलिक पत्रकारों ने यह निर्णय लिया था कि कोई भी नक्सल सम्बन्धी समाचार नहीं बनाया जाएगा। इसके बाद नक्सली प्रवक्ता गुडसा उसेंडी ने लिखित माफीनामा जारी किया था। एक अन्य आन्दोलन पत्रकार साईं रेड्डी की हत्या के साथ आरम्भ हुआ जिसमें सभी आंचलिक पत्रकार दोबारा एकजुट हुए और उन्होंने नक्सल इलाकों के भीतर घुस कर अपनी बात रखने और विरोध करने का फैसला किया। यह नक्सलियों को स्पष्ट संदेश था कि कलम की अभिव्यक्ति पर आतंक हरगिज़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। यही स्थिति पुलिस तंत्र और उसकी ज्यादतियों के विरुद्ध भी है और होनी भी चाहिए। ये घटनाएं और आन्दोलन स्पष्ट करते हैं कि बस्तर के पत्रकार व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि अभिव्यक्ति के मूलभूत अधिकार के लिए लड रहे हैं।
लोकतंत्र के कारगर तरीके से काम करने के लिए ज़रूरी है कि इस देश का पत्रकार निष्पक्ष और निर्भीक होकर बिना किसी दबाव के अपना काम कर सके ताकि लोगों तक सही खबरें पहुंचायी जा सकें। संतोष यादव और सोमारू नाग का उदाहरण इस लिहाज से राज्यसत्ता के आतंक व तानाशाही के खिलाफ एक प्रतीक है और देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी की लड़ाई को इसी के इर्द-गिर्द खड़ा किया जाना ज़रूरी है। देर से ही सही, लेकिन देश भर के पत्रकारों के बीच इस मसले पर हो रही हलचल स्वागत योग्य है।
हमारी मांग है कि संतोष और सोमारू को तत्काल बिना शर्त रिहा किया जाए। इसके अलावा छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम नाम का काला कानून तुरंत खत्म किया जाए और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक कानून बनाया जाए, जिसकी मांग 21 दिसंबर को पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति के तहत उठायी जा रही है। इसके अलावा हम राज्य सरकार से यह भी मांग करते हैं कि बीते पांच वर्षों में पत्रकारों पर हुए हमलों और उत्पीड़नों पर वह एक श्वेत पत्र जारी करे और इस मसले पर एक सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया चलाए जिससे एक समग्र पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने में मदद मिलेगी।
हम यह भी मांग करते हैं कि जिन पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है उसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों की शिनाख्त कर उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाएं और इन पत्रकारों की क्षतिपूर्ति की जाए। अंत में, हम छत्तीसगढ़ के सभी पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों से अपील करते हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हो रहे हमलों के विरोध में वे 21 दिसंबर, 2015 को अपना संपादकीय खाली छोड़ दें।
दस्तखत करने वाले संगठनों व व्यक्तियों के नाम:
अर्जुन प्रसाद सिंह (पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया)
आनंद स्वरूप वर्मा (समकालीन तीसरी दुनिया)
पंकज बिष्ट (समयान्तर)
असद ज़ैदी (लेखक और प्रकाशक)
उदय प्रकाश (लेखक)
अपूर्वानंद (दिल्ली विश्वविद्यालय)
अपूर्वानंद (दिल्ली विश्वविद्यालय)
जावेद नक़वी (वरिष्ठ पत्रकार)
भारत भूषण (वरिष्ठ पत्रकार)
उज्ज्वल भट्टाचार्य (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली/जर्मनी)
दिलीप मंडल (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली)
अनिल चमडि़या (मीडिया स्टडीज़ ग्रुप)
सुभाष गाताड़े (न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव)
ईश मिश्र (दिल्ली विश्वविद्यालय)
शबनम हाशमी (सामाजिक कार्यकर्ता, दिल्ली)
कविता कृष्णन (एपवा, सीपीआइ-एमएल लिबरेशन)
मनीषा सेठी (जामिया टीचर्स सॉलिडरिटी असोसिएशन)
सीमा मुस्तफा (वरिष्ठ पत्रकार)
शोमा सेन
ऋचा पांडे (प्रगतिशील महिला एकता केंद्र)
सन्हति (दिल्ली)
अमीक जामेइ (ऑल इंडिया तंज़ीम-ए-इंसाफ़)
डॉ. ए.के. अरुण (युवा संवाद और युवा भारत)
दीप सिंह शेखावत (जन संघर्ष समन्वय समिति)
महताब आलम (पीयूसीएल, दिल्ली)
शाहनवाज़ आलम (रिहाई मंच)
राजीव यादव (इंसाफ अभियान, उत्तर प्रदेश)
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी
भूपेन सिंह (जर्नलिस्ट सॉलिडरिटी फोरम)
यशवंत सिंह (भड़ास4मीडिया डॉट कॉम)
राजकिशोर (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली)
प्रशान्त टंडन (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली)
नासिरुद्दीन हैदर खान (स्वतंत्र पत्रकार)
अमलेन्दु उपाध्याय (हस्तक्षेप डॉट कॉम)
पाणिनि आनंद (प्रतिरोध डॉट कॉम)
दिलीप खान (पत्रकार, दिल्ली)
प्रशांत राही (सामाजिक कार्यकर्ता)
अवनीश राय (जन मीडिया/मास मीडिया)
प्रकाश कुमार रे (बरगद डॉट ऑर्ग)
पीयूष पंत (लोक संवाद)
पंकज मोलेखी (वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली)
गीता शेषु (पत्रकार, दिल्ली)
जितेंद्र चाहर (संघर्ष संवाद)
रंजीत वर्मा (कविता: 16 मई के बाद)
अशोक कुमार पांडे (आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच)
रेयाज़-उल-हक़ (हाशिया)
देबादित्य सिन्हा (विंध्य बचाओ अभियान, मिर्जापुर)
अभिषेक श्रीवास्तव (जनपथ)
वरुण शैलेश (पत्रकार, दिल्ली)
सरोज कुमार (पत्रकार, दिल्ली)
अरविंद के. पांडे (इंडोवेव्स)
मेरी मथाई
मुकुल सरल (पत्रकार, दिल्ली)
डॉ. पंकज श्रीवास्तव (पत्रकार, दिल्ली)
सुनील (मजदूर एकता केंद्र)
सुभाष (क्रांतिकारी युवा संगठन)
स्वामी अग्निवेश
जॉन दयाल
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संजय रावत (समानांतर, हलद्वानी)
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