गाहे-बगाहे: नफ़स न अंजुमने आरज़ू से बाहर खींच

अधिक ईमानदारी से कहा जाय तो प्रशांत भूषण ने उस कॉकस के मर्म पर चोट कर दी जिसे झेलना मुश्किल नहीं नामुमकिन है। और जब झेलना मुम्किन नहीं है तो सजा उन्हें मिलेगी। लेकिन प्रशांत भूषण भी कोई इंसान हैं। उन्होंने माफी मांगने से इंकार कर दिया।

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गाहे-बगाहे: अपने साये में सिर पाँव से है दो कदम आगे

प्रधानमंत्री जी ने ब्राह्मणवाद की दीवार पर अपने नाम का शिलापट्ट लगवा दिया और इस प्रकार उन्होंने भारतीय जनता को एक संदेश दिया कि ये ऐसे लोग हैं जो सत्ता के सहयोग से जितना भी उपद्रव मचा लें लेकिन जनता चाहे तो अपनी सरकार बनाकर इन्हें पूरी तरह ध्वस्त कर सकती है।

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गाहे-बगाहे: है किस क़दर हलाक-ए फ़रेब-ए वफ़ा-ए गुल!

हिन्दू महासभा और संघ की हैसियत वही है जो मुस्लिम लीग की है। दोनों का उद्देश्य और निहितार्थ, भाषा और चाल-चरित्र एक है। फर्क यह है कि मुस्लिम लीग मुसलमानों की बात करता है और संघ हिंदुओं की जबकि वास्तविकता यह है कि संघ ने न हिन्दू शोषकों से जनता की मुक्ति की बात की न मुस्लिम लीग ने मुस्लिम शोषकों से।

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गाहे-बगाहे: मशीनों के आगोश में बुनकरी है, तबाही के पहलू में कारीगरी है!

लॉकडाउन ने बुनकरों को भुखमरी और मौत के कगार पर ला खड़ा किया है. काम चलने का कोई आसार नहीं है. ऊपर से उत्तर प्रदेश सरकार ने बिजली का दाम बहुत ज्यादा बढा दिया है. पहले जहाँ हज़ार-डेढ़ हज़ार रुपये बिजली का बिल आता था वहीं अब मनमाने ढंग से कहीं तीस हज़ार तो कहीं चालीस हज़ार आ रहा है. कहीं कोई सुनवाई नहीं है.

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गाहे-बगाहे: वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ…

मुझे लगता है कि हमारी चुरा ली गई संवेदना और हड़प ली गई आज़ादी ने हमें इतना पंगु तो बनाया ही है कि विज्ञान और गणित के बावजूद और टेक्नोलाजी के भयंकर विस्तार के बाद भी हमारा कोई मूल्यवान तत्व खो गया है. हम वास्तव में चुप हो गए हैं.

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