बीमारियों से तबाह दुनिया में बॉलीवुड का नायक कब तक भगवान भरोसे रहेगा?

एक ज़माना था जब सिनेमा एक तरफ डॉक्टर को भगवान दिखाता था और दूसरी ओर मरीजों को भगवान के भरोसे दिखाता था। घर वाले बेचारगी में मंदिर-मंदिर सिर पटकते थे। घंटे से सिर फोड़ते थे। एक ज़माना आज है, जब चिकित्सा व्यवस्था भगवान भरोसे है और मरीज भी भगवान के भरोसे। सिनेमा कॉर्पोरेट भरोसे है।

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सिनेमाई संघर्ष में औरत की जिंदगी का मुरब्बा खराब क्यों हो जाता है?

पिछले कुछ वर्षों में रीलिज हुई पुरुषों की बायोपिक पान सिंह तोमर, भाग मिल्खा भाग और एम एस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी आदि को देखने हुए समझ में आया कि पुरुष बायोपिक में जहां पराक्रमपूर्ण दृश्यों की भरमार होती है और इससे फिल्म भरी-भरी लगती है वहीं स्त्रियों की बायोपिक में चमत्कार रचने की प्रवृत्ति फिल्म को पटरी से ही उतार देती है। बचता क्या है?

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Listen To Her: रोज़ाना अनसुनी रह जाती हुई चीखें

यह फिल्म जैसे हमारे समय के अंधेरे चेहरे पर आईने की रोशनी भर दिखाती है, लेकिन उस क्षणिक रोशनी में एक त्रासद, कंडीशंड और तकलीफ़ों से भरी दुनिया हठात हमारे सामने दिख जाती है जिसके कई आयाम और समानान्तर कथाएं हैं।

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