हर्फ़-ओ-हिकायत: जाति-वर्चस्व के खांचे में आजादी के नायकों को याद करने की राजनीति

मजिस्ट्रेट ने नाम पूछा तो तिवारी जी ने कहा- आजाद! मजिस्ट्रेट ने पूछा पिता का नाम तो तिवारी जी ने कहा- स्वतंत्रता! अब मजिस्ट्रेट ने पूछा घर का पता? तिवारी जी ने कहा- जेलखाना। तिवारी जी तब से चंद्रशेखर आजाद हो गए, लेकिन सौ साल बाद सोशल मीडिया के क्रांतिकारियों ने उन्हें तिवारी जी और पंडित जी घोषित कर दिया।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: नया बनारस बन रहा है, काशी का दम उखड़ रहा है!

कोई कहता है कि बनारस विकास कर रहा है, तो मैं दावे से कहता हूं कि वह बनारस को नहीं जानता है। बनारस के ऐतिहासिक प्रतीकों को आज संरक्षण की जरूरत है, लेकिन धार्मिक नगरी का सर्टिफिकेट देकर इसके ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को हमेशा कमतर किया जाता रहा है। बीते तीन-चार साल में बाकायदे इन प्रतीकों का विध्‍वंस हुआ है विकास के नाम पर।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: तीनकठिया नील की खेती और नये अंग्रेजों के तीन कृषि कानून

नील की तीनकठिया खेती करने वाले किसानों का प्लांटरों के साथ अनुबंध ठीक वैसा ही था जैसा तीन कृषि कानूनों के तहत कंपनी या पैन कार्डधारक किसी व्यक्ति से हुआ अनुबंध। इसीलिए संयुक्‍त किसान मोर्चा और तमाम किसान नेताओं को सरकार की मंशा पर संदेह है।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: दलित चिंतकों का सवर्णवादी आदर्श बनाम कांशीराम की राजनीतिक विरासत

कांशीराम ने 1978 में ये भांप लिया था कि पहले से ही दमित समाज को संघर्ष की नहीं सत्ता की जरूरत है और सत्ता से ही सामाजिक परिवर्तन होगा। यही भाव कांशीराम से मायावती में अक्षरश: स्थानांतरित हुआ। इतिहास इसका गवाह है।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: सीता की अनकही व्यथा और शापित अयोध्या का अधूरा प्रायश्चित

यह जानना काफी दिलचस्प होगा कि सीता समूचे रामायण को किस नजरिये से देखती रही होंगी। अयोध्या कांड से लेकर उत्तर कांड तक वह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का साथ एक धर्मपारायण पत्नी की तरह निभाती हैं। सीता भारत के जनमानस में आदर्श महिला की सबसे बड़ी आइकन हैं, लेकिन समूची रामायण में सीता की दृष्टि से कोई भी विवरण नहीं मिलता है।

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निरंकुश सत्ता और पुलिस राज की याद दिलाता है 41 साल पहले हुआ माया त्यागी कांड

सिंडिकेट के खिलाफ राजनीतिक जीत और बांग्लादेश की आजादी सुनिश्चित करने के बाद सर्वशक्तिमान हो चुकीं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने देश को पहली बार राजनीतिक निरंकुशता से परिचित …

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महामारी में चुनाव आयोग की सवालिया भूमिका और टी. एन. सेशन की याद

मान लेते हैं कि स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए तो महज चुनाव आयोग ही काफी है. और जब देश में सभी परीक्षाएं स्थगित हैं, योजनाएं स्थगित हैं, तो फिर चुनाव स्थगित करने में किसी का क्या बिगड़ रहा है?

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